काढ़े गये पैबंद हैं
बातों ही बातों में मुस्कुराना पसंद हैं
तेरा युं ही हरदम मुस्कुराना पसंद हैं
गर डूबे रहे रंज ओ-ग़म की दरिया में
तो ख़ाक क्या यारों जीवन में आनंद हैं
तकलीफ़ किसे ,कहाँ नहीं है ऐ दोस्त
हरदम रोते रहना भी क्या कोई ढंग हैं
एक पल सुख और एक पल दु:ख
जिन्दगी के चादर में काढ़े गये पैबंद हैं
डाॅ. अनिल भतपहरी
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