Wednesday, June 24, 2020

मान दिनेश साध डा अनिल भतपहरी ‌वर्तालाप‌

[6/23, 10:36] dinesh sadh: सतनामी समाज अपने समाज का नाम आसमान में लिखा हुआ देखना चाहता है। ये बहुत अच्छी बात है लेकिन हमें हमारे परम पूज्य बाबा घासीदास जी के बताए रास्ते पर चलना परम आवश्यक है। हम अपने समाज के लिए, समाज के हित में अपने ईगो, अपने अहंकार को छोडेंगे नहीं तो हमारे समाज को आसमान पर लिखा देखने की इच्छा करना भी बेकार है। दुनिया में अनेक ऐसे समाज हुए हैं, आज जिनका कोई नाम तक नहीं जानता है। इसका कारण उनमें ईगो और अहंकार करने की नासमझी ही थी। किसी समय उन समाजों को लोग जानते थे, पहचानते थे। लेकिन बाबा घासीदास जी एक सूर्य बन कर दुनिया के आसमान पर चमके और वे ईगो और अहंकार करने वाले समाज लगभग विलुप्त हो गये। ये मत भूलो कि हम सब भी ईगो और अहंकार से ग्रस्त हैं। हमें गुरू घासीदास जी की दी हुई महान विरासत को सम्हालने की जिम्मेदारी भी मिली है। अगर बाबा जी नहीं होते तो क्या सतनामी समाज का दुनिया में कहीं नाम हो सकता था ? नहीं हो सकता था ! आज हमें अपने गुरू के सामने अपने अहंकार और ईगो की बलि देनी ही होगी। जब तक हम सब मिलकर अपने ईगो और अहंकार की बलि नहीं देंगे तब तक हमें अपने समाज को महान बनाने का सपना देखना भी नहीं चाहिए। सबसे बडी बाधा हमारा अहंकार ही है। एक विकार छोडने के बाद हम अपने दूसरे विकारों को भी आसानी से चुटकी बजाते छोड सकते हैं। तब वह समय जरूर आएगा जिसमें हम सब सतनामी होने का गौरव प्राप्त करेंगे। मानो या ना मानो !

