करमसेनी परब ( करमा तिहार)
करमसेनी नामक यह देवी श्रमिक समाज की अराध्य देवी हैं।
लोक गीतों में सिया पहाड़ में अनमन जनमन की जिक्र आते हैं।
करमसेनी को कलान्तर में करमा कहे गये। यह आदिवासियों में भी मिलते हैं। करम डार खोंस कर करमा तिहार मनाए जाते हैं यह सरगुजा परिक्षेत्र में द्रष्टव्य हैं।
इसी करमसेनी देवी के संग सतनाम संस्कृति के आराध्य देवी सतवन्तीन मितानीन बद कर विंध्याचल से लेकर दक्षिणापथ तक यानि की म प झारखंड उड़ीसा छत्तीसगढ़ तक एक विशिष्ट श्रम और सत्य की समन्वय भाव की विशिष्ट संस्कृति निर्मित होती हैं।
इस प्रसंग को विद्जनों को गहाराई से समझने होन्गे।लोक जन तो व्यवहृत करते आ ही रहे हैं।
करमसेनी या करमा नामक देवी श्रम की देवी हैं। यह अजन्मा अरुप श्रम भाव की देवी हैं जिसे समस्त श्रमिक शिल्पी समाज मनाते हैं,या मनाना चाहिए।
परन्तु कर्मा के नाम पर कुछ जातियाँ जिसमें छ. ग से तेली घसिया सूत सारथी व बिंझवार लोग अपने अपने दावे प्रतिदावे कर रहे हैं। कटनी झांसी की कर्मा नामक संत माता जो जगन्नाथपुरी की यात्रा कर खिचड़ी चढ़ाती हैं के स्मृति और जंयती मनाने लगे हैं। जाट समाज भी कर्मा को अराध्य देवी मानते हैं जबकि आज से ३० - ४० वर्ष इनका छत्तीसगढ़ में कोई नाम लेवा तक नहीं था। हां राजिम तेलिन को अराध्य के रुप में जरुर माने जाते रहे हैं। जो राजीव लोचन के उपासिका और समृद्ध तेल व्यवसायी थीं।
बहरहाल करमा या करमसेनी श्रमिक वर्गों की अराध्य देवी है। इस पर्व के नाम पर शासन द्वारा अवकाश घोषित करने पर समस्त श्रमिक समाज को बधाई कि उनकी परिश्रम की पहचान हुई और एक उत्सव के रुप में परिणीत हुई । सच कहे तो यह भी एक प्रकृति पर्व हैं जो उछाहित मन से जनजीवन श्रद्धा पूर्वक मनाते हैं।
सभी श्रमिक शिल्पियों को उनके श्रम और उनकी श्रमदेवी करमसेनी परब की बधाई ।
तुंहर पारा हमर पारा खोंचे करम डारा
नेवता हे आहूं पूजा मं सबो झारा झारा
।।करम यानि की परिश्रम की जय हैं।
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