"पीपल"
ऐश्वर्य से युक्त भारतीय संस्कृति में ईश्वर वादियों के लिए पीपल साक्षात् ईश्वर हैं। प्राण वायु आक्सीजन दिन -रात प्रदाता पीपल अक्षय वट हैं। अनंत काल तक या युगों तक सजीव रहते हैं। यह लगभग हर ग्राम में विराजित है। पीपल निर्जन वन में नहीं,अपितु सघन आबादी और रम्य वन प्रातंर में मिलते हैं। तालाबों ,चौक ,चौराहों गौठानों में यह प्रायः मिलते हैं।
राजकुमार सिद्धार्थ ने वर्षो कठोर तपस्या के उपरान्त इसी के तले बोधिसत्व हुए ।फलस्वरुप इसे बौद्ध धर्म में बोधी वृक्ष के नाम से जाने जाते हैं।
विशालकाय पेड़ के फल छोटे- छोटे लाखों की संख्या में फलते है। जिससे इनके आश्रम में रहने वालें पशुओं जिनमें वानर , खरगोश, गिलहरी इत्यादि विभिन्न पक्षियों एंव कीट- पंतगे , चींटी आदि लिए पौष्टिक खाद्य के रुप में उन्हे संपोषित करते हैं। मानव प्रजाति के लिए भी पीपल का फल गुणकारी औषधि हैं।यह अंजीर की तरह स्वादिष्ट और पोषक तत्वों से परिपूर्ण अनेक बिमारियों में काम आते हैं।
पीपल हमारे अभिन्न है। इनके बिना गांव और तालाब की परिकल्पना की नहीं जा सकती बुद्ध प्रतिमा शिव लिंग और अनेक देवी -देवता के मंदिर परिसर में इसे रोपे जाते हैं। साथ ही लोक जीवन में यह भी विश्वास है इनमें रक्सा ( राक्षस ) का वास होते हैं, और शाखाएं बीच से पोली होने की वजह से जहरीले सांप बिच्छू होने के कारण भी सघन आबादी से दूर रोपते है। इसका कारण सुनियोजित इसलिए लगते है कि यह बुद्ध से जुड़ा हुआ है,और बुद्ध को खारिज करने का भीषण षडयंत्र भी इस महादेश में हुआ है ।
पीपल दिन- रात आक्सीजन देने वाले विशालकाय वृक्ष हैं। साथ ही बहु गुणकारी बावजूद इसे वीरान जगह पर तालाब गौठान आदि पर रोप इनमें अस्थि कलश बांधने की विचित्र परंपराएँ भी हिन्दुओं में मिलती है। इसके कारण भी यह भय जनित भूत ,शैतान एंव रक्सा आदि वास वाली बातें प्रचलित है।
लोक गीतों में पीपल की उपस्थिति विरहाग्नि को उदीप्त कराने वाले उद्दीपन के रुप में मिलते हैं।
तोर सुध म धनि पीपर पाना सरीख मन डोलय
सुआ पिंजरा ल बोलय मोला संग म ले जा न ...
पीपल प्रेमी हृदय को भीतर तक उद्वेलित करते रहे है देखे एक मशहुर फिल्मी गीत इससे प्रेरित है - पिपरा के पतिया सरीख डोले मनवा कि हियरा म उठत हिलोर ...
