Wednesday, May 6, 2020

सतनाम‌ और उसके उपसर्ग प्रत्यय

"सतनाम और उनके उपसर्ग व प्रत्यय" 

सतनाम अपने आप में पर्याप्त ही नहीं संपूर्ण हैं।
   फिर भाव और भावनावश जनमानस उसके आगे पीछे महिमा/ गरिमामय  मय शब्द जोडकर और भी अलंकृत करते हैं। यह मानव के रचनात्मक प्रवृत्तियाँ हैं। 
  कुछ लोग जय लगाकर जय सतनाम कहते हैं। कुछ लोग सतनाम ग या सगा कहकर सतनाम सगा कहते हैं। तो कुछ आदर सुचक आगे- पीछे  साहेब लगाकर साहेब सतनाम तो कुछ लोग सतनाम साहेब ।
   इसी तरह साहेब गुरु सतनाम । कोई जय जय सतनान कह उद्घोष करते हैं। 
   हमने अपनी एक कविता  की एक पंक्ति में सत श्री सतनाम लिखे ।यह नाम वृत्याअनुप्रास में काव्यात्मक सौन्दर्य से परिपूर्ण लगा ।भावार्थ है  सतनाम सत से श्री युक्त हैं। अर्थात् सतनाम सदा सत की  वैभव से युक्त है।
    इसलिए इनका प्रयोग  एक श्लोगन व अभिवादन के रुप में करने लगा  ।लोगों को रुचिकर लगा वे लोग इन्हें सहजता से प्रयुक्त कर रहे हैं। खासकर कोटवा धाम के सतनामी लोग इनका प्रयोग करने लगे हैं। कुछ हमारे मित्रगण भी।कुछ लोग आपके तरह प्रश्न किए उन्हे इसी तरह समझाते आ भी रहे हैं। यह २०१०-११ से प्रचलन में ला रहे हैं। कार मोटर साइकल धर ग्रिन्टीग कार्ड पत्र आदि में इनका अनुप्रयोग कर रहे हैं।
    कुछ लोग जय व श्री को हिन्दू शब्द समझकर इनके विरोध व आपत्ति जताते हैं। हमे इतने संकीर्ण भी नहीं होने चाहिए कि शब्द व अक्ष र में साम्प्रदायिता या धर्म जात पात देखे।
   बाहरहाल बताइये कि" सत श्री सतनाम " क्या भावप्रवण अलंकृत व काव्यात्मक  श्लोगन  नहीं हैं? यदि नही तो कोई बात नहीं ।पर हां तो क्या इनका प्रयोग न करे?
       इस तरह देखे तो अनादिकाल से सतनाम की विशिष्ट सप्त स्वरुप व उच्चारण है- 
१ सतनाम 
२सचनाम
३ सच्चनाम 
४ सत्तनाम 
५ सत्यनाम 
६ सतिनाम 
७ शतनाम ( सूफी )
     इस तरह पालि संस्कृत गुरुमुखी पंजाबी  ब्रज अवधि छत्तीसगढी और हिन्दी में यह वृहत्तर जनसमूह करीब ४० करोड़ विशाल जनसमुदाय द्वारा व्यवहृत व आराधित महामंत्र नाम है।जो सदियों से सुख सुकून शांति और मर्मांतक पीड़ा को भी सहन कर सकने की धैर्य प्रदान कराती आ रही है।बल्कि सतनाम तो समस्त धर्मों का मूल ही है।
      अब इन्हे अनुयाई और भी महिमामय कर स्वरुप को वृहत्तर कर आगे पीछे अलंकृत शब्दावलियां लगाकर प्रयुक्त करने  लगे है यह विविधता ही सतनाम को सागर जैसे असीम विस्तार और एक सतनाम ही उनके लधु स्वरुप बूंद कर सकने की वैशिष्ट्य भाव समादृत है।
 सतनाम के विविध उच्चारण व प्रवत्तिगण निर्धारण निम्नवत है -
१सतनाम  सहज रुप मे 
२ जय सतनाम हर्ष व विजय 
३ जय जय  सतनाम शौर्य व पराक्रम के समय 
४ हे सतनाम ( दुः ख भय आश्चर्य   व ध्यान आदि मे )
५ सतनाम ग रागात्मक संबंध  मे उद्बोधन- 
६ सतनाम हो वो ----;;----;;-----
७साहेब  सतनाम सम्मान व आदर 
८ सतनाम साहेब --;;;;------
९ सतनाम ! सतनाम !!! सतनाम !!!
   १० साहेब गुरु के सत्तनाम ... पांजी नाम ।
   और हमारे द्वारा प्रयुक्त 
११ सत श्री सतनाम जो साहित्यिक मित्र और कोटवा शाखा के आचार्यों द्वारा व्यवहृत होने लगे है।
        अततव संस्कृति मे नवाचार और परिष्कार एक सतत प्रक्रिया है यदि यह सापेछ रहे तो कलांतर में वह जनमानस द्वारा ग्राह्य हो प्रचलन मे आ‌ जाते है।
     
                ।। सत श्री सतनाम ।।     

                     निवेदक 
      डा. अनिल भतपहरी

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