Saturday, May 30, 2020

महानदी जलसंवर्धन और उनसे सर्वांगीण विकास


"महानदी जलसंवर्धन और उनसे सर्वांगीण  विकास"  

         चित्रोत्पल्ला गंगा मां महानदी जो सदानीरा थी और प्राचीन समय में सागर से लेकर बारुका गरियाबंद तक जलपोत चला करते आवागमन व व्यापार के कार्य होते थे। सिरपुर के समीप बड़ा बंदरगाह जिसमे बड़ी जहाज मालपुरी मोहान तक आते और हमारे ग्राम जुनवानी  गिधपुरी नगर से रायपुर राज  में व्यापार होते ।शिवरीनारायण से  रतनपुर राज के  सुदुरवर्ती छेत्रों मे आवश्यक सामाग्री पहुचाई व लाई जाती रही है। दूसरे तट बल्दाकछार व सिरपुर से महासमुन्द सरायपाली होकर उड़ीसा  तक आवश्यक वस्तुए पहुचाई जाती ।फलस्वरुप   इनके तट पर ही राजिम  आरंग गढ़सिवनी सिरपुर धमनी दंतरेगी शिवरीनारायण  लवन खरौद चंद्रपुर जैसे  बड़ी- बड़ी नगरी का विकास हुआ। महानदी तट पर स्थित  सिरपुर तो राजधानी ही रही जो देश- विदेश से जलमार्ग द्वारा जुड़े  हुए थे।जहा व्यापार शिक्षा   ,ज्ञान और  कला का विकास हुआ। इसकी  देश- विदेश तक कीर्ति रही। 
        परन्तु काल चक्र और शासन -प्रशासन की  उपेक्षा  के चलते आज महानदी सूख चुकी है।सभी  प्राचीन व वैभवशाली नगरी उजड़ चुके है। सांस्कृतिक वैभव का ह्रास हो चुका है। चारो ओर समकालीन वैभव के गीत गाते प्रस्तर मूर्तियाँ भग्नावशेष के रुप मे अस्फूट गान करते रहे है।जिनके न सुधि श्रोता है न पाठक न जिज्ञासु को । 
        राज्य के अभ्युदय के बाद एक तरह से इन ऐतिहासिक जगहों से प्राचीन वैभव को परीचित कराने के नाम पर हास्यास्पद ढंग से बारह वर्षो मे लगने वाली कुंभ के नाम पर प्रतिवर्ष कुंभ का आयोजन राजिम जहां तीन नदियों का संगम है में  धूमधाम से करने लगे। और करोड़ो के मूरम ,ईट ,गिट्टी सिमेन्ट आदि डाले जाने लगे ।अस्थाई निवास हेतु लकड़ी सीट चादरे बिछाई जाने लगी और १५ दिन बाद उन सामाग्रियों को वही  बीच नदी के रेत मे बेतरतीब छोड़ दिए जाते । 
       फलस्वरुप महानदी में रेत की जगह मुरम गिट्टी सिमेन्ट या ठोस पदार्थ के भराव से  जल स्रोत  सुखने   लगे।राजिम के इर्द-गिर्द विगत पन्द्रह वर्ष में  महानदी में मैदानी  झाडियां यथा बेशरम बबुल बेर ऊगने लगे  है।  महानदी  भाठा में बदलने लगा था फलस्वरुप प्रकृति प्रेमियों ने महानदी  बचाओ अभियान भी चलने लगा है। विगत क ई वर्षों से सोशल मीडिया में हम स्वत: इनपर लिखते जनजागरण करते रहे है।राजिम व क्षेत्र वासी क ई साहित्यिक व सांस्कृतिक लोगो से इसी के चलते जान पहचान बनी ।
