योग दिवस पर विशेष -
श्रमण चरावेति एंव गुरुमुखी ही सतनाम संस्कृति हैं
सतनाम -धर्म संस्कृति सदैव गतिमान रहा है।
निरंतर यात्रा और आयोजन गुरुघासीदास और उनके पुत्र वर्तमान में वशंज एंव साधु संत प्रज्ञावान लोग करते आ रहे हैं।
गुरुमुख संस्कृति यानि कि गुरुओं द्वारा सदैव शिष्यों तक पहुँच कर उनके सम्मुख सदुपदेशना करना होते है। इसलिए वे लोग रामत -रावटी करते हैं। इसलिए जनमानस में रमता जोगी बहता पानी जैसी उक्तियाँ प्रचलित हैं।
बुद्ध कबीर नानक रैदास गुरुघासीदास सभी महायात्री थे सदैव गतिमान ... श्रमण चरावेति एंव गुरुमुखी ही सतनाम संस्कृति हैं।
स्थिर व रुढ -मूढ तो मंदिर, मूर्ति ,पंडे- पुजारी हैं। जहाँ भक्त चलकर जाते व सब कुछ लुटा कर आते हैं।
संत-मत में ऐसा नहीं है।
यहाँ तो सदगुरु शिष्यों /अनुयायियों के यहाँ पहुचते हैं।
यही रामत- रावटी हैं।
एक मंगल भजन द्रष्टव्य हैं-
मोर कर्म बडे़ मोर भाग्य बड़े मोर घर साहेब आए बिराजे ...
जहां सद्गुरु आकर आसन में विराजते हैं सम्मुख जनमानस को सदुपदेशना करते हैं योग -साधना ,ध्यान- सुमरन सिखाकर उनमें आत्मबल भरते हैं वर्ष भर की संताप कष्ट भूल गलति आदि को समोख लेते हैं सार्वजनिक रुप से स्वीकरोक्ति व क्षमा याचना करते हैं। और पुनश्च जीवन में उर्जा भरकर नव कलेवर के साथ जीवन संधर्ष मार्ग पर चलने प्रेरित करते हैं। इस तरह देखे तो सतनाम संस्कृति एक विशिष्ट गुरुमुखी श्रमण चरावेति संस्कृति हैं जो निरंतर गतिमान हैं ....
यह मानव सभ्यता के आरंभ से अब तक आबाध गति से चला आ रहा हैं ... अनेक महात्मा गुरु उपदेशक पथ प्रदर्शक हुए उनमें महाम २७ बुद्ध पुरुष सहित तथागत बुद्ध कबीर नानक रैदास गुरुघासीदास सदृश्य महान प्रवर्तक हुए हैं, होते रहेन्गे ....
हमारी शीध्र प्रकाश्य पुस्तक " सतनाम धर्म -संस्कृति " से
।।सतनाम ।।
-डाॅ. अनिल भतपहरी
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