" जैतखाम /सेतखाम /जयस्तंभ "
जैतखाम सतनाम धर्म -संस्कृति में आस्था व श्रद्धा के प्रतिमान है। इनके अतिरिक्त गुरुगद्दी व चरणपादुका ही यहां पूज्यनीय है।
जैतखाम को सेतखाम व जयस्तंभ भी कहे जाते है।इस तरह के प्रचलन से अर्थ में भिन्नता आने लगे है।
बावजूद यह दोनो नाम सतनाम धर्म संस्कृति में प्रचलित है। जैत या जय और खाम या स्तंभ विजय श्री भाव के सूचक है।
कहते है धर्म युद्ध में वैचारिक टकराहट के कारण व प्राचीनतम मान्यताओं व रुढ़ियों के विरुद्ध गुरुघासीदास ने नवीनता का अप्रतिम संदेश देते इनका ईजाद किए।और विधि विधान पूर्वक ४ जगहों पर स्थापित कराये १ सोनाखान जमींदार रामराय के घर आगे गली में ।२ दुलहरा तलाब रतनपुर में और ३-४ चांद -सुरुज नाम के दो जैतखाम भंडारपुरी के मोती महल में ।
जैतखाम का लधुरुप निसाना और उनके लधु रुप पत्तो /पालो / धर्मध्वज पहले चूल्हापाट में फिर आंगन में निसाना फिर २१ हाथ ऊंचाई वाली जैतखाम गली ले चौंक व गुरुद्वारा व मंदिर समक्छ स्थापित होने लगे।
सेतखाम शब्द में एक सात्विक व पवित्रभाव अन्तर्निहित है।यह संतो गुरुओं की श्रीमुख से उच्चरित व जन व्यवहृत शब्द है। सेत मतलब सादगी युक्त पवित्र भाव है ।सेत मतलब रंग के आधार सादा भी है।
बाहरहाल साजा सरई जैसे विशिष्ट लकडी में गंजी- पीतल या एल्मुलियम का इसलिए लगाते कि लकडी के मत्थे में पानी न पड़े ।और हुक तीन होते ही दो में पाच हाथ के डंडे ऊपर से सवागज पालो की फहरने के वाइब्रेट को दो हुक सम्हाल नही पाते। फलस्वरुप तीन हुक लगाए गये। यह आरंभिक व सादगी पूर्ण सहज निर्माण है। इन तीन हुको को त्रिताप और त्रिशरण का प्रतिमान भी माने जाते हैं।
हा निशाना घर मे होते है वह दो हुक और बिना कलश या गंजी लगे होते है।
उसी का बड़ा स्वरुप जैतखाम है।
क्रांकीट के निर्माण से गंजी लगाना अप्रांसगिक हो जाता फलस्वरुप उसे कलशनुमा या अन्य शंक्वाकार आकार दे दिए गये।
और यह सुन्दर स्थापत्य है ।ज्यो +ज्यो विकास और समझ बढ़गे साधन व सुविधाए आएन्गेव कलात्मक स्वरुप निरंतर बनते जाएन्गे । गिरौदपुरी में भव्यतम निर्माण व जुनवानी के कलात्मक निर्माण इनके उदाहरण है।
प्रस्तुत चित्र में जैतखाम या सेतखाम सहस्त्र कमल दल विराजमान है।यह विजय भाव है। प्रवीण योग साधक द्वारा जब कुंडलनि जागरण होते है तब उनकी मनोदशा और अर्धचैतन्य अवस्था में वह दीपक के उठते लौ स्वरुप लम्बवत अंत:करण में उर्ध्व खड़े हो जाते है । उसी के सानिध्य में वह अपरीमित सुख व शक्ति के स्वानुभूति से गुजरते है और इस अलौकिक दिव्य अवस्था को अर्जित करने अनुरक्त होते है। बहिर्जगत में वह भौतिक रुप में लकड़ी- ईट आदि पदार्थगत निर्माण है जो जनसाधारण के लिए प्रेरक व दर्शनीय होते है।
इसी सेतखाम /जैतखाम साधनात्मक रुप मे साधक के अंत:करण में परिलछित ज्योति स्वरुप का भव्यतम निर्माण ग्राम जुनवानी में हुआ है। जो तेजी से ख्यातिनाम हो रहे है इनके अनुशरण से आजकल अनेक जगहों पर निर्माण होने लगे है। इनमे ३६ तत्वों के निरुपण होने से ३६ गढ़ की परिकल्पना भी विद्जन करते है। पर यह अध्यात्मिक कम राजकीय अधिक लगते है।
जैतखाम के स्वरुप में एकरुपता और कुछ कलात्मक स्वरुप में विविधता की बातें भी होने लगे है।परन्तु विशाल समुदाय और विविधताओं से युक्त संस्कृति में ऐसा होना स्वभाविक है क्योकि लोग अपनी साधन सुविधाओं से भी विविध स्वरुप देते रहे है ।
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