।।बस्ती तंग दिलों की ।।
ज़बान तेरी मरदूद तीखी बहुत हैं
तभी तो ल़ब तेरे पानी पीती बहुत हैं
पड़ा है सुखा इसलिए रेत का समंदर हैं
बिन मोतियों के कंटीली सीपी बहुत हैं
बेफिक्र परिंदे उडे़ तो कैसे आसमां पे
ये तीर -ए -नज़र आपकी तीखी बहुत हैं
उगलती हुई ज़हर बिताई उम्र -ए-तमाम
इतनी कटुता लेकर क्यों कोई जीती बहुत हैं
रही अस्त -व्यस्त और पैंबद भरा जीवन
ता उम्र लोगों की फटी सीती बहुत हैं।
यहाँ गुज़ारा नहीं अनिल बस्ती तंग दिलों की
निकलेगी गाड़ी कैसी सकरी गली बहुत हैं
-डॉ. अनिल भतपहरी
श्रवण कीजिए -
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