[2:12pm, 21/05/2016] डाँ.अनिल कुमार भतपहरी:
"तथागत बुद्ध बाबा और गुरु घासी बाबा "
तथागत बुद्ध बाबा और गुरु घासी बाबा के जीवन चरित साधना सिद्धि उपदेश व क्रियाकलापों मे एक अनुपम साम्य है।
आज बुद्ध पूर्णिमा के पावन पर्व पर दोनो प्रवर्तकों के परस्पर जुडी समान मानवतावादी दृष्टिकोण पर विचार करते है हालांकि दोनो के बीच दो हजार वर्ष का अन्तराल हैं। पर दोनो ने तत्कालीन सामाजिक वर्जनाओं के विरुद्ध जन जागरण चलाकर धम्म और पंथ का प्रवर्तन किए जो वास्तविक रुप से धर्म की श्रेणी में आबद्ध है। एक धर्म के रुप में प्रतिष्ठित हो चुका हैं,जबकि दूसरा प्रतिष्ठित होने के लिए प्रयारत (लंबित) हैं।
आइए दोनों की साम्यता पर विहंगम दृष्टि डालते हैं-
१ जन्म पूर्व
उनकी माताओं महामाया व अमरौतीन को गर्भावस्था मे अद्भुत मनोहारी स्वपन व विशिष्ट अनुभव हुये।
एक को हाथी और चमकते सितारे दिखी तो दुसरी आमा चानी और आगन मे (अन्जोर रौशनी )बिखरते देखे।
२. बचपन
सिद्धार्थ के जन्म के बाद ज्योतिष आये और चक्रवर्ती सम्राट व साधु बन जाने के घोषणा किये।
घासी के जन्म के बाद साधु आये शिशु को गोद व सर मे रख नाचने लगे।उनके नाम करण कर उनके पाव छु कर आशीष लिये।माता पिता हतप्रभ-सा देखते रहे।
३. बाल्यकाल
दोनो आम बच्चो से अलग ध्यान मग्न व शान्त चित्त कुछ खोजने जानने के लिये उद्विग्न।
पशु- पक्षी के उपर दया घायल का उपचार कर उन्हे दोनो द्वारा जीवन दान,महिमा मय व्यक्तित्व ।
४ युवावस्था
पराक्रमी पुरषार्थी , विवाह
स्वपसन्द वधु वरण। यशोधरा व सफूरा से।
एक का वैभव शाली विलासपूर्ण जीवन तो दूसरे का मर्यादा पूर्ण सुखमय जीवन।
५श्रेष्ठ गृहस्थ
पुत्र प्राप्ति,
६ जीवन मे दुख. का दिग्दर्शन .
७जन जीवन की पीडा अभाव व तिरस्कार से विचलित मन शान्ति व कुछ सत्य की तलाश मे यात्रा
८.वन मे तप कठोर साधाना ६ वर्ष व ६ माह
७ सिद्धी आत्म ज्ञान व आत्म साक्षात्कार ।
८ समाज मे आकर उन ज्ञान से सिद्धांत व उपदेश का प्रसारण ।
९ वर्तमान धार्मिक रीति -नीति सन्सकृति के समनान्तर सच्चनाम और सतनाम मत का प्रचार -प्रसार।
१० देशाटन प्रवास चातुर्मास रामत रावटी ।
११ बुद्ध ने अष्टमार्ग पन्चशील २२ प्रतिग्या ३७ पारमिता।सहित अपना सच्च्नाम दर्शन जन भाषा पालि मे लोगो सहज समझ आने वाली सरल शब्द मे व्यक्त किये।
१२ गुरु बाबा ने सप्त सिद्धान्त ९ रावटी २७ मुक्तक ४२ अमृतवाणी व दृष्टान्त बोघ कथाओ द्वारा जन मानस को सरल जन भासा छत्तीसगढ़ी मे सतनाम दर्शन व्यक्त किये।
१३ दोनो सत्य अहिन्सा सादगी व प्रकृतस्थ जीवन को महत्त्व दिये।
१४ दोनो द्रष्टा व उपदेशक ।
१५ भिख्खु सन्ध का निर्माण
१६ सन्त समाज का निर्माण, महंत साटीदार भंडारी
१७ ढोन्ग पाखन्ड. मिथ्या भ्रम के जगह सत्य की स्थापना।
१८ ईश्वर पन्डे पुजारी योग्य हवन
आदी कर्म कान्ड के स्थान पर
सहज योग ध्यान समाधि का प्रचलन कराये।
१९ तर्क पर आधारित ज्ञान मार्गी जीवन
२० निरंतर गतिमान , सत्संग प्रवचन और सात्विक रहन सहन श्वेत/ कषाय वसन
२१ जीते जी निर्वाण / परमपद की प्राप्ति !
प्राचीन बौद्ध ,सिद्ध व पाली साहित्य के अध्ययन से यह भी ज्ञात होता हैं कि भारत बौद्ध मय था बहुसंख्यक समाज परिश्रमी और सदाचारी थे उनका अस्तित्व आज पर्यन्त ग्रामीण जन जीवन में द्रष्टव्य हैं। सहज सरल जीवन दर्शन इन्ही संत गुरु प्रवर्तकों से ही जनमानस में परिव्याप्त हुआ है।
बुद्ध उच्चरित पाली के सच्चनाम ही गुरुघासीबाबा उच्चरित छत्तीसगढी के सतनाम है।
बौद्ध सिद्धो की वाणी प्राचीन पंथी व मंगल भजनो में अन्तरध्वनित हैं।
प्राचीन सहजयानी ही वर्तमान सतनामी हैं।
।। सच्चनाम -सतनाम ।।
बुद्ध जंयती की हार्दिक बधाई व मंगलकामनाएं
इस तरह से उक्त इक्कीस बिन्दुओं पर सामान्यतः विश्लेषण करे तो जो साम्यता दिग्दर्शन होते हैं।वह केवल संयोग ही नहीं अपितु दोनो के समान विचार धाराएँ है जो लोक कल्याण के मार्ग प्रशस्त करते हैं ।
डा. अनिल भतपहरी
९६१७७७७५१४
ऊंजियार - सदन अमलीडीह ,रायपुर
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