Thursday, June 11, 2020

सतनामी इतिहास

🖍️ नरेन्द्र भारती
कुछ लोग कहते हैं इतिहास सिर्फ अंग्रेज ने लिखा है।और उनके हि लिखे को मानते हैं पतियाते है। वास्तव में उन्हें सतनामी समाज का इतिहास का वास्तविक इतिहास ही पता नहीं। हमारे पुरखों के पास भी बहुत ही सटीक और स्पष्ट इतिहास का ज्ञान था।जो अपने मौखिक स्वरुप में था। क्योंकि गुरु घासीदास ने किसी प्रकार के लेखन से मना कर दिया था। They have no written creed. (सेंट्रल प्रोविंस गजेटियर)
       और ghasidas the author of the movement, like the rest of the community,was unlettered (द लैंड रेवेन्यू सेटलमेंट आफ बिलासपुर १८६८
।  परन्तु हमारे सतनामी समाज के कुछ विद्वानों ने उन्हें लिखित करते हुए अक्षरबद्ध करने का कार्य किया।आज हजारों सतनामी समाज के साहित्य और ग्रंथ उनके प्रमाण है।
      हमारे गांव में भी कमरछठ के दिन पुजा का परंपरा था जिसमें आल्हासहित सतनामी बिरदावली कहा जाता था। मेरे पास पं गिरधर डहरिया रचित हस्तलिखित दस्तावेज कापी है। जिसमें उसका उल्लेख था। जिसे मैंने सुलेखित कर प्रमाण के तौर पर रखा हूं। स्व. पं जगतटंडन और पं रामप्रसाद डहरिया(है) के मुख से सुना था।वहीं आप सबके सम्मुख प्रस्तुत है:-
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अहो।बेटा सतनामी सुन लो, 
कौन है हम सतनामी जगसार।
सतनाम को केवल माने,
नहीं मानें कोई और आधार।।१।।
सतनामी जग में सत पुजे,
जिनके बल से टिके संसार।
ताकर बंस में है हम जनमे,
जन्में जिहा घासी सुखसार।।२।।
पवित्रदास, संतदास,जन्में,
सतखोजन के कुल आधार।
आदिकाल जो सत को पायो,
आतम शोध के करय प्रचार।।३।
सतनामी के नाव धारिके, 
संतों के लगावै बेड़ा पार।
जुग बलिदानी हम सतनामी,
राखय सदा ऊंचा व्यवहार।।४।।
टीक -टाक कोई भेद ना मानय,
नहीं मानय, देव सरग बिचार।
राहनी आपन जग से ऊची,
उची आपन कुल के व्यवहार।।५।
जे कारण सब काहय सतनामी,
सतनाम के प्राण आधार।
बात हमारी राजे सुन ल्यौ,
सुन लौ कुल कथा बिस्तार।।६।।
कितने बंस सतनामी सुनले,
कौन- कौन ,उनके गलहार।
कहां -कहां निवास थे उनके,
कहां -कहां उनके बिसतार।।७।।
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प्रथम बखानौ बंस घिवलहरा,
सतनाम के रे पतवार।
पवित्रदास के बंस जन्मे
सकल गुरु बंशज परिवार।।८।।
 दुसर बखानौ कठ भतपहरी,
 नुना बंश जोधा सरदार।
भानु ढिढी बंस बखानौ,
और कठैईया गोतियार।।९।।
बंस बघेला दुसर बखानौ, 
पुजे जग कारण बाघमार।
बादशाह जाकर लोहा मानै,
रनबाकुंरा थे सरदार।।१०।।
साध मत भये जोगी से,
दक्खिन कोशल गेये परचार।
रौतिहा बंस राय मनमाने,
पुजिपति और मालगुजार।।११।।
नारनौल और दक्षिण कोशल,
बसे सब कही रुचि बिसतार।
कोसरिया कोलिहा बंस है,
पालय पशु झारा झार।।१२।।
बड़े शुरबीर खुटे,चंदनिहा,
सुय बंस - कोईल,गहिरवार।
किरही बोईर पेड़ी बंस है,
कुररा बाद बने परचार।।१३।।
जांगडा बंस जरकोडिहा ,
बादे बने बंस बंजार।
आडिल,करकल ,पुराने,बंधईया,
पटेल, टंडईया बीर सरदार।।१४।
चतुरा बेटा चतुरबेदानी, 
सोनवानी, डहरिया - कडिहार।
सायतोडे, नेउर, नौरंगे,
ओगरे, सोनकेवरा,खिलवार।१५।
बड़े लडंका भुजबल - बखारी,
सरहा ,जोधाई,अतिबल सरदार।
सायबंस,बंसेज बनाफर,
सोनकेवरा, गुरु-पंच लठियार।१६
