।।धनहा चाकर ।।
भोरहा ल
भर्री के
भरका मं
भर के
मसक
बउग बो
बतर बने हे
भभकौनी के
चिखला मं
झन फदक
छोड़ दे
अभी उन ल
बाढ़न दे
करगा कस ऊंच
नींदा / रोपा मं
देबोन चभक
डारबोन
खातु गोबर
असो उपजहिं
पाछु ले आगर
चलन दे
धरर-धरर
कोपर-नागर
जावय झन रबक
रहे धनहा हमार
चउक चाकर
पुरखा के असीस
उकरेच आंकर
करथस काबर
संसो फिकर
सिरजा तय
सुम्मत के सख
लगय झन
काखरो लिगरी
चारी अउ नंजर
मिहनत के
कारी पसीना
तन ल उगार
माटी मं मिझार
झन भुलाबे
सियान के सबक
डाॅ. अनिल भतपहरी / 9617777514
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