।।सतनाम।।
सतनामी समाज
गुरुप्रधान नही
बल्कि गुरुमुख समाज है।
इनका ध्यान रखे और
"गुरुमुखी समाज "शब्द को
प्रचलन में लावें।
।। सतनाम ।।
।।गुरुमुख हंसा पार उतरगे नेगुरा ह गये भुंजाय ।।
इस साखी के अर्धाली का संदेश जाने कि गुरुमुख हंसा मतलब जो व्यक्ति या समुदाय गुरुमुख है । वे गुरु के सानिध्य में रहे गुरु के श्रीमुख से सतनाम दर्शन और गुरुवाणी की वृहद व्याख्या श्रवण करते हुए उनकी वाणियों को मन वचन कर्म से व्यवहृत करते हो ऐसे व्यक्ति / समुदाय जो कि गुरुमुखी हंसा थे वह भाव पार हो गये ।संसार सागर के पार उतर गये और जो नेगुरा अर्थात् गुरु विमुख थे वह जल भून गये/खुवांर हो गये।
स्पष्टत: अवलोकन करे कि गुरु के समक्ष नाम- पान लेना सद्मार्ग में चलना निरन्तर गुरु वाणी को समर्थ गुरुओं के मुख से श्रवित करने वाला संत समाज जिसे सतनामी कहा गया यह गुरुमुख समाज रहा है।वह गुरु प्रधान समाज कैसे होन्गे भला?
विचारवान इन गुढार्थ को समझे और भ्रम से रहित होवे।कोई भी व्यक्ति यदि वह वयस्क है तो वह स्वयं अपने घर परिवार का प्रधान है।तथा कुशल व्यक्ति अपने गांव समाज का प्रधान हो सकता है।
गुरु सदैव धर्मोपदेशक होता है वह प्रधान मुखिया आदि नही है। यदि कभी कही ऐसा हो भी गये है तो भी उनका सम्मान गुरु के रुप में ही होते आ रहे है ।
।। सतनाम ।।
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