दिनेशकुमार साध सतनामी,
23-06-2020
[6/23, 19:44] dinesh sadh: सभी सतनाम‌ भवन, सतनामियों के घरों में सुसज्जित रूप से यानी कांच लगे फोटोफ्रेम में सतनाम लिखा होना और गुरू जी की आरती लिखी होने से वातावरण सात्विक रहता है। वहाँ गुरूजी स्वयं कवच के रूप में विराजमान रहते हैं। घर में सुख शांति और आपस में एक दूसरे के प्रति प्रेम रहता है।
[6/24, 12:25] dinesh sadh: सतनामियों की विभिन्न शाखाओं में जब हम नज़र डालते हैं तो दिखाई देता है कि सतनामियों की सभी शाखाओं में कम या ज्यादा आध्यात्मिक, आर्थिक, सामाजिक व व्यापारिक विषमताएं हैं। इससे शाखाओं में एकरूपता ना दिखना चिंताएं पैदा करता है। अब एकरूपता के लिए जो सबसे ऊपर है, वो सबसे नीचे वाले की बराबरी पर आकर अपने में एकरूपता लाए या वह सबसे ऊपर वाला सबसे नीचे वाले को ऊपर लाकर अपने बराबरी में खडा करके एकरूपता लाए। समाज का बौद्धिक वर्ग एकमत से यही प्रस्ताव रखेगा कि ऊपर वाला नीचे ना आए बल्कि नीचे वाले अपने भाई को हाथ पकड कर अपनी बराबरी पर लाकर खडा करे और तब जाकर सही अर्थ में एकरूपता कही जा सकती है। बस मैं रातदिन इसी प्रयास में तरह तरह से छत्तीसगढ़ के सतनामी समाज को सम्प्रेरित करते रहता हूँ। मेरी भावना कोई नहीं भी समझ पाता होगा तब भी प्रयास जारी रखने की अपनी नियत पर रहने का संकल्प है मेरे मन में। अनेक प्रकार से प्रेरित करने के अन्तर्गत एक बात यहां फिर प्रस्तुत कर रहा हूँ, आशा है कि आप सब मेरी भावना को और बात को अवश्य समझेंगे।
नारनौल शाखा के साध सतनामियों का आध्यात्मिक पक्ष हमेशा से उत्कृष्ट रहा है चाहे जमाना कितना भी बदल गया हो या आधुनिक हो गया हो। पिछले कुछ समय में मैंने आपके बीच साध सतनामियों के बालक बालिकाओं को ध्यान आसन की मुद्रा में दिखाया था। साथ ही सुझाव भी दिया था कि छत्तीसगढ़ के सतनामियों के बालक, बालिकाएं व बडे भी इसी प्रकार से बाबाजी का ध्यान करें, जिससे हम सबका आत्मविश्वास मजबूत होता है बल्कि हमारे चारों तरफ बाबाजी कवच बन कर उपस्थित रहते हैं। मेरी बात को आप एक अंधविश्वास कह सकते हैं तो सवाल उठता है कि बाबाजी ने भी ध्यान साधना ही तो की थी जिसकी शक्ति के सामने उस काल खंड के ब्राह्मणवाद और धार्मिक पाखंड को उखाड फेंकने में सफलता प्राप्त हुई थी। मैं उसी बात को आज स्थापित करने के लिए एक जीती जागती मिसाल आपके सामने रख रहा हूँ। इसके बाद आप जो भी निर्णय लेंगे वह आपका निर्णय होगा लेकिन मैं मेरे कर्तव्य निभाने की जिम्मेदारी से मुक्त हो जाऊंगा। 
इस समय सारी दुनिया में कोरोना के कारण व्यापार, कारोबार, उद्योग बंद की स्थिति में हैं। ऐसे में अगर मैं आपको ये कहूँ कि नारनौल के साध सतनामियों को तो जरा भी फुर्सत नहीं है तो शायद आप विश्वास नहीं करेंगे। इस चमत्कार को हम सब देख रहे हैं कि जहां पूरे देश में बेरोज़गारी और मंदी छाई है वहीं साध सतनामियों के कारोबार अचानक पूरे जोर शोर से चल रहे हैं। देखना हो तो आपका स्वागत है फर्रुखाबाद में आकर देख सकते हैं कि दिल्ली, सूरत और ईरोड से अनेक साध सतनामी फर्रुखाबाद में आकर छपाई के काम में कितने जोर शोर से लगे हैं कि वहाँ कोई बेरोज़गारी, मंदी का कहीं दूर दूर तक नामोनिशान नहीं है। मैं इसे बाबाजी का चमत्कार ही मान सकता हूँ। जब हम उनकी शरण में होंगे तो वे स्वयं हमारी चिंता करके हमें हर मुसीबत से बचाएंगे। इसी बात को मैं छत्तीसगढ़ के अपने सतनामी भाई-बहनों से कहता हूं कि हम तो अपना समय ऐसे ही गुजार ‌दिये लेकिन बचा हुआ समय अपने बाबाजी की शरण में जाकर ध्यान साधना कर लें ताकि आने वाली नई पीढी अपने बडों पर और समाज के आध्यात्मिक पक्ष पर गर्व कर सके।

दिनेशकुमार साध सतनामी,
24-6-2020.
[6/24, 14:14] Anil Bhatpahari: वाह !प्रेरक 

छपाई मसलन कपडे पर प्रिंट छपाई ? 

