Wednesday, March 25, 2020

गुरुघासीदास के उपदेश

गु्रघासीदास की बातें पैरेन्ट्स के बरजना जैसा नहीं बल्कि उपदेशना है । और बहुत ही सुगम्य व सुबोध भी हैं। बकायदा वे दृष्टान्त व सरल बोध कथाओं द्वारा उपदेशात्मक शैली में अपनी बातें कहीं जो अनमोल धरोहर हैं। उनके ही सरंक्षण और संवर्धन में लगे हुए हैं।
       यह बातें निरंतर प्रचार- प्रसार करने पर जनमानस के द्वारा आत्मसात होते हैं। परन्तु आज पर्यन्त गंभीरतापूर्वक इस दिशा में कार्य ही नहीं हुआ ।
   फलस्वरुप अशिक्षा और  धार्मिक सांस्कृतिक आयोजन न होने से समाज में सामान्यतः लोकाचार , संस्कार और सार्वजनिक आचरण व्यवहार में गिरावट आती ग ई आज स्वेच्छाचारिया और किसी भी बतों का अवहेलना यहाँ होते हैं। हमारे संतो महंतो गुरुओ कलाकारों ज्ञानी गुणी जनों के प्रति जित‌ना अनादर भाव युवा वर्गों में भरा हुआ हैं। वह अन्यत्र देखने नहीं मिलते।
न अच्छी भाषा शैली हैं न शालिनता न धैर्य ।भले वे स्कूल कालेज  शिक्षित  एड्राइड धारी लोग हैं। पर दिशा हिन व मार्ग से भटके और स्यंभू वाट्साप ज्ञानी बने किसी का सुनना समझना तक नहीं चाहते।
      और गाहे बगाहे बिना सांस्कृतिक तथ्यों को जाने- समझे केवल गरियाने या उल्टे सीधे हथकंडे अपनाकर समाजिक सुधार हो जाने की अपेक्षा पालते हैं। उन्हे चाहिए कि वे सतनाम संस्कृति को गहराई से समझे आत्मसात करे और जनमानस के बीच शालिनतापूर्वक अपनी बातें पहुँचाए । 
      तब कही जाकर समाज पर सकरात्मक प्रभाव पडेन्गे।

No comments:

Post a Comment