।।समारु अउ मंगलू के गोठ ।।
"अलकरहा गदर -फदर मांस -मछरी ,साप- बिछी ,चिरई चुरगुन, फाफा- मिरगा ,मेकरा- माछी ,चमगेदरी -समगेदरी अउ कुकुर माकर मन ल मिंझार के खाही त उकर मुडा न इ पुरही ग । सवाद लगाके खाय मं ये कोरोना महामारी फइले हवे गा । जनामना मनसे ल हाही आगे हवे जतका जिनिस हे सब कमती हे। उनखर बर अब भुगतत हे अउ हमु मन ल भुगतावत हवय।"
तरिया पार मं दतुवन घीसत समारु कहिस , त ओकर बोली के चिबोली देवत मंगलू कहे लगिस -
"अउ मंद -संद पी खाके टुरा- टानकी मन के खुल्लम -खुल्ला चुमई -चटई हर निपोर ओखी के खोखी कर दिस ।"
तय हर यार मंगलू एकदमेच फोर के कहिथस कोनो सुन डहरी त का समझही अउ हमर इज्जत का रहि जाही ?ते पाय के अइसन गोठियाय म कनउर लगथय । समारु हर अपन संत पना अउ धीर गंभीर सुभाव के सेती अड़ताफ में जाने जाय। त मंगलू हर अपन जोकड़ाई अउ पच -परगट कहे के नाम से सगा -सोदर मन मं जाने जाय।
आज मउका मिलिस त उधेनतेच जात हवय ।जनामना आजेच मनरेगा के गोदी ल पुरो के रही ।
"सही कबे मंडल त ये कोरोना बइरी हर सब मनखे मन ल बड़ अकबका डारे हवय ।जीव ह टोटा म अरझे बानी लगथय अउ रतिहा टी बी म समाचार सुनबे त करेजा मुंह म आय बानी लगथे ...! उदुक ले आके फुदुक ले से देश भर म फइलत चले जात हवे।
मंगलू के गोठ के बीचेच म कहिस -'हव ग जब कहुंचो फइले नइ रहिस त कम इया -खवइया मजदूर मन ल सरकार जिहा तिहा दु दु महिना ल बिन रोजी रोजगार के धांध दे रहिस।"
अउ जब जादा फइल गे तब सब झन लाने- लेगे बर रेल मोटर गाडी चला दिस । उन बिचारा मन के क रल ई देख रो रोवासी नई आवय..खांध के.पंछा मं आंसू पोछत कहीस ।
"अब देखब एखर से सब राज के गांव गांव फ इलत चले जात हवय। ये हर अउ बड बिलहोरन लगत हवे! "मुखारी ल चाबत अउ सीपत समारु मंडल कहिस।
अच्छा मंडल एकर आय ल मनसे मन छट्टा -छुट्टा होगे तौन बने बात आय।अब देख ले जर सर सर्दी बोखार मन धरत न इये भलुक सब जगा बने सुधरत जात हवे ।नदिता नरवा हवा पानी ये वातावरण जम्मों सुधरगे। पवन पुरवाई बने चलत हवय चिर ई चुरुगुन मन गाय गुवाए ल सीख गिन ।
हा सही कहत हस अतका सुधार तो दिखत हवय भलुक अब छट्टा सट्टा अतेक बाढगे कि बाबु पिला माई लोगन मन एक दुसर बर कुरा ससुर अउ डेढ़सास लहुट गय ।
समारु हांसत कहिस -"बने कहेस मंगलू असने मान मरयादा म रहई हर बने आय अब सबो झन ल असनेच रवे लगही ।"
"नहीं मंडल तोर असन संत ल फरक न इ परत होही फेर हमर असन देहगिरहा मन बरजीअई हर अलकर लगत हवे। न भाव न भजन न पाव पैलगी । अउ त अउ असनेच रही त नसबंदी वाले मन के काम -बुता तको नइ सटक जही मंडल ? मया -पिरित तको दुनिया ले नंदा जही लगत हवे।"ठठा के मंगलू हांसे लगिस ।
ओती सयकल मं आत अनिल हर उकर बताचिता ल सुन के बिधुन हांसे लगिस -" बने बने बबा हो जय जोहार!"
उहु मन जोहार ले कहिन ।
थोरिक ठाड़ होके हालचाल पुछिस अउ ट्रन- ट्रन घंटी बजात/ पैडल मारत स्कूल डहन चल दिस जिहा दुसर राज ले कमाय- खाय बर गय लोगन ल १४ दिन बर क्वारंटाइन म राखे हवय,तेकर हाल -चाल जाने।
- डा अनिल भतपहरी 9617777514
No comments:
Post a Comment