Saturday, June 13, 2020

सतनामी समाज और उनका प्रभाव


बहुजन समाज जो श्रमण हैं , परिश्रमी हैं और हर हालात में जीने की जीवटताएं हैं। वह किसी को छलता नहीं बल्कि सबके साथ सामनता पूर्वक व्यवहार करता हैं। वह दलित , याचक  कैसे ?
असल में हमें इन समुदाय में नये ढञग से आत्मविश्वास भरने होन्गे।
यह समाज मेहनत कश समाज हैं। अपने हाथो कमाकर पेट भरना जानते हैं। 
   उन्हे उनकी अपनी शक्ति को बताने होन्गे कि आप सब कैसे संगठित होकर  खुद मुख्तार बन सकते है।
   भले आपके पास संपदा न हो संशाधन न हो पर वोट तो हैं उनका सही इस्तेमाल करे यह शिक्षा या ज्ञान उन्हें संजीदगी से उनके  सहू हितैषी और साधन वाले समझदार लोग दे ।तो देर सबेर हालात बदलेन्गे । केवल गरियाने लताड़ने फटकारने और दो अक्षर पढ लिए थोडी बोल चाल सीख मतलब उन्हे उनकी औकात व जमीर दिखाने की जरुरत नहीं ।
    बहुत दुख होता हैं कि बार बार इन समुदाय  झाडू ठेकली वाले कहे जाते हैं। धिनौनी इतिहास की शर्मनाक बातें बताई जाती इसलिए कि ये उद्वेलित हो विद्रोह करे । पर इससे न वे उद्वेलित होन्गे न बागी बनेंगे न विद्रोह करेन्गे बल्कि डिप्रेशन में चले जसेन्गे ।
   यही होने लगा है। जिस समुदाय को संतो गुरुओ ने धैर्य धराते आत्मबल बढाया आज कुछ तथाकथित लोग  गुलामों को गुलामी की जंजीर तोड़ने उलूल जुलूल पाठे पढाए जा रहे हैं। फलस्वरुप ८०% में उनके साथ १०% नहीं संग साथ होते क्योकि इन्हें न समझाने की तमीज हैं। और आत्मबल बढाने की सलीका पता हैं।
  माना कि वह भी एक तरीका पर यही प्रमुख और एक सूत्रीय सटीक फार्मुला हैं। ऐसा नहीं ।
   आत्मबल बडे तो सञगठित सतनामी जैसे छत्तीसगढ़ में किया राज रजवाडे ले लिए और समकालीन राजनीति के प्रमुख बटैत व हिस्सेदार बन गये ।शेष प्रांत या जगहों पर अनु जाति वर्ग के लोगों में वह आत्मविश्वास और अलग संस्कृति विकसित करने का अब भी साहस नहीं हो सका ।
वे लोग आज भी देव धामी पञडित पुजारी के चक्रव्यूह में फसे हुए हैं।
     छत्तीसगढ़ के सतनामियों से प्रेरणा तो महाराष्ट्र के  महार उप के  चमार  म प जाटव परिहार आदि को लेना चाहिए। 
   कैसे यह समुदाय मंदिर मूर्ति पंडे पुजारी को बहिष्कृत कर जैतखाम और गुरु संत महंत के सानिध्य में एक शानदार समानता पर आधारित संस्कृति विकसित कर लिए और प्रदेश में अपनी जनसंख्या के हिसाब से आजादी के बाद से अबतक विधायक मंत्री सांसद बनकर मुकाम हासिल किए।
    और धीरे धीरे विकास की ओर अग्रसर होते शिक्षा व रोजगार व स्वरोजगार की ओर बढते जा रहे हैं।
       ऐसा अन्यत्र तो नहीं हुआ क्यो नही हुआ यह भी विचार करे।
          हा वर्तमान सदैव असंतोष का रहता है। सतनामी अभी उठ खडा हुआ है उसे सबसे आगे निकलना हैं। वह  जोश दिखता भी हैं अनेक समाज हमारे अनुशरण करते हमसे भी आगे निकल रहे हैं।
उसमे कुर्मी तेली यादव प्रमुख हैं।
आज से ३०-४० साल पहले इन समुदाय के कोई सांस्कृतिक व राजनैतिक जागरण नहीं थे आज केवल सतनामियों के कुशल संगठन और पृथक सांस्कृतिक मान्यताओं के देखा देखी समाजिक संगठन और सभी पार्टियों से जनसंख्या अनुपात में नेतृत्‍व मांग सके है। 
    तो छत्तीसगढ़ में यह प्रमुख समुदाय हर समुदाय के जागरण का कारक और मार्गदर्शक हैं। पर दुर्भाग्यवश हमारे लोग इसे ठीक ठाक नहीं जानते न समझते  और किसी अन्य प्रांत के अनु जाति के कथित लीडरों के बहकावे में सतनाम संस्कृति का ही परित्याग या उनकी अवहेलना करने में लग जाते हैं।
   और यह समझने की भूल या मुगालते में है कि बिना सतनाम के यहाँ  राजनैतिक रुप से हुक्मरान बन सकेन्गे ।
रामनामी सूर्यवंशी जो वाकिय में मानसिक दासता के साथ गुलामी के दंश में थे जरुर उधर यह फार्मूला चल पडा पर मैदानी क्षेत्र में टाय टाय फिस्स हो गया।
इसलिए पहले सांस्कृतिक व ऐतिहासिक तथ्यों को जाने समझे फिर यथोचित  काम करे ।
यु डायलाग बाजी और उलाहना आलोचना कर लोगों के बीज प्रखर स्वाभिमानी सतनामी समाज का अपने ही लोग सार्वजनिक अपमान तिरस्कार न करे।
दुसरों से निपटे जा सकते पर अपनों से निपटना मुस्किल है। क्योकि न उन्हे काट छाट या डाट डपट  सकते न  उन्हे बिलगा सकते।
वैभव और स्वाभिमान की गावे पुरखो की पराक्रम सुनावे संगठित व लाम बंद होवे हमारे सबसे बडा अस्त्र हैं। समानता और स्वतंत्रता उसे सार्वजनिक रुप से बताए सबको जोडे और जुडकर सब मिलकर हुक्मरान बने ।
अकेले हुक्मरान बनने की न सोचे यदि ऐसा होगा तो शोषण दमन कभी खत्म नहीं होगा।
   हम मानवतावादी है मानवता का कल्याण चाहते हैं विष पीकर सबका भला चाहने वाले सांस्कृतिक चेतना के उन्नयक हैं। 
       
        
   

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