Wednesday, June 10, 2020

सत श्री सतनाम

सत श्री सतनाम 

ओ जोड़ते हैं
आखर और 
मिलाते है तुक
गिनते हैं मात्राएँ
और जोड़-तोड़ 
कर मिलाते हैं तुक 
इस तरह बुनते हैं 
रचनाएँ छन्द बद्ध 
कहते कठिन कर्म हैं
रचना कविता 
इसलिए होते हैं
बिरले कवि 
अन्यथा हो जाते 
हर कोई 
भोगते संत्रास 
पीड़ा सभी 
पर ऐसा है नहीं 
कवि तो सभी हैं 
कोई रचता हैं
कोई जीता हैं
कोई कहता हैं
कोई करता हैं
खाना बनाने से 
लेकर खाने तक 
या बीज बोने से 
फसल उगा कर
रोटिया बेलने तक 
और तो और हाथों से 
कौर बनाने और 
मुंह में चबाते निगलने तक 
कविता  घटती व चलती हैं
भले लोग उसे व्यक्त करे न करे 
पर कविता तो रहती हैं 
जन्म से संधर्ष और मृ्त्यु तक 
बल्कि उनके बाद भी उन पर 
लिखी जाती हैं कविताएँ 
इस तरह कविता 
ब्रम्ह सा हो जाते हैं
और जब वह सबके घट में है।
और सबमें घटती हैं
तो हर कोई कवि कैसे नहीं हैं?
केवल तुम्हारे लिख लेने से 
अक्षर जोड घटा लेने से 
लय तुक मात्रा सजा लेने से 
कवि नहीं हो सकते !
कवि  होना धट के भीतर कुछ 
बेहतर घटना और 
उनका बेहतर प्रगटीकरण हैं
ताकि लोग सुनकर आल्हादित 
ही नहीं धन्य हो 
और उनका कल्याण हो 
सारे प्रवर्तक विचारक 
महाकवि हैं ...
और आगे महाकाव्यों का 
आना जारी हैं निरंतर ...
क्योंकि अभी बाकी हैं
जगत का कल्याणकारी होना 
व्यक्ति का परोपकारी होना 
कविगता गेय हो कंठस्थ हो 
और लोग इनके अभ्यस्त हो 
ऐसा भी नहीं 
वह अंत: सलिला हैं 
किसी सांचे नियम में बंधे बगैर 
स्वच्छंद विचरण करती 
तन मन हृदय मेधा को 
अप्लावित करती 
मानस सागर में समाहित होते हैं 
जहां चुगते हैं हंस मुक्तामणी 
ध्यान स्मरण सुमरणी 
मिलते हैं आनंद  चिर विश्राम 
सुमरते चित्त सत श्री सतनाम ...

डा. अनिल भतपहरी

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