स्थापित प्रसंग का आशय क्या है? और सच से अधिक महत्वपूर्ण तो कतई हो नहीं सकते।
देर सबेर सत्य भ्रम आवरण चीर कर सूर्य की मानिंद उदय होता हैं।
सीता या किसी भी स्त्री के लिए भारतीय परंपरा में राम या उनके पति परमेश्वर हैं। यह हमारी स्थापित मान्यताएं तो हैं पर यही सत्य हैं, यह हो नहीं सकते । राम द्वारा ही सीता निर्वासित हुई।आज भी अनेक स्त्रियाँ अपने कथित पति परमेश्वरों और उनके परिजनों से उत्पीड़ित हैं। तो ऐसी मान्यताएं छद्म व ओढी हुई होती है।
बहरहाल यह बात सत्यनाम की है जो कि ईश्वर (यह भी मान्यताएँ ही हैं) से ऊपर हैं। और पीड़ित वर्ग किसी प्रभु ईश्वर को जप- सुमर नहीं सकते उनके द्वारे मंदिर आदि जा नहीं सकते न प्रभु सम राजादि से मिल सकते अपनी करुण व्यथा कह या निवारण कर सकते ऐसे में तो सत्यनाम के सिवा उनके लिए आश्रय या आत्मसंबल क्या बच जाता हैं? क्योंकि कथित ईश्वर पर किसी का कॉपीराइट हैं। पर सतनाम तो सर्व सुलभ निराकार सर्व व्याप्त हैं। किसी धार्मिक स्थल ,मठ मंदिर , कर्मकाण्ड पुरोहित आदि की यहाँ कोई विधान ही नहीं ।कातर भक्त और ओ ही हैं। मध्य में कोई नहीं ।
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