: आरक्षण क्यो नही मिलेगा?
मिलते ही रहेगा ।जैसा कि
आरक्षण डिप्रेस्ड क्लास को मिला हैं। सतनामी भी डिप्रेस्ड है उनकी जमीन हड़प लिए गांव से बेदखल किए क्योंकि यह समुदाय हिन्दुओं की रीतिनीति मान्यताओं के अलग संस्कृति विकसित कर स्वतंत्रता पूर्वक जीने रहने की दुस्साहस किए ।फलस्वरुप बहुसंख्यक हिन्दू मिलकर इनके ऊपर जुल्म सितम ढाए यह अनुक्रम चलते रहा ।इस समुदाय को एक सोची समझी सडयंत्र के तहत सार्वजनिक रुप से अपमानित करके हिन्दुओं की विधटन को रोके गये और उन्हे चमार दलित धोषित कर बहिष्कृत किया गया जबकि यह कृषि पेशावर मेहनत कस जाति विहिन पंथ हैं न कि अस्वच्छ कार्य में संलिप्त जाति हैं। बल्कि अनेक जातियों के लोगों ने गुरुघासीदास की प्रेरणा से अपने जाति बंधन को त्याग कर हिन्दुओं से अलग स्वतंत्र पंथ के रुप में अस्तित्व मान हुआ। इसे एक अलग रुप से चिन्हाकित करना था पर समकालीन अफसरो योजनाकारो की अनभिज्ञता के चलते बडी ऐतिहासिक भूल हुई जिसका खामियाजा आज पर्यन्त यह स्वाभिमानी सात्विक समाज भोगते आ रहे हैं। और कब तक सामाजिक वैमनस्य भाव को ढोते रहेन्गे ?
और सभी डिप्रेस्ड क्लास कालम 14 मे नहीं है।
कालम 14 प्रमुखतः चमार जाति हैं। उनके अधीनस्थ या उनमें गिनी जाने वाली सह जातियो या उपजातियो के समूह है।
जबकि सतनामी कृषक जाति व सम्मान जनक कृषि पेशावर जाति हैं। यह छग में कुर्मि तेली के समकक्ष प्रमुख जाति हैं। उन्हे कालम 14 से तत्क्षण पृथक कर स्वतंत्र रुप से अंकित करना चाहिए।
क्योंकि सतनामी जाति नहीं एक पंथ के अनुयाई हैं। उसे सडयंत्रियों ने या अनभिज्ञ मूर्ख अफसरों ने जानबूझकर रखा हैं।
सतनामी को यदि अस्पृश्य जाति के रुप में ही चिन्हाकित किया जाना था और सुविधाएँ देना तो था तो जैसे गाडा घसिया चमार महार जाटव अलग अलग जाति को रखे । वैसे प्रमुख सतनामी जाति बनाकर रखना था न कि चमार जाति के सहजाति बनाकर , यह बहुत पीड़ा या कष्टदायक हैं।
जो नहीं है वह समकालीन प्रशासकीय अधिकारियों की लापरवाही से हुआ,उनका खामियाजा आत तक भुगत रहे हैं।
जो समाज अपने अस्तित्व में आते ही सात्विक और संत समाज था उसे अस्वच्छ पेशेवर जातियों के कोटी में रखना केवल मुर्खता और सडयञत्र के सिवा कुछ भी नहीं है।
हमारे लोग भी इस सामान्य सीबह बातों को आज तक नहीं समझे और सुविधाएँ मिल रहे हैं। समझकर अपमान का दंश झेलते आ रहे हैं। यह वाकिय में बडी विडंबना हैं।
हमारे लोगो को इनके लिए नये सिरे से सार्थक संशोधन हेतु पहल करना चाहिए या सीधा सीधा हिन्दू से अलग सतनाम धर्म या पंथ के लिए सञधर्ष करना चाहिए।सच कहे तो सतनामी हिन्दू ही नहीं हैं।यह सर्वविदित है कि सतनाम हिन्दुत्व के समनान्तर ही एक पृथक संस्कृति के रुप में अतित्वमान हैं।
पर जैसे कि होते आया हैं कि सनातनी हिन्दू मुस्लमान ईसाई बौद्धों से दुर्व्यवहार करते हैं। छुआछूत मानते हैं ठीक उसी तरह सतनामियों के साथ भेदभाव हुआ । और इसे एक अछूत जाति बना कर चमार के सह जाति या उपजाति बना दिए गये।
पर तत्कालिक अंग्रेज अफसरो को मनुवादियो या सवर्णों के प्रेशर में अर्थ का अनर्थ नहीं करना था ।
ऐसा कौन सा पौनी पसारी सेवादार जाति सतनामी है ?
