शिकारी और भिखारी
तब पचासों चिड़ियों का झुंड
फूर्र से उड़ गया
मैंनें देखा उस अधनंगें
काले -कलुटे पारधी के बच्चे को
जा़ल समेटते , मन मसोसते
कह रहा था
बाबुजी चिड़िया फंसी तो शिकारी
या नहीं भिखारी
* * *
कुछ दिन हुए मैं इनके
बस्ती में आया
इसलिए कि यहाँ से
शहर समीप हैं
और ग्रामीण सचिवालय भी
बचपन से आदतन
मैं प्रकृति प्रेमी रहा हूँ
खीच लिया यह वन प्रांतर
और नल सेप्टिक छोड़कर
दिशा- मैदान जाता हूँ
लोटा लेकर
तब स्मरण हो आतें हैं
बचपन मेरा
वन ग्राम में बीता
पिताश्री के मास्टरी के संग
विरासत में मिला मुझे एकांत
खूब दोहन किया
चिंतन मनन अध्ययन किया
* * *
कुंचालें भरती हिरणियों के झुंड
सुमन -सौरभ लुटाते भंवर वृंद
कोंपल फूटते सल्फी
बौराते चार आम्र मंजरी
कुचियाएं महुए का गंघ
रात रात भर बजते
ढ़ोल- मंजीरे नाद कंठ
उन्मुक्त विचरण
अल्हड़ ग्राम बालाएं
तीर धनुष से सजे-संवरे
भुंजियां माड़ियां छोकरे
थिरकते लया चेलिक के पांव
आज भी आंखों में तैरते वह गांव
आंचलिकता से सिक्त
शब्दों से मिला मुझे प्रसिद्धि
किशोरावय से ही उपलब्धि
मन दौड़ता हैं उन्ही के समीप
शहरी मित्रों का उपहास
कि आज तक मैं देहाती हूँ
तथाकथित प्रोगेसिंव
नारी मुक्ति पर बीसियों पेज
लिख मारने के बाद
मांस मच्छी मंद
बालाओं के संग
पंच मकार की अनुगामी
रे अघोरी खल दुष्ट कामी
साले कोरे बुद्धिजीवी
बने हो इसलिये पड़ोसी
* * *
एक नर्स यहाँ रहने आई
एकदम तन्हा
पारधी के लड़के ने बताया
बाबु जी बहुत अच्छी हैं
उनके तीतर-बटेर की तरह
लगने लगी स्वादिष्ट
कभी-कभी तृप्ति की डकार सी
आने लगी स्वप्नारिष्ट
उस दिन दौड़ते आया
ये पत्तर दिए हैं आपको
तब एक पल लगा
कि उस सुन्दर नर्स के आने से
मैं भी कही
शिकारी से भिखारी न हो जाऊं
* * *
टूटी तन्द्रा देख एक दिन
पोष्ट करने लिफाफा
धीरे -धीरे बढते
प्रीत का पौधा
कभी थामते नर्स की थैला
पाकेट पर रखते पैसा
लानी हैं गृहस्थी के सामान
होते रहा खुश और हैरान
इस तरह कैसे वो
अपना बना ली
अपने मरीज से
रोज सपने में
मिलने लगी
* * *
करे मन दिल्लगी
पर दिमाग की मनाही
द्वंद्व में मनो- मतिष्क
तुम्हारा किसी एक का होना
लाखों को बेसहरा करना
सोच लो तुम बने नहीं
किसी एक एक के लिए
हो तुम सबके लिए
सच हमें हमारी विचार ही
करते हैं उन्नत व अवनत
स्वाधीन होकर भी
पराधीन सतत ...
-डां. अनिल भतपहरी
रचनाकाल सितबंर 1994 हमारे शीध्र प्रकाश्य काव्य संग्रह" हड्डी की जीभ नहीं कि न फिसले" से।
चित्र - क्लब महिन्द्रा रिसार्ट मनाली की सुबह ।
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