।।धनहा चाकर ।।
भोरहा ल
भर्री के
भरका मं
भर के
मसक
बउग बो
बतर बने हे
भभकौनी के
चिखला मं
झन फदक
छोड़ दे
अभी उन ल
नींदा / रोपा मं
देबोन चभक
डारबोन
खातु गोबर
असो उपजहिं
पाछु ले आगर
चलन दे
धरर-धरर
कोपर-नागर
जावय झन रबक
सिरजा तय
सुम्मत के सख
रहे धनहा हमार
चउक चाकर
पुरखा के असीस
उकरेच आंकर
करथस काबर
संसो फिकर
लगय झन
काखरो लिगरी
चारी अउ नजर
झन भुलाबे
सियान के सबक
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