बाल्यावस्था वन प्रातंर बीते और सुदूर लरियाआंचल बुंदेली परिक्षेत्र में पिता जी के शिक्षकीय वृत्ति के चलते प्राथमिक शिक्षा वही हुआ। जिस घर में हमलोग रहते वहाँ के बाडी से लगा बड़ा सा ब्यारा था जहाँ विशाल काय पीपल थे ... उनके छाया मे खेल-कूद कर बड़े हुए हैं। उनकें कोमल कली जिसे पीपर फोंक कहते की स्वादिष्ट सब्जी चने दाल और इमली रस में खाए है। कुछ लोग दही में बनाते हैं। पीपल के फल पीकरी खाकर ही हृष्ट पुष्ट हुए और कब्बडी का चैंपियन रहे ।स्कूल लाईफ में ख्यातिनाम" रेडर "थे ।हमे पकड़ने नाड़ियल ,बिस्कुट ५-१०-५१ रुपये की बाजियां लगते ...बचपन में बड़े- बुजुर्गों के लिए चोंगी बनाने उनके प्यार भरे अनुनय निर्देश कि "बेटा हो पाना टोर दव " हम लोग झट पेड़ पर चढ़ चौड़े पत्ते तोड़कर लिमतरिहा ढ़ोली बबा और रमरमिहा बिदुर बबा के स्नेह पाते ।
हमारे जुनवानी गांव में घर के पश्चिम में नंदूनरायण बबा के बियारा का पीपल जड़ हमारे कुंए तक विस्तारित हैं। उनका सत्त कूप जल में घुलकर हमारे नसों में प्रवाहित हैं। दक्षिण में हमारे खेत के मेड़ पार में विशाल पीपल के खोह में "करन सुआ" के बच्चे लाकर मां पाली थी। छोटी बहन शकुन और शशिबाला जिसे हमलोग प्यार से (चिढ़ाते मल्लीन भटननीन कहते ) अपने सर और कंधे पर बिठाए मुहल्ले की सैर बाल टोलियों से कराती और रोज अपने पाकेट खर्च से मनी दुकान से नड्डा बिस्कुट खिलाकर तृप्त व सुखी होती। मेरे द्वारा पहले पहल ब्लेक एंड व्हाइट कैमरे से ३० वर्ष पूर्व उस तोते के साथ खिचें फोटो संरक्षित हैं। इसी पीपल के मोटे व पोले सुडौल शाखा का मांदर मध्य बाल समाज पंथी पार्टी वाले बनाए जिस मांदर की धमक व घोष गंभीर ध्वनि गिरौदपुरी के विराट पंथी प्रतियोगिता में ३५ वर्ष प्रथम पुरस्कार प्रदान करवाकर पुरे प्रदेश में पंथी पार्टी जुनवानी का नाम रौशन किए ।
इस तरह दोनो ओर से विशुद्ध आक्सीजोन वाले "श्रीरामचरण सतवन्तिन निवास" जो हमारे पिता श्री सुकालदास बनवाए थे के आंगन में खेलते -खाते बढते गये। तब हमें क्या पता कि आखर जोड़ शबद बनाने फिर उनमें भाव भरने की कला भी विकसित होते चले गये तब अनायस गीत मुंह से झरने लगे -
मोर घर बियारा मं पीपर के छांव
कलेचुप आबे पइरी झन बाजय पांव ...
बहरहाल पीपल आज हमारे घर ऊंजियार सदन के छत पर गमले में विराजमान है ।इस तरह उसे अपने जीवन के अभिन्न बनाए हुए हैं। बलौदाबाजार के "श्री सुकाल सदन" के पानी टंकी के समीप ऊग आए पीपल हमारे लिए अत्यंत शुभ हुआ जिनके छत्र छाया में हमने अनेक गीत -कविताएँ रचे और नीम -पीपल के संयुक्त छांह में हारमोनियम लेकर बैठ कुछ मीठी धून सृजित किए ...जो विगत १०-१२ वर्षो से दूरदर्शन और अनेक संस्थान के माध्यम से मिश्री घोल रहे है। और तो और "गुरुघासीदास और सतनाम पंथ " पर केन्द्रित हमारी महत्वपूर्ण कार्य पीएच-डी. शोध ग्रंथ प्रणीत हुए ... भारत के महामहिम राष्ट्रपति प्रवण मुखर्जी के गरिमामय उपस्थिति में हमें पं.र. शु. वि. वि. से डिग्री मिली ... बहुप्रतिक्षित यह अलंरण हमारे लिए पीपल पत्ते में उत्कीर्ण " भारत रत्न" अलंकरण सदृश्य मूल्यवान व महत्वपूर्ण है। ऐसा लगता हैं कि आज जो कुछ हैं उनमें पीपल की कृपा व आशीष का भी महत्वपूर्ण योगदान हैं। इनके प्रति उऋण होना फिलहाल असंभव हैं।
नम: नमो पीपल वृक्षाम्
No comments:
Post a Comment