कोरोना और करुणा
एक खतरनाक वायरस जो महामारी का रुप लेकर मानव प्रजाति के ऊपर तांडव मचा रही हैं। तो दूसरा समश्रुत शब्द पीड़ित मानवता व जीव जगत के प्रति दया और कृपा बरसा रही हैं।
अनेक संत -महात्मा गुरु आए और जनमानस को नैतिक बोध कराए कि सात्विक खान -पान ,रहन- सहन रखे एंव जीव जगत के प्रति करुणा मय रहे ! यानि की सस्टनेबल डेवलपमेंट की बाते कहें जैव विविधता को कायम रखने प्रकितस्थ रहने की बातें की और उपदेशना दिए ।पर कम्बख्त मनुष्य और उनकी अनन्य लिप्सा ! वे कथित शिक्षित व विज्ञानवादी होने दंभ में जीते इन्हे ढोंग- पाखंड कह मखौल उडाएं, फब्तियां कसे फलस्वरुप अधिक चाह में अनन्य विलासी होकर तताम सीमाओं और मर्यादाओं को लांधे। आज दुनियां की संप्रभुताएं चंद लोगों की मुठ्ठियों में कैद हैं उनकी हनक और सनक कब पृथ्वी में प्रलय ला दे कह नहीं सकते पर उनके पूर्व प्रकृति सचेत हुई फलस्वरुप माल्थस की उलाहना रंग दिखाने लगी।
सर्वत्र हाहाकार मची हुई हैं, जिस धन और विलास की सामाग्रियों के लिए मरे जाते वह युं ही सजा- धजा पड़ा हुआ हैं।" चना है तो दांत नहीं दांत हैं तो चना नहीं" की बेबसी सर्वत्र छाने लगी हैं। आज अमीर -गरीब समान रुप से अपने घरों में कैद दाल- चावल, रोटी-सब्जी ,आचारादि खाकर गुजारा कर रहे हैं।क्योंकि अब ऐश और शौख़ नहीं जीना जरुरी हैं। घोर मांसाहारी लोग शाकाहारी हो रहे हैं। इन ३-४ दिनों में करोड़ों नीरिह पशु- पक्षी ( मु्र्गे, बकरे, सुअर, भेड़, कुत्ता, गाय ,खरगोश और मुर्गे बटेर बत्तख आदि ) की हत्या थमी और उनपर प्रकृति की करुणा बरसी।
मनुष्य का कभी खत्म या पूर्ण न होने वाले शौख़ और उनके क्रुरतम स्वभाव (चाहे वह शाकाहारी हो या मांसाहारी ) का ही यह परिणीति हैं कि आज हर कोई एक दूसरे पर करुणा कर पा रहे हैं। सबकी चिन्ता होने लगी क्योंकि "ये है,तब हम है।" की बातें असानी से समझ आने लगी हैं। सभी व्यग्र है कि कही से किसी का करुणा और कृपा बरस जाय ।चाहे वह (ज्ञान का हो या विज्ञान का डाक्टर वैज्ञानिक का हो या संत गुरु का शासन का हो या प्रशासन का ।) किसी का हो। यह हुआ निगोड़ी कोरोना के कारण । चंद पल ही सही करुणा ऊपजी तो सही। आशा है कि अब सभी पृथ्वी पर महाकारुणिक की कृपा से एक दूसरे की चाह लिए करणामय रहेंगे ।
आज देखिए दुनियां को गढ़ने वाले अपनी खून पसीने से कल कारखाने बहुमंजिला इमारते सड़क पूल निर्मित करने वाले मजदूर लाकडाउन के चलते देश के अनेक जगहों पर फंस गये हैं। उन्हे समुचित उनके घरो तक पहुचा दे ऐसी व्यवस्था नहीं हो सका हैं। फलस्वरुप परदेश में यु भूखे न मरकर गांव घर और परिजनों के पास जाय सोचकर पैदल सायकल या जो साधन मिले गठ्ठर बांध निकल पडे है। हाइवे पर इन प्रवासी मजदुरों की दयनीय दशा देख कर मन विचलित हो रहे उन्हे अनेक तरह के आधारभूत सुविधाओं मुहैया कराना केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं बल्कि हर करुणा मय संवेदनशील इंसानो की हैं। अनेक संस्थान व व्यक्ति सामने आए भी पर यह ऊँट के मुंह में जीरे के समान हैं।
आव्रजन करते इन मजलूम श्रमिकों मजदूरों की दयनीय दशा असह्य हैं। ये लोग जाने अनजाने कोरोना वायरस के चपेट में भी आ रहे हैंऔर इनसे संक्रमण भी फैल रहे हैं।
सरकारों को चाहिए था कि जो जहां पर है उनकी खाने पीने रहने की निःशुल्क व्यवस्था करके प्रत्येक लोगों को जिला मुख्यालय में क्वारंटाइम में रखते और बसों रेल आदि द्वारा चरणबद्ध तरीके से उनके प्रदेश गांव घर पहुचाते पर अन्यान कारणों से ऐसा हो नहीं सका यह दुर्भाग्य हैं। इस तरह से हम देख रहे है कि
वैश्विक महामारी कोविड -19 कोरोना के कहर से पुरी मानवता दहल रहे हैं। इस दारुण दु: ख के समय केवल प्रभावित और प्रवासी मजदुरों को राहत दिलाने सहायता होनी चाहिए राजनीति नही।
राष्ट्रीय आपदा में सभी जनप्रतिनिधी शासकीय/ अशासकीय अधिकारी/ कर्मचारी और सेवादार संगठन के लोग पार्टी लाइन या किसी विचारधाराओं से हटकर मानवतावादी दृष्टिकोण से सहायता करे और अपना प्रभाव यदि है या रखते हैं तो श्रमिकों और पीडित लोगों के लिए लगाए। किसी को इम्प्रेस्ड करने के लिए नहीं ।
वक्त " वे रहेगें तो हम रहेन्गे "जैसी सोच विकसित करने का हैं।
कोरोना
"कोरोना के सेती फइले हे सब जगा महामारी
देख दुरगति मनखे के, का कहिबे संगवारी
का काहिबे संगवारी ,मरगे लाखों पटापट
छै हाथ छट्टा राहव झन राहव लटालट
मुखटोप बांधव मुँह मं हर धंटा हाथ परही धोना
माई-पिला रहव घरेच मं तभेच भाहगी कोरोना "
जय सतनाम - वंदे भारत
डां. अनिल कुमार भतपहरी
सी 11 ऊंजियार सदन
सेंट जोसेफ टाउन अमलीडीह रायपुर
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