Monday, June 1, 2020

सत्कबीर

सत्कबीर 
महात्मा कबीर क्रांति के कवि हैं नाहक उन्हें ब्राह्मण वाद/पुरोहित वाद से ग्रसित विश्लेषक भक्ति कवि के रूप में स्थापित कर ऐसे भ्रम निर्मित कर दिए कि वे महज ईश्वर के निर्गुण स्वरूप के गायक मात्र रह गये। राम शब्द की बार बार आवृति जाने अनजाने में  उन्हें और भी विष्णु अवतार राम के  परम भक्त बना दिए गये। हलाकि उन्हें इसलिए सफाई देनी पड़ी -"दशरथ सुत तिहि लोक बखाना। राम नाम मरम नही जाना।
     बावजूद उनकी पदों सखियों में राम नाम उल्लेख होंने से जन साधरण को कबीर राम भक्त ही लगा।
     कबीर की एक और प्रक्षिप्त सी पंक्ति -
"कुत्ता कबीर राम का मोतिया मोरी नाऊ
ज्यो ज्यो खिचे राम जी त्यों त्यों पीछे जाऊ"
  यहा कबीर साहब राम के कुत्ता होने को अपना सौभग्य बताते नजर आ रहे हैं। क्या कबीर के सच्चे अध्येताओ को कबीर का राम के कुत्ता होना स्वीकार्य हैं?
    अक्खड़ व् सत्य के प्रति अटूट निष्ठावान कबीर अपने आजन्म क्रन्तिकारी दृष्टिकोण और व्यवहार हेतु जाने जाते रहे वे अपने  मरण में भी "काशी में मृत्यु मोक्ष है" के मिथक तोड़ते मगहर में प्राण त्यागे वे कैसे ईश्वर के भक्त दास होंगे?
इसी तरह चर्चित दोहा गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लागु पाय ।बलि हारी गुरु आपकी गोविन्द दियो बताय।
इसमें गुरु को जरुर प्रथम पुजनीय बता रहे हैं पर अपरोक्ष ईश्वर (गोविन्द ) को भी संस्थापित करते नजर आ रहे हैं। मतलब यहा भी कबीर ईश्वरवादी हैं। और वे ईश्वर वाड़ी हैं तो वे केवल भक्त हो जावेंगे उनकी क्रांति करी रूप सदा के दफन हो जायेंगे जैसे धर्म दसियों ने पूरा कबीर पंथ को ही वैष्णव पंथ में परिवर्तित कर उनकी ज्ञान और क्रांति कारी विचारों को दफन कर दिए। आज कबीर के मूल बातों को शिक्षा आदि को  स्थापित करने की जरूरत हैं। तभी आज उनकी जयंती की सार्थकता हैं। सत श्री सतनाम। जय सत कबीर ।

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