प्रति
माननीय दिनेश साध साहब जी मुंबई
(प्रतिनिधि सतनाम धर्म संस्कृति नारनौल शाखा )
प्रणाम
जय सतनाम
सतनाम धर्म संस्कृति के छत्तीसगढ शाखा में सर्वमान्य गुरुग्रंथ की अनुपलब्धता व आध्यात्मिक क्षेत्र में अरुचिपूर्ण मन: स्थिति पर केन्द्रित आपका महत्वपूर्ण आलेख पढ़ा और पढ़कर लगा कि आप सच्चे हितैषी हैं जो हमारे सर्वांगीण विकास हेतु चिंचित और उद्वेलित भी हैं। आपकी दर्द भी यहाँ के आध्यात्मिक पक्ष की कमियाँ देख छलक आते हैं। व्यवसाय जगत में निरंक स्थिति से आप सदैव दुखी नजर आते हैं। अनेक बार आप हमारे बीच आकर इस बात को बडे शिद्दत से रखते आ भी रहे हैं। फलस्वरुप धीरे धीरे हमारे कुछ युवा उद्यमी कुटीर व लधु उद्योग में जोखिम उठाने लगे हैं।
गुरुग्रंथ यानि गुरुघासीदास के सुरुचिपूर्ण चरित गाथा और मानवतावादी दृष्टिकोण को विकसित करने नीति व उपदेश परक रचनाओं की सतनाम पंथ (छत्तीसगढ )में कमी नहीं हैं।
अबतक १० महाकाव्य और 200 से ऊपर विश्लेषणात्मक पुस्तकें प्रकाशित है। जिसमें शोध ग्रंथ तक सम्मलित है। और अनेक पत्र पत्रिकाएं भी उपलब्ध हैं।
सत्य ध्वज और अब सतनाम संदेश समाज की १९९० से अबतक नियमित प्रकाशित हो रहे पत्रिकाएं हैं। जिनमें ५००० पृष्ठ लिपिबद्ध हैं। जो किसी भी अध्येता और शोधार्थी के लिए उपयोगी है।
सतनाम पंथ में 80% लोग गुरु चरित को अच्छी तरह जानते सनझते हैं।
पर यह समाज छत्तीसगढ़ में कर्मकांड रहित सादगी पूर्ण रहन सहन पर आधारित गुरु मुखी समाज हैं।
लेकिन ग्रामीण पृष्ठभूमि अशिक्षा असंगठन और व्यवस्थित प्रचारको संचालको के अभाव में अपेक्षित प्रभाव नजर नहीं आते।
दर असल छत्तीसगढ़ी जनमानस चाहे वह सतनामी तेली कुर्मी आदिवासी जो भी हो वह इसी तरह से पहचान और अस्मिता हेतु संधर्ष रत हैं। कही कही तो ओबीसी समाज से सतनामी प्रभाव में बीस पडते हैं। शिक्षा व नौकरी में भी कम नहीं है।
हां निरंतर व नियमित धार्मिक आयोजन में जरुर फिसड्डी हैं। इसका कारण मठ मंदिर पूजा पाठ और दान दक्षिणा से रहित समाज हैं।
धीरे धीरे अब विगत २०-३० वर्षो में अनेक तीर्थ बन गये विकसित हो गये अब वहाँ सत्सञग प्रवचन भोग भञडारा होने लगे हैं। साधु व कलाकारों की अनेक मंडली देखने में आने लगे हैं।
राजनैतिक व प्रशासनिक ढंग से अनुपातिक प्रतिनिधित्व आरंभ से रहा हैं। पर इनकी प्रतिशत को और अधिक बढाने होन्गे। हमारे बच्चे अब अखिल भारतीय स्तर के प्रतियोगी परीक्षाओं में चयनित हो रहे हैं।
यह शुभ संकेत भी हैं। शैन शैन बेहतरीन होन्गे ऐसी उम्मीद हैं।
हा व्यवसायिक कृषि और व्यवसाय जगत में अभी तक कोई बडी उपलब्धि नहीं हैं। इस ओर ध्यान देकर आर्थिक मजबती लाना आवश्यक हैं।
साहित्य सृजन हेतु अब तो पहले से अधिक मेधावान साहित्यकार लगे हुए हैं। और निरंतर चलने वाली प्रक्रिया हैं।
आप सुदूर मुबंई में रहकर भी समाज के सर्वांगीण विकास हेतु चिंतित और सही मार्गदर्शन देते हैं। इसके लिए छत्तीसगढ़ शाखा के सतनामी समाज आभारी हैं । सदैव मार्गदर्शन लेते तत्पर रहते है आदरणीय व श्रद्धेय दिनेश साध साहब जी प्रणाम ।