जबकि उनके पास 262 गांव की गौटियाई 81 गांव की मालगुजारी और 8 +8 गांवो का दो राज क्षेत्र भंडारपुरी / बोडसरा के राज रजवाडे थे। यह समुदाय भले हिन्दुओं के लिए प्रतिद्वंदी होकर उनके लिए बहिष्कृत हो गये पर कभी उनके आश्रित नहीं रहे । उनकी अधीनता नहीं स्वीकारे बल्कि चुनौती स्वीकारे फलस्वरूप उनके साथ भेदभाव कर उन्हे अपने पृथक कर दिए गये।
२-३ सौ एकड वाले तो सैकडो परिवार थे। उस समय और अब भी अनेक ओबीसी जातियाँ सौजिया व बनिहार सतनामियो के है। उनके खेतो में घरो में अब भी काम करते मिलेगे ।
क्या यह हैसियत उन देशी गवार अधिकारियों को पता नहीं कि विदेशी अंग्रेज महामूर्ख थे?
और हमारे लोग उस समय इतने नादान व भोले भकले थे ?
कुछ तो था जो हो गया पर अब नहीं चलब इनके लिए प्रभावी एक्शन मोड पर आने ही होन्गे ।
क्या मृत जानवरो के खाल उतार कर हिन्दुओं के पौनी और उनके आश्रय में जीने वाले अछूत चमार है सतनामी ।
सतनामी अछूत हुआ उनके देवी -देवता मान्यता और पंडे पुजारी को नकारने के कारण ।
सतनामी अछूत हुआ द्वेष और ईर्ष्या के कारण।
यह आज भी देखा जा सकता है।
हिन्दुओं के साथ मोची मेहर गाडा भोलिया रौतिया घसिया महार चमार जाटव का बडा ही आंतरिक लगाव है ये सबके बिना उनके निस्तार नहीं ।
जन्म शादी ब्याह मरनी हरनी में सभी उनके सहभागी होते हैं। वह हिन्दू ही है।
पर क्या सतनामी सहभागी है क्या यह समाज पौनी पसारी है ?
किसी भी गांव के अनपढ से पुछो बता देगा कि सतनामी अलग है और मेहर अलग है।
पर हमारे महान देश के समकालीन योजनाकारो अधिकारियों को यह जरा सा पता नहीं और एक प्रखर पराक्रमी स्वाभिमानी कृषक समुदाय को चमार के सहजाति धोषित कर दिए।
द्वेषी हिन्दू झूम गये और सार्वजनिक रुप से कानूनन भेदभाव करने लगे ।और तो और गाहे बगाहे उन प्रछिप्त जाली दस्तावेज़ के आधार पर अबतक अपमान करते आ रहे हैं। ताकि इस समुदाय का आत्मबल कभी आगे न बढ सके । हमारे बढते प्रभाव को इस तरह सार्वजनिक रुप से लिखित में अपमानित करके रोका गया है। और आज भी अपनी वजूद और पहचान के
लिए बेबश / विवश है।
यह बेबशी कब तक चलती रहेगी ?
हमारे कुछ ब्रेन वास्ड दलितज्म के पैरोकार लोग और भी महामुर्खाधिराज हैं।और ठकली झाडू उनके लिए रतन पदारथ है ,उन्हे अपने तिजोरी में रखे है क्या ? बहरहाल जो छत्तीसगढ़ में हुआ नहीं उसे यहाँ होने का तर्क देकर उन्हे अपने पाले में रखने का सडयंत्र भी होने लगे हैं।
उनके घरो में जाकर देखना चाहिए कितने वर्षो से हैं?
