Thursday, July 2, 2020

कल तुम्हें ईश्वर बनना हैं

नवभास्कर ( अब दैनिक भास्कर ) १९९१ में प्रकाशित हमारी कविता - तुममें विद्यमान ‌हैं इंसान 
असल में इस कविता का शीर्षक हैं- " कल तुम्हें ईश्वर बनना हैं" इस शीर्षक से स्वदेश आदि में  यह प्रकाशित हुई और समकालीन समय में चर्चित भी ।तब हम दुर्गा महाविद्यालय में अध्ययनरत थे।

" कल तुम्हें ईश्वर बनना हैं"

विनाश की विभीषिका से 
सशंकित 
रे मन 
अधीर न हो 
तुम्हें ज्ञात नहीं 
महाप्लावन में 
हज़रत नूंह
शेष था सत्यव्रत मनु 
लंका में विभीषण 
कुरुक्षेत्र में परीक्षित 
कितना सुन्दर मोहक‌
नई सृष्टि रचें
आदमी के प्रवृत्ति से 
डरकर
इंसान बनने की 
ललक त्यागकर 
भूल रहें हो 
कि तुम में  
विद्यमान ‌हैं इंसान 
ईश्वरत्व हैं भीतर हैं
कल तुम्हें ईश्वर बनना हैं

       करोनो की कहर से संसार के सभी पंथ मजहब रिलिजन  के अराधना इबादत प्रार्थना  स्थल‌ आदि के पट बंद हो गये हैं। और ईश्वर खुदा गाड सदगुरु संतादि की  मूर्तियाँ आसन प्रतीक निसान आदि  के प्रति तेजी से जनमानस की आस्था क्षरित हो रहे हैं। 
   जीवित मानव जिसमें डां, इंजी ,ज्ञानी- गुणी,  संवेदन शील नेता- अफसर  व्यक्ति के ऊपर  जन विश्वास और श्रद्धा होने लगे हैं। यह बदलाव  महज एक सप्ताह से जारी हैं। आशा है कि अब सदा रहेन्गे ! और जो मिथकीय स्थापनाएं और मान्यताएँ हैं वह नये ढंग सत्याश्रित होकर मानव  सेवा सदन जैसे प्रतिष्ठानों में परिवर्तित  होन्गे। कलांतर में यदि ज्ञान या विज्ञानं और सक्षम संवेदन शील गुणी जनों  को ही जन जीवन   भगवान मान ले तो? ये कल्पित  भगवान प्रेमी और  विरोधी क्या करेंगे?जैसे सत्य करुणा प्रेम को भी ईश्वर मान लिए गये हैं और उनकी यश गान करते अनेक काव्य  महाकाव्य दर्शन आदि ग्रन्थ लिखे गये हैं। भगवान ईश्वर रब अल्लाह सत्पुरुष god गुरु सदगुरु  आदि शब्दों के विरोध से कुछ होने वाला नही। यदि विरोध करना ही हैं तो एक मनुष्य का दूसरे मनुष्य के साथ जुल्म, अन्याय ,ढोंग ,पाखंड ,उच्च -नीच, भेदभाव आदि कुरीतियों का कीजिये सदगुणों को आत्मसात कीजिये फिर देखे कैसे जमीं पे तारे उतर आयेंगे। जन्नत स्वर्ग हेवन  सतलोक यही  नजर आयेंगे।हमारी उक्त कविता ("तुम्हे ईश्वर बनना हैं"। जो तुममे विद्यमान हैं इन्सान शीर्षक से नव भास्कर 1991में छपी  हैं अंत की शीर्षक पंक्ति" कल तुम्हे ईश्वर बनना हैं" को विलोपित  कर दिए ।जबकि अन्य जगह यह इसी शीर्षक से   पूरी प्रकाशित हुई) मेंयही भावार्थ निहित हैं।इस पोस्ट को पढ़ कोई यह मत समझ लेना कि हम ईश्वर को थोप रहे हैं या उन्हें खारिज कर रहे हैं। या  पुनर्स्थापित करने में संलग्न हैं।
जो हो सकता हैं या जो होने की  संभावनाएँ हैं, उसे ही  अभिव्यक्त कर रहे हैं। सच कह कहने जहमत उठाते पुरी शिद्दत से कह रहे हैं- "कल तुम्हें ईश्वर बनना हैं।"

   -डा. अनिल भतपहरी/ 9617777514
सी- 11 ऊंजियार-सदन सेंट जोसेफ टाउन अमलीडीह ,रायपुर छग 

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