चेलकसेवई, भरिया, मनघोघर,
भैंसा, पुरैना कुशल व्यापार।
हाडबंस,मिरचा, सोनबरसा,
जोगी औ भुईफोर गोतियार।
बाद बने घासी परचारे,
सतनाम के उबारन हार ।।१७।।
सोनबरसा,मनमोहिते, सोनवानी,
 घिवलहरा , भतपहरी सरदार।
बघेला,राय, मंडल, अजगले, 
पहले बसे नारनौल हथियार।।१८
बरमदेव, महादेवा,महिलांगे,
माछीमुडी औ वाराभार।
बारमते और जंगरिया, 
इतने सुनैव पुरखा अनुसार।।१९।
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आगे सुनौ नारनौल की,
जहां रण करें सतनामी सरदार।
भीषण रण ज्यों महाभारत,
रनबांकुरे सतनामी नर-नार।।20
जजिया तो उपलक्ष मात्र था,
असली कारण अत्याचार।
रार मची थी चार बरस तक,
सोलह सौ संबत कर साल।।२१।।
जिसके पंथ में लड़े सब जाति,
मीणा,किसान औ कास्तकर।
घर के भेदी लंका ढाये,
साथ न दिए रसपुत परिवार।।२२
पांच हजार रण में जुझे, 
सिर काटायो गियाराह हजार।
सफल हो गये मुग़ल बादशाह,
करके छल कपट उपचार।।२३।।
बाचे फिर सब अन राज़ को,
जहां पहिले से थे परिवार।
९००आये दक्षिण कोसल,
बसे मनरुचि भाग अनुसार।।२४।
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दक्षिण कोसल के सतनामी,
बड़े किसान कुछ मालगुजार।
मराठी शासन ने लुटे,
सामंती का अत्याचार।।२५।।
दम से गुजरय सतनामी,
राखे धरम धरे हथियार।
सतनाम के ध्यान न छोडय,
छोडय नहीं करम व्योहार।।२६।।
औ गरीब दुबर जो थे,
वाहकर जीवन रहय निस्सार।
पल पल जीवन में दुःख भोगे,
रोवय सोच के तारणहार।।२७।।
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एक चौरासी बछर के बीते,
घासी जनमे मंहगु के लाल।
मानव कै अधिकार दिलाया,
बिना हाथ खडग-तलवार।।२७।।
सत के पुजा करौव बतायो,
मुरति पुजा कहे बेकार।
नाम पान उपदेश औ बानी,
छत्तीसगढ़ म करय परचार।।२८।
अगम अपार गुरु के महिमा,
सुनैव पुरखा मुंह अनुसार।
जात-पात के भेद मेटाये,
लेसय अ धरम के संसार।।२९।।
मनखे म स्वाभीमान जगाके,
मेटे राहय भाव हिनहार।
रुढ़िवादी के जर काटै,
 धरे  ज्ञान किरपान के धार।।३०।।
नर नारी सामान बताये,
परदा औ सति परथा बेकार।
चुरी परथा के रित चलाये,
टोनही परथा कहें धिक्कार।।३१।।
रोग- शोक सब झन के टारे,
मानय बाबा के चमत्कार।
मनखे मनखे एक बताके,
टोरय गढ़ ,अधरम के साथ।।३२।।
दमन करें के चाल चलावय,
 बनिया,बांभन, ठाकुर सरदार।
सतनाम ला बोरे खातिर,
पोची देवय अंग्रेजी सरकार।।३३।।
जन-जन हां सतनाम ला मानै,
बाबा बनगे कंठ के हार।
जाति-धरम औ बरन छोड़ के,
सतनामी बनेंगे संसार।।३४।।
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राजा गुरु बालकदास जी,
गुरु घासीदास के उत्तराधिकार।
करै परचार हाथी मां चढिके,
रामत परथा के अगुवार।।३५।।
सतनामी के मान बढाये,
सतनाम के करय परचार।
सतनामी ला सुनता करके,
राखय-महंत ,भंडारी, छडीदार।।३६।।
सरहा जोधाई दाये-बाये,
सोहय राजसि रुप आपार।
बल, बुद्धि के लोहा मानय,
ठाकुर बांभन-अंग्रेज सरकार।।३७।।
ऐसे गुरु थे बलिदानी,
महिमा ओकरो अपरंपार।
ऐसे बंस के है सतनामी,
जानौ आपन कुल के सार।।३८।।
भेद लडाई मन झन लानौ,
 सूनता  राखौ सतनामी चार।
जुर मिल सब आगू बाढौ,
अवसर खड़े हे बांह पसार।।३९।।
बालकदास जी नीति बनाये,
रामत लगा करय परचार।
गांव गांव संसथानी खोलै,
बाचय जेला सतनामी डिहवार।।४०।।
सतनाम के रिति नीति,
ज्ञान शोध के करय बिसतार।