इसी तरह की प्रेरक बाते आप यदा कदा देते और लिखते रहे ताकि जहां कमी है वह नजर आए और उसे दूर करने का सार्थक पहल किया जा सके ।
सतनाम पंथ धर्मग्रन्थ के रुप में अनेक ग्रंथ विभिन्न साहित्यकारों के उपलब्ध तो हैं बस उसे जन जन तक नि:शुल्क या कम से कम लागत पर पहुचाने और उनके नियमित पाठ परायण के लिए प्रयास करने होन्गे।
अनेक सञगठन व साधु संत / कला मंडली प्रयासरत भी हैं।
ग्रामीण जन छुआछूत से आत्महीनता से ग्रसित नहीं है।बल्कि वे अपने स्तर पर डटकर मुकाबला करते हैं।
आत्महीनता अक्सर हमारे नव शहरी पीढ़ियों में सर्वाधिक हैं। वो गांव और समुदाय छोडकर बस तो गये पर अपनी पहचान छुपाने गोत्र और संस्कृति पूजा पद्धति तक परित्याग कर दिए ।
और हिन्दू सवर्णो की तरह गायत्री भागवत कर्म कांड पूजा में डूब गये या ईसाई बौद्ध बन गये ।
दिक्कत उन्ही लोगों का है जो संशाधनों से लैस तो है पर वे दूसरों के आंगन में फूल उगाने में लगे हैं।
जबकि अपनी बगिया महक भी रहे हैं। पर उनकी सुगंध नहीं ले पाते उन्हे सर्दी हो जाते है यह बडी परेशानी है। और वही लोग उधर से कुछ सीखा सुखाकर हमारे यहां आकर ज्ञान पेलते है।
बहरहाल सर्वमान्य ग्रंथ जैसा कुछ होता नहीं ।
यह अनावश्यक रुप से गढे गये जुमले हैं।
रामचरित मानस महाभारत वेद उपनिषद पुराण तक सर्वमान्य नहीं है। उनके अनेक टिकाए और प्रक्षिप्तियां व पाठे हैं। और परस्पर एक दूसरे से अलग भी हैं।
वैसे ही अब तो बाईबिल कुरान तक के ऊपर प्रश्न खडे किए जा रहे हैं।
गुरुघासीदास उपदेश ,सतनाम सप्त सिद्धान्त, उनकी अमृतवाणी और बोध दृटाष्ट कथाए तो कबीर पंथ के "बीजक "और सिखो के" गुरुग्रंथ साहिब "जैसा सर्वमान्य ही हैं। इनमें छेड़छाड नहीं हैं। इसे "सतनाम धर्म ग्रंथ" की संज्ञा दी भी जा सकती हैं। सतनामी समाज के प्रबुद्ध लेखक कवि साहित्यकार सञत महंत गुरु इस दिशा में निरंतर अनेक वर्षों से प्रगतिशील छ ग सतनामी समाज के द्वारा एकत्रित होकर विचार विमर्श करते आ रहे हैं।
और सतनाम संदेश पत्रिका में उनकी समस्त प्रतिवेदन भी प्रकाशित होते आ रहे हैं।
केवल गुरुघासीदास मे विभिन्न गजेटियर और जयंती तिथि को लेकर मतभेद है। ऐसा प्राय: सभी गुरुओ संतो खासकर बुद्ध कबीर नानक आदि के साथ भी जन्म दिन तारीख सन विवादस्पद हैं।
यह अशिक्षा और तत्समय इतिहास लेखन न होने की प्रवृत्तियाँ के कारण स्वभाविक भी हैं।
पर यह महत्वपूर्ण नहीं हैं। महत्वपूर्ण उनकी वाणी उपदेश हैं। जो सभी लेखक एक सा उद्धृत करते हैं ।
हमलोग उनकी सार उपदेश सिद्धान्त और अमृतवाणी को ही गुरुग्रंथ धोषित करने की मन: स्थिति बना लिए हैं। क्योकि वही ओरिजनल और मूल तत्व हैं उनके कारण ही छत्तीसगढ़ की १६% जनता सतनाम पंथ को अंगीकृत किए है।
।।सतनाम ।।
डा अनिल भतपहरी 9617777514
anilbhatpahari@gmail.com
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