Thursday, March 19, 2020

सुरा -संदरी स्वर्ग

लघुकथा 

"स्वर्ग सुरा-सुन्दरी "

यह तीनो शब्द परस्पर अन्तर्संबंधित हैं और एक दूसरे के बिन अपूर्ण भी हैं ।तीनो संग- साथ हैं ,तभी महत्ता कायम हैं। अन्यथा इनमें तीनों  को अलग होकर देखे जेहन में वह भाव ही नहीं आएगा जिनके प्राप्ति के लिए  मानव प्रजाति युगो से अनवरत उद्यम करते आ रहे हैं।  भले स्वर्ग को जन्नत हैवन कह ले आखिर सभी समनार्थी हैं। और भाव एक सा ही हैं।जैसे जल को  पानी नीर कहने से उनके गुण धर्म बदल नहीं जाते ठीक स्वर्ग जन्नत हैवन कहने से वह भिन्न  नहीं  हो सकते ।
     ठीक इसी तरह  सुरा, शराब, शैम्पेन  कहे या हूर परी अप्सरा कोई गल नहीं जी।  तीनों की दरकार  मानव को उनके जीते जी और उनके मरने बाद भी उपलब्ध हैं या होनी चाहिए खासकर पुण्यात्मा या धर्मी चोला को , ऐसी हमारी शानदार  व्यवस्था हैं। यदि अपनी -अपनी मान्यताओं के अनुरुप  कार्य करे तो देव नबी और मैसेंजर की श्रेणी में आकर मृत्युपर्यन्त और उनके बाद भी  इनकी उपभोग करने  की शानदार प्रलोभन युक्त शास्त्रीय  व्यवस्थाएँ हैं। 
   बहरहाल एक आजकल वायरस जनित बिमारियों की प्रकोप के चलते शहर के भीड़ वाली जगहें सिनेमा  माल स्कूल कालेज व  कुछ पब्लिक पैलेस व सरकारी  दफ्तर आदलते  जहां भीड़भाड़ वाली जगहें बंद होते जा रहे हैं। बल्कि इन सब भीड़ वाली जगहों के स्थान पर, निर्जन व प्राकृतिक सुषमा से अच्छादित जगहों पर जाने और रहने की  बातें हो‌ने लगी हैं। कम से कम तापमान ३० सेंटी ग्रेट बढ़ते तक क्योंकि इतने उच्च ताप में बहुत सी बैक्टीरियां और वायरस स्वत:  नष्ट हो जाते हैं। फलस्वरुप सभी भीड़ भरे जगहों को खाली कर‌ने की फरमान हो चूके हैं। माल थियेटर शासकीय अशासकीय  आयोजन मेले  महोत्सव स्थगित किए जा चूके है। 
    शादी ब्याह में बड़ी संख्या में  बारात बैंड आर्केस्ट्रा  और सार्वजनिक भोज भी प्रतिबंधित होने लगे हैं। 
     बहरहाल हम डरे सहमें सबन की भांति सुकून शांति के तलाश और प्राण रक्षार्थ वन प्रांतर और नदी किनारे की बेहतरीन आक्सीजोन में वक्त गुजारने के निमित्त पहुँचे ... शहरों की तरह वहाँ कोई भय और अफरा -तफरी जैसा महौल नहीं हैं। बल्कि स्वस्थ्य और स्वागोत्सुक महौल हैं। हमने इत्म़ीनान से नजरें इधर - उधर दौडा़ई और  आराम से गुलमोहर के नीचे बनें बैंच में बैठकर प्रकृति के खूबसूरत  नजारे को निहारने लगे ... ऐं क्या सामने झुरमुट में अवांछित कचड़े का ढेर लगा हुआ हैं। पन्नी ,पेकेट , शीशियां  ,अधजली सिगरेटे एंव माला डी व कंडोम‌ आदि  बिखरे पड़े हैं।यह देख मन खराब लगा इतनी खुबसूरत जगह को लोग कैसे गंदे और प्रदूषित कर देते हैं? 
   तभी एक बंदा हंसते हुए एलबम रखे कुछ नुमाइश के लिए आया और कहने लगा ...वेलकम‌ टू अवर युनिक  हैवन ! 
   बारीकी से जन्नत का मुआयना तो कर ही लिया था अब  स्वर्गीक आनंद में निमग्न कराने यह स्वर्गदूत आया हैं। चलिए यही सही पैराडाइज़ में प्रवेश कर लिया जाय।अन्यथा बाहर करोना का कहर और जा़लिम दुनिया का जहर हैं ।उससे पल भर ही सही, भय मुक्त हो ही  लिया जाय ..! आखिर यह तो  शास्त्रीय विधान के अनुरुप ही आचरण और व्यवहार जो हैं। 
सोचकर रिसार्ट का रुम‌ रेंट और उपलब्ध सुविधाएँ वाले  एलबम देखने लगा ।
    डॉ॰ अनिल भतपहरी

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