समर्पण
प्रतिभाशाली पुरुष/ स्त्री का
परस्पर प्रेम पाना भी कम रोचक नहीं है
इतना तो तय हैं कि दो प्रतिभाशाली लोग
चाहे जो कर ले प्रेम नहीं कर सकते
क्योंकि प्रेम प्रतिभा नहीं
सपर्पण चाहते हैं
और प्रतिभा समर्पित होना
नही चाहती
वह अकड़ की घोडे पे बैठ
दूर तक जाती है
चाहे वह किसी का हो
अक्सर प्रतिभावान लोग
प्रेम से वंचित बड़े महलों
ऊंची फ्लैटों मे रहते
तन्हाई में उम्र गुजारते हैं
जबकि गांव की या पास झोपड़ी में
रहती रधिया उनकी झाडू पोछा करती
किसना उनके घर दूध या सब्जी पहुँचाते
प्रतिभावानों के कृपा व आश्रय में
दिन भर खटते /पलते
चैन की नींद सोते रात में
गलबहियां करते मन भर हंसते -गाते साथ में
सुखमय जीवन जीते हैं
आधी रात ऊबते खिड़की से झांकते
तनाव ग्रस्त प्रतिभावान लोग
ड्रग्स लेते सिगरेट रखे हाथ में
या महंगी स्कांच के नींद की गोली खाते साथ में
इन्हे मूर्ख गंवार ढ़ोर पशु कहते अघाते नही
कमबख्त सिखाते हैं इन्हे प्रेम करना
जो जानते तक नहीं कि
प्रेम क्या है ?
करना और पाना तो बहुत दूर की बात हैं
सच कहे तो समर्पण प्रेम की शुरुआत हैं
प्रतिभावान समर्पण करे तो प्रतिभाशाली
प्रेमी होकर ही रहते हैं पर कितने ?
डाॅ. अनिल भतपहरी
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