यदि वास्तविकताए जानना है अपनी प्रयोजित छद्म विचार धारा से मुक्त होकर दिल से यह नीचे कोटेशन छत्तीसगढ़ी का पढे और गहनता से विचार करे
डा.अम्बेडकर के समकालीन कत्कोन सतनामी मंडल गौटिया मन पढे लिखे रहिस । फेर ओमन नौकरी चाकरी न इ करत रहिन ।
भलुक समाज सेवा करय
राज्य के अलग अलग क्षेत्र 72 संत महंत मन कांग्रेस के अधिवेशन में गय रहिन जेमन जबर गौटिया रहिन ।
अउ बडे हैसियत दार रहिन हाथी घोडा किल्ला कस महल अटारी रहिस ।
राउत तेली मरार गोड कवर मन सौजिया लगय ।
बने अपन पुर्वज बबा ददा मन सो पुछ लव ।
चरिहा सुपा म सोन चांदी नापय
जुआ खडखडिया खेलय ४-५ झन सुवारी राखय अउ मतंग राहय।
ते पाय के धन दोगानी सिरा तको गय।
अउ जेन सम्हाल के राखिस ओमन आजो ले बढिया जीयत खात हवे।
हा भ ई जनसंख्या बाढे ले जमीन कमतिया गे ।
अउ लगातार अपमान के सेती मंद म उहा म तिडी बिडी तको होगे।
फेर बहुत झन पढ लिख के शहर घर लिन अउ अन्य छत्तीसगढ़ी समाज के तुलना म बराबर नहीं तो कुछ कमती या आगर नौकरी पक्का मकान के रहवासी हे।
चाहो तो सर्वेक्षण करा सकथव ।
सच तो यह है कि हमे बौद्धिक स्तर पर सतनामी रामनामी सूर्यवंशी महार चमार न लड़कर
हिन्दू vs सतनामी लडना चाहिए।
और इन वर्गो को संधटित कर हिन्दू धर्म की जीर्ण शीर्ण खो खले होते जड़ को उखाडना चाहिए। या मठा डाल देना चाहिए। क्योकि यह वर्णाश्रम पर आधारित भेदभाव के उद्गाता पोषक व संरक्षक हैं। सच तो यह है कि हिन्दूत्व ही मानवता के असल शत्रु है। अनेक अमानवीय बर्बर प्रथाएं हैं।
शास्त्र मंदिर पंडे और अंधविश्वास उनके अस्त्र शस्त्र है।
उनसे निपटने हमारे पास एक ही महाअस्त्र है ।। सतनाम ।।
इनका भलीभाँति प्रयोग करे और मानवता को बचाए हम सब मिलकर न कि प्रभाव दिखाने के चक्कर या जानकर होने के छद्म दंभ पालकर या राजनैतिक रुप से मतभेदो में उलझर शक्ति समय बर्बाद कर खारिज होने नादानी बिल्कुल न करे।
विध्नसंतोषी और विध्नकर्ता तो सदैव चुनौति जैसे सामने आते ही रहते हैं। उन्हे उनका काम करने हमे अपना काम करना चाहिए ।
रौशनी अच्छी और प्रखरतम होन्गे तो धुंध व अंधेरा स्वत: छट जाएगा। उनकी अधिक चिन्ता करने की जरुरत नहीं ।
हमे अपना रौशनी कैसे अधिक चमकदार और सदा के लिए जलते रहे के बारे में चिन्तन मनन और सृजन करते रहना चाहिए। प्राय: छग मे सतनामी समाज आजादी के पूर्व सम्पन्न व सुखी थे हिन्दुओं के निरन्तर अपमान व तिरस्कार के चलते बिखरते व टुटते गये।आक्रोश के चलते लडते झगडते बरबाद होते गये । यदि अपमान तिरस्कार का यह खेल चलता रहेगा तब तक समाज का कोई कल्याण नहीं भले घर घर डा इंजी आई ए एस आई पी एस हो जाय पर सामाजिक तिरस्कार से नहीं उबर सकते क्योकि यह हिन्दुओं की संस्कृति है। यह बातें हमें अच्छी तरह गाठ बांधकर समझना चाहिए।इसलिए उनका परित्याग ही एक मात्र विकल्प हैं।
-डॉ. अनिल भतपहरी
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