Saturday, May 2, 2020

कोरोना और करुणा

कोरोना और करुणा 

एक खतरनाक वायरस जो महामारी का रुप लेकर  मानव प्रजाति के ऊपर तांडव मचा रही हैं। तो दूसरा समश्रुत  शब्द पीड़ित मानवता  व जीव जगत के प्रति दया और कृपा बरसा रही हैं।
       अनेक संत -महात्मा गुरु आए और जनमानस को नैतिक बोध कराए कि सात्विक खान -पान ,रहन- सहन रखे एंव जीव जगत के प्रति करुणा मय रहे ! यानि की सस्टनेबल डेवलपमेंट की बाते कहें जैव विविधता को कायम रखने प्रकितस्थ रहने की बातें की और उपदेशना दिए  ।पर कम्बख्त मनुष्य और उनकी अनन्य लिप्सा ! वे कथित शिक्षित व विज्ञानवादी होने दंभ में जीते इन्हे ढोंग- पाखंड कह मखौल उडाएं, फब्तियां कसे फलस्वरुप अधिक चाह में अनन्य विलासी होकर तताम सीमाओं और मर्यादाओं को लांधे। आज दुनियां की संप्रभुताएं चंद लोगों की मुठ्ठियों में कैद हैं उनकी हनक और सनक कब पृथ्वी में प्रलय ला दे कह नहीं सकते पर उनके पूर्व प्रकृति सचेत हुई  फलस्वरुप माल्थस  की उलाहना रंग दिखाने लगी। 
           सर्वत्र  हाहाकार मची हुई हैं, जिस धन और विलास की सामाग्रियों के लिए मरे जाते वह युं ही सजा- धजा  पड़ा हुआ हैं।" चना है तो दांत नहीं दांत हैं तो चना नहीं" की बेबसी सर्वत्र छाने लगी हैं। आज अमीर -गरीब समान रुप से अपने घरों में कैद दाल- चावल,  रोटी-सब्जी ,आचारादि  खाकर गुजारा कर रहे हैं।क्योंकि अब ऐश और शौख़ नहीं जीना जरुरी हैं। घोर मांसाहारी लोग शाकाहारी हो रहे हैं। इन ३-४ दिनों में करोड़ों नीरिह  पशु- पक्षी ( मु्र्गे, बकरे, सुअर,  भेड़, कुत्ता, गाय ,खरगोश और  मुर्गे बटेर बत्तख आदि ) की हत्या थमी और उनपर प्रकृति की करुणा बरसी।
  मनुष्य का कभी खत्म या पूर्ण  न होने वाले शौख़ और उनके क्रुरतम स्वभाव (चाहे वह शाकाहारी हो या मांसाहारी ) का  ही यह परिणीति हैं कि आज हर कोई एक दूसरे पर करुणा कर पा रहे हैं। सबकी चिन्ता होने लगी  क्योंकि "ये है,तब हम है।" की बातें असानी से समझ आने लगी हैं। सभी व्यग्र है कि कही से किसी का  करुणा और कृपा बरस जाय ।चाहे वह (ज्ञान का हो या विज्ञान का डाक्टर वैज्ञानिक का हो या संत गुरु का शासन का हो या प्रशासन का ।) किसी का हो। यह हुआ निगोड़ी कोरोना के कारण । चंद पल ही सही करुणा ऊपजी तो सही। आशा है कि अब सभी पृथ्वी पर  महाकारुणिक की कृपा से  एक दूसरे की चाह लिए करणामय रहेंगे ।
                         ।‌। सतनाम ।।

-डा. अनिल भतपहरी

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