स्वाभिमान के लेखा जोखा,
अटके नहीं सतनामी परिवार।।४१।।
कुल काज करे अपने हाथों,
अपने धन अपने व्यवहार।
आप चरावै, आप निरावै,
सतनामी सुनता सुखसार।।४२।।
संत महंत को आज्ञा दिना,
गांव रहे भंडारी छडीदार।
सतनामी संगठित किन्हा,
रामत करय गुरु भंडार।।४३।।
भुमि हीन के भुमि खातिर,
गरजे सम्मुख अंग्रेज सरकार।
शिक्षा दीक्षा के नीति खौलौव,
जो जीना है देश गुजार।।४४।।
तेहि परमान से शासन घुमे,
भेंट दिया सोना तलवार।
हाथी -घोड़ा भाला- बरछी,
तबल, सिंघासन पर असवार।।४५।।
भुजबल,बखारी , सुंदरी,रूपन 
सुकुल, सिलाल, सरहा -जोधा,
आदि सब थे बीर आपार।
अतिबल,सैनी,माधोदास थे
पुहुप,बिसाल और छत्रसाल।
सतनामी सब बड़े बीर थे,
नाय लड़ईया कोनो हथियार।।४६।।
अखाड़ा करय, रण भांजय,
बाजय मांदर अपरंपार।
अमर दास गुरु पंथी नाचय,
नाचय सब सतनामी सरदार।।४७।।
गुरु ज्ञान के सीख परचारै,
महिमा गावै नर और नार।
सतनामी बने कतको तैलासी
घुमत फिरे चेटवा परचार।
जहां पर गुरु समाधि लिन्हा,
मरवा दिया, मति को मार।।४८।।
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सतनामी घर अचल संपत्ति,
दुध दही के रे बोहय धार।
आपन करनी लुटा दियो सब,
कुछ नशा,कुछ खातिर नार।४९।
प्रकृति बड़ा नाश धरायो,
गांव उजड़ते बसते भरमार।
ठाकुर पंडित चाल रचावै,
छिन लैवै जनेऊ अधिकार।।५०।
सत्ता,धनबल और जनबल से,
सतनामी पर करै अत्याचार।
जो सतनामी रार मचावय,
धर लेगय गोरा सिपेसलार।।५१।।
छल, प्रपंच इतिहास बिगारै,
लिखवावै बहु अनाचार।
लेखा मेटे जौन जात के,
तेहिमन ला काहय चमार।।५२।।
नैनदास और अगमदास जी
नागपुर मा लिखईन करार।
सन् १९२६था
 लिखें इतिहास अंग्रेज बरार।। सतनामी है केवल सतनामी
झन पढ़ें लिखे जाय नाम बिसार।।५३।।
 मगर जमीनदारों के बुते,
चलता रहा घृणित परचार।
गाय, बैल, भैंस ले जावै,
छिनय जमीन खेत और खार।।५४।।
बहुत कलैश उठायो है पुरखा,
राखे खातिर बीज आधार।
तभे अभे बाचे है सतनामी।
ठाढे अभी गुरु परिवार।।५५।।
मुड़ कटायो,-घुटना नहीं टेकय,
भले चमड़ी उधरायो मार।
अपन सत नहीं छोडय सतनामी,
राखे राहांय उचा व्योहार।।५६।।
आगे अउ सुख के दिन आही,
टुटही बेड़ी दुख के सार।
करम कमावौ,मान बढावौ,
जग तुम सतनामी सतसार।।५७।।
हीनता मन तुम मत लानौव,
बाढव आघू धरम असवार।
ज्ञान कृपान घासीदास दिये,
बालकदास खांड़ा के धार।।५८।।
कुल कलंक जुर मिल मैटौव,
 जेला पापी मढ़े माथ हमार।
आखर-आखर बोध करौ सब,
बनौव सतनामी गले के हार।।५९।।
मति अनुसार गाथा बतायेंव,
सुने हावंव पुरखा अनुसार।
भुल चुक संत लैहौ सुधारें,
महु आंवव लईकेच तूंहार।।६०।।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
 
यदि इतिहासिक  रूप से हम आज अध्धयन करते हैं। तो पाते हैं कि उक्त घटना क्रम इतिहास में भी संक्षिप्त में दर्ज है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि हमारे पुर्वज को भी गुरु घासीदास के सतनाम आंदोलन और धर्मोंपदेश का पुरा ज्ञान था।
वस्तुत: हमें आज ऐसे ही प्राचीन लेखों का संग्रह और मौखिक गाथाओं को लिपिबद्ध करने चाहिए। ताकि हम सतनामी समाज के गौरवशाली इतिहास को जान सके और बता सकें।
🙏 धन्यवाद
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
सतनाम

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