Tuesday, June 23, 2020

काढ़े गये पैबंद हैं

काढ़े गये पैबंद हैं

बातों ही बातों में मुस्कुराना पसंद हैं
तेरा युं ही हरदम मुस्कुराना पसंद हैं

गर डूबे रहे रंज ओ-ग़म की दरिया में
तो ख़ाक क्या यारों जीवन में आनंद हैं 

तकलीफ़ किसे ,कहाँ नहीं है ऐ दोस्त 
हरदम रोते रहना भी क्या कोई ढंग हैं

एक  पल  सुख  और एक पल दु:ख 
जिन्दगी के चादर में काढ़े गये पैबंद हैं

  डाॅ. अनिल भतपहरी

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