"मनमोहिनी रयपुर "
मोर मनमोहिनी चल तोला रयपुर देखाहूं ... लोक गायक पंचराम मिर्झा की इस गीत से इस्पायर होकर महज १९ वर्ष की आयु में "मनमोहिनी " लोक कला मंच बनाए और अनेक गीत रचकर स्वरबद्ध करने लगे। उनमें एक चर्चित रहा और जनता की फरमाइश पर भी गाते रहा ...
रयपुरहिन के नखरा हजार
किंदरय वोहर गोल बजार
छिन मे सदर बजार
आमापारा के बजार
कि महोबा बाजार
छिन म बैरन बाजार ...
गोल बाजार की रौनक देख मुग्ध होते रहा ...पर नये बाजार मेग्नेटो माल में सेल्फी जोन देख मन रइपुर के इस परिवर्तन पर सम्मोहित हो गया।
पते कि बात बताना तो भूल ही गया । बडे़ बुजुर्ग जेन मं हमर दादी- नानी कहती थी-" रयपुर शहर में खल्लारी देवी सरीख तीर तखार के देबी मन सजे -धजे बजार करे बर आथे।संग मं परेतिन- चुरेतिन, मल्लिन- भटनिन तको सज- सम्हर के किंदरत बुलत रहिथे अउ जवनहा टुरा मन ल जुगती मोहनी खवाके उकर मति ल फेर देथे।"
६-७ वर्ष की आयु में (१९७५-७६ ) कुल्फी ले ने के चक्कर में गोल बाजार शाम ६ बजे जाकर वहां की भूल -भुलैय्या में भूल गया था लाइट की चकाचौंध में वापसी के रास्ते भूल गये !घर में सभी परेशान रिक्शा- माइक लगाकर एनाउंसमेट करते खोजने की तैय्यारी हो गये थे साढे तीन धंटे बाद रात्रि साढ़े नौ बजे एक लांड्री वाले को पता बताते पहुंचा ।वे लोग हमें डराकर रखे थे कि गुमे हुए बच्चों के हाथ -पैर तोड़कर या आंखे निकालकर भीख मंगवाते है। डरा- सहमा मामा के घर आया था। हमारे नाना -नानी कहने लगे - "भुलन जरी पागे रहिस होही ! गोल बाजार मं सबो किसिम के जड़ी- बुटी बेचाथे ।"
सही कहय इहा मोहनी मंतर तको चलथे तेही पाय के मोकाय- मोहाय मोती बाग कना सालेम स्कूल में पढ़त एक देबी संग भांवर तको किंजर डरेन दू टुरा अवतार डरेन उही मन ल अंग्रेजी पढाय के सउक सेती ददा -पुरखा के भुंइया पावन जुनवानी गांव ल छोड़ छाती मं करजा लदक दु खोली के कुरिया बना के इहंचे बस गे हन ।
तब से राजधानी रायपुर से एक अजीब सा लगाव हो गया हैं। एकाद हप्ता ऐती- ओती चल दे त हदरासी लगथे भाई ।कब पहुचन अपन रइपुर ।
चित्र गोल बाजार एंव मेग्नेटो माल ,रायपुर
-डॉ॰ अनिल भतपहरी / 96177775४
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