Wednesday, May 6, 2020

दादी माँ सतवन्तीन

।।दादी माँ सतवन्तीन ।।

   हमारी प्यारी दादी माँ  सतवन्तीन जौजे रामचरण भतपहरी जो कि अपनी अदम्य साहस और दृढ़ इच्छा शक्ति से अपने दोनो सुपुत्र दुकालदास ( अकाल के कारण ) उर्फ ताराचंद  और सुकालदास  (सम्मत के कारण )उर्फ जीवनलाल को जो उनके बड़ी मां थी ने  सगी मां पीला बाई के  आकस्मिक निधन और उनके कुछ माह बाद पति रामचरण के मृत्योपरांत यत्नपूर्वक पाल पोसकर बड़े किए ।और समकालीन समय में सुदूर पहुँच व सुविधा विहिन गांव होने बावजूद बडे बेटे  दुकालदास को व्यवसायी /कृषक व छोटे बेटे सुकालदास  को  उच्च शिक्षा अर्जित करवाकर  शिक्षक बनवाकरव एक मिशाल पेश की।
जीते जी किंवदंती बनी माँ सतवन्तीन के जीवनी  ऊपर. उनके यशस्वी शिक्षक  पुत्र ने "एक मुठा माटी के असरइया"  नामक मार्मिक नाटक लिखकर उसे प्रेरक व अमर पात्र बना दिए ।जिनके अनेक जगहों पर मंचन किए गये।
      ज्ञात हो कि माँ सतवन्तीन की उम्र निधन  1980  के समय 90 से अधिक थी। इस आधार पर उनके जन्म वर्ष 1890 ठहरती हैं। ओ बताती थी कि उनके जन्म दसहरा - दीवाली के टूटवारों महिना  हररुना धान जिस दिन खलिहान में आई उसी दिन हुई इसलिये उनके नाम अन्नकुवांरी  सतवन्तीन रखे गये। उस वर्ष बहुत धन धान्य हुए।
    आगे विवाह उपरान्त अन्नकुवांरी विलुप्त होकर श्रीमती सतवन्तीन हो ग ई और वे सतवन्तीन के नाम पर जानी ग ई। 
यथा नाम यथा गुण वटगन के गौटिया के घर के बेटी बहुत लाड़- प्यार में पली- बढी!
कलान्तर में जुनवानी गांव के मालगुजार भट्टप्रहरी परिवार में सभादास कहत लागय के छोटे  बेटा कलावंत रामचरण के साथ ब्याही गई ।
परन्तु विवाह के पन्द्रह वर्षो तक धार्मिक प्रवृत्तियाँ के इस दंपति नि: संतान थे । वंशज आगे बढाने के लिए पुनर्विवाह करने का अनेक प्रस्ताव आते ही रहते स्वत: सतवन्तीन इनके लिए रामचरण को कहते पर वे एकनिष्ठ पत्नी व्रत सदाचारी पुरुष थे।
     एक बार दोनो धार्मिक पर्यटन हेतु किसी साधु महात्मा के सलाह पर जगन्नाथपुरी की यात्रा पर बैलगाड़ी में रसद सामग्री रखकर जगन्नथियों के संग पैदल  निकल पड़े।  क्योकि उस समय पदयात्रा कर दर्शन करने और पुण्यलाभ अर्जित करने की मान्यताएँ थी।
    परन्तु विधि का विधान एक वर्ष और बीत गये संतान आए नहीं अंततः निर्वंशी चोला न हो जाय कहकर माँ सतवन्तीन अपने पति रामचरण का दूसरा विवाह अपनी बेटी सदृश पीलाबाई से करवाई ।और उनके दोनो संतान दुकालदास और सुकालदास का ऐसी परिवरिश की आज यह परिवार  पलारी -आरंग सहित  बलौदाबाजार  रायपुर परिक्षेत्र में प्रतिष्ठित व ख्यातिनाम हैं। 
      वे सगर्व किसी नीति न्याव व परपंची होते देख पुरुषों को फटकारती या चुनौति देती कहती रहती - "मै चील गौटिया के बेटी देखत हव तुहर रकम ढकम ल ।" 
    अनेक सडयंत्री इनके निर्वंशी होने व मासुम बच्चों के कारण खेती भाटा भर्री हड़पने या कब्जाने के फिराक में रहते पर वह पुरी मुस्तैद से न केवल बेहतरीन परवरिश की सौजिया लगवाकर  पुरी खेती किसानी सम्हाली , पुश्तैनी पत्थर  खदान चलायी ।यहां तक उस जमाने में अपने बाप - भाई से  बटैत लेकर अपने दोनो पुत्रों के लिए जुनवानी गांव में बडे- बडे धनहा  खरीदी।
      कोरोना के चलते लाकडाउन की स्थिति  में के दूर दूर से  पैदल चलकर  आने की खबर से प्रेरित ६०० कि मी की जगन्नाथपुरी पैदल यात्रा की वृतांत दादी  माँ सतवन्तीन से सुनकर यहाँ उल्लेखित कर रहे हैं। यह यात्रा  १९२० के आसपास ही की ग ई होगी। (जब दादी माँ ३० वर्ष की रही होगी क्योंकि १५ साल में गवन आए और १५ साल तक उनके कोई बच्चे नहीं हुए तब धार्मिक यात्रा गई थीं।)
     दादा -दादी की 600 कि मी  पैदल यात्रा का यह शताब्‍दी वर्ष 2020 हैं । जब  कोरोना के चलते लाकडाउन के कारण सपरिवार 3-4-5  सौ कि मी की कष्टदायक यात्रा करने विवश हैं।
   बहरहाल शीध्र ही संकट दूर हो और हमारे दादा- दादी के शताब्दी यात्रा का पुण्य लाभ पुरी मानवता को प्रदत्त हो।
         जय सतवन्तीन -रामचरण 
                 ।। जय सतनाम ।

चित्र-  दादी मां सतवंतीन  की एक मात्र दुर्लभ चित्र 52 वर्ष पूर्व खल्लारी  मेले में लकड़ी की पर्दे वाली केमरा से उतारी ग ई। जब  मां व बुआ 16-10की थी, अब 68-62 की हैं।

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