कुछ तो हुआ है पर कुछ बोल नहीं सकते
ये उम्र रफ्तां को चाहकर रोक नहीं सकते
जब से आई जवानी रंगीन होने लगी ये दुनियां
कोशिश लाख करे जमाना पर रोक नहीं सकते
जैसा भी हो वो सच में लख़्त-ए- ज़िगर हैं
फ़ितरत किसी को कही झोंक नहीं सकते
माना बेमुरौव्वत हैं पर वे नुर-ए- नज़र हैं
ऐसों से बेवफ़ा का कभी सोच नहीं सकते
इस तरह वार होने लगे चारों तरफ ए अनिल
खुद को ही बचाने कभी सोच नहीं सकते
-डाॅ.अनिल भतपहरी
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