छत्तीसगढ़ में अभी धान बुआई चल रहे हैं। 
ग्रामीण तो बेचारे कृषक हैं रात दिन धूप पानी ठंड में परिश्रम करते जीवन व्यतीत करते हैं । और मेहनत बाद वक्त निकलते हैं तो सुबह शाम सतनाम सुमरन कर लेते हैं। 
पर शहरों में नौकरी पेशा वाले न सतनाम सुमरते हैं न नित्य आरती वगैरह बल्कि अपनी वक्त आध्यात्मिक साधना हेतु नहीं इंटरटेनमेंट में लगाते हैं ।जिससे उनके वक्त तो कट रहे हैं पर अर्जन कुछ नहीं ?
    फलस्वरुप यही तबका भटक रहे विभिन्न जगहों पर आध्यात्मिक जरुरतों के प्रतिपूर्ति करने में इसलिए वह रामास्वामी रामपाल सतपाल जयगुरुदेव श्रीमाली गायत्री भागवत आदि के फेर में फंसा हुआ है। कोई ईसाई तो कोई बौद्ध संस्कृति को आत्मसात करने लगे हैं।
    यह बडी विडंबना हैं कुछ लोग केवल संगठन के नाम पर राजनैतिक महत्वाकांक्षा को साधने पद प्रतिष्ठा पाने में लगे हुए हैं।
युवा और बेरोजगार वर्ग तो चाहते है कि सतनाम के माध्यम से सत्ता और उनके माध्यम से सबकूछ पा ले ? 
पर यह केवल दीवा स्वप्न हैं। जब तक अच्छे संस्कार और सदाचार समाज में नहीं होगा कोई भी उपलब्धियां अर्जित नहीं हो सकते इसलिये संस्कार व सदाचार हेतु प्रज्ञावान संत समूह को समवेत जन मानस के समीप जाना ही होगा ... इनके लिए सांस्कृतिक आयोजन और सोसल मीडिया हो या प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से जनमानस तक पहुचने ईमानदारी से प्रयास करने होन्गे।
सभी शाखाओं में परस्पर सौहार्द और सद्भाव स्थापित करने होन्गे और निरंतर संपर्क में बने रहने और वैचारिक आदान- प्रदान के साथ साथ सामाग्री व मानव संशाधन का भी आदान प्रदान व सगे संबंधी होने बहुत आवश्यक भी हैं। क्योंकि इससे बाह्य जगत के साथ साथ अन्तर्जगत भी प्रभावित होते हैं। आज जरुरत इनही सब चीजों का हैं।

आप जैसे विचारक व गुणी लोग ही हमारे सत‌नाम संस्कृति में आमूल चूल युगानुरुप  परिवर्तन ला सकते हैं। इसके लिए जैसा हो सार्थक व सफल  प्रयास होना चाहिए। इनके लिए एक निश्चित धनराशि और प्रबुद्ध जनों का संत मंडली  या शिष्ट मंडल  हो जो समय समय पर विचरण करते जनमानस में सदुपदेशना करे मार्ग दर्शन करे । 
    ।। सत श्री सतनाम ।।
     -डा. अनिल भतपहरी / 9617777514
[6/24, 14:17] dinesh sadh: भाई जी,
आप सब आगे बढिये, हम आपके साथ हैं। सतनामियों की पताका दुनिया में एक न एक दिन जरूर फहराना है। बस समय कितना लगेगा ये नहीं कह सकता। सांसों का भरोसा नहीं, चाहता हूँ कि अपने जीवित अवस्था में यह देखने का सौभाग्य मुझे मिले, इसके लिए गुरू जी से, बाबाजी से मैं अर्दास करते रहता हूँ। लेकिन बढना तो आपको ही पड़ेगा।
[6/24, 14:34] Anil Bhatpahari: आपकी कामनाएं सदगुरु शीध्र पूर्ति करे ऐसी मंगलकामनाएं है ।आदरणीय 
पहले के अपेक्षा अब लोग जागृत / सक्रिय भी हो रहे हैं साहित्य लेखन चिन्तन मनन और आयोजन भी सतत चल  भी रहे हैं और  वैश्विक संकट कोरोना काल में भी जरुरत मंदों की सेवा आदि हमारे लोग कर भी रहे हैं। 
    आगे और भी बेहतर होन्गे 
साथ ही नारनौल दोसी पहाड , हरियाणा - पंजाब , कमौली धाम कोटवा उप फर्रुखाबाद उप तपोभूमि गिरौदपुरी धाम छग सतनाम धाम खडगपुर  पं बंगाल सतनाम धाम नागपुर  महाराष्ट्र  एंव मिनीमाता जन्म स्थली जमुनामुख दौलगांव असम सतनामियों का महान तीर्थ धाम के रुप मे  प्रतिष्ठापित जहां लोगों का समागम चलते रहेगा ।ऐसा उम्मीद ही नहीं पूर्ण आशा हैं।
[6/24, 14:36] dinesh sadh: 🌷🌷🌷🌷🌷🌷
[6/24, 14:48] Anil Bhatpahari: भारत वर्ष में सतनाम धर्म की संस्थापना हो यही हमारा भी कृत संकल्प और जीवन का एक मात्र ध्येय हैं।
वर्तमान धर्मो मतो के  मकड़ जाल से मुक्त होकर मानवता और समानता की पृष्ठभूमि पर सतनाम धर्म मानव कल्याण कारक हो ऐसी  हमारी परिकल्पना हैं। 
         ।‌। सत श्री सतनाम ।।

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