बाहरहाल हर बार मेले में बांध से पानी छोड़कर कृत्रिम कुंड बनाकर पर प्रांत से आयातित लोगो से कथित शाही स्नान व नैवेद्य के नाम पर तेल घी दूध शहद आदि व  फूल  फल धूप दीप नाडियल रेशे  पन्नी कचड़े डाले जाते रहे व करवाए जाते थे जो कि आस्था के नाम पर औपनिवेषिक  सांस्कृतिक‌ आयोजन रहा।  इसके नाम पर  प्रदेश की निर्धन जनता की करोड़ो रुपये  की बंदरबाट चलने लगा ।
  प्रदेश के साधु -संत का  कही कोई पूछ परख नही था। स्थानीय  कबीर पंथी एक भूखे साधु के ऊपर रोटी चोरी का आरोप लगाकर  छत्तीसगढ की अस्मिता का उपहास उड़ाए गये थे।
 बाहरहाल पानी इस बार रबी फसल के लिए दी जाएगी ।  ऐसी शासन द्वारा धोषणा हुई है।जिससे  जनको जीवन दान देने "अमृत तुल्य फसलें उगेन्गे" व लाखों के पेट भरेन्गे ।प्रदेश आत्मनिर्भर होगा और लाखो कृषक को रोजगार मिलेन्गे।
     महानदी मे  अब मुरम- सिमेन्ट नही पटेन्गे ।और यहां की  पावन संस्कृति अविरल महानदी सदृश्य प्रवाहमान हो‌न्गे ऐसी उम्मीद है।
हर १०-१५ कि‌मी मे एनीकेट बने और दोनो तट के दोनो ओर जल श्रोत बढेन्गे कृषि बाड़ी व मत्स्यखेट बढ़ेन्गे  आवागमन भी सुगम होगा।
    धमतरी से रायगढ़ तक जलमार्ग विकसित हो  जिससे  दोनो ओर जनजीवन समृद्ध होन्गे यह  प्रदेश का सबसे बड़ा सौभाग्य होगा । और शैन: शैन: इन प्राचीन महानदी धाटी का पुनर्निमाण होगा।सांस्कृतिक उत्कर्ष होन्गे 
 हमारी पूर्वजों की आत्माएं प्रशन्न होगी।और जहां कही देवता होन्गे फूल बरसाएन्गे ।सर्वत्र खुशयाली आएन्गे। महानदी की पावन धारा ही अमृतधारा मे परिणीत होन्गे।
   उ प्र बिहार म प्र की तरह जैसे गंगा पूजा , नर्मदा परिक्रमा की परंपरा है उसी तरह महानदी आराधना व परिक्रमा की प्रवृत्ति विकसित होनी चाहिए। इसके लिए  शासन -प्रशासन व जनमानस मिलकर इमानदारी से पहल करे।बल्कि महानदी  धाटी विकास विभाग बने या इनके लिए अलग से मंत्रालय गठित हो।
     राजकीय संरक्षण व निर्देशन में महानदी के उद्गम सिहावा से लेकर उडीसा प्रवेश  बालपुर उड़ीसा  तक  महानदी परिक्रमा यात्रा हेतु ५०-१०० सदस्यीय शोध अध्ययन दल सभी क्षेत्र के जानकार लोगों का गठन होना चाहिए । उनके परिभ्रमण रिपोर्ट या प्रतिवेदन के आधार पर क्रमश: विकास के लिए  शासन सार्थक पहल करे। ताकि हमारे प्राचीन वैभव का पुनर्स्थापना हो सके। तथा  छत्तीसगढ अन्न -धन ,ज्ञान -कला- कौशल में समृद्ध हो सके।

       ।। जय महानदी - जय छत्तीसगढ ।।
        
         -डा. अनिल भतपहरी

चित्र - महानदी तट की संस्कृति पर हमारी कहानी संग्रह पानव पिरित के लहरा पुस्तक  का आवरण चित्र ।
व सिरपुर स्थित विश्वप्रसिद्ध लक्ष्मण देवाला ( लक्ष्मणी बुद्ध विहार )व गुरुघासीदास के स्वरेखांकन ।

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