सतनाम पंथ
सतनाम साहित्य के अन्तर्गत १० -१२ महाकाव्य और गद्य पद्य व चंपू काव्य में लगभग २५० स्वतंत्र पुस्तकें प्रकाशित हो चूके हैं। अनेक मासिक व साप्ताहिक पत्रिकाएँ हैं।
यह जो साहित्य जो आप दिखा रहे हैं। वह महज ५ साल के अन्तर्गत आए हैं।
सतनाम संस्कृति से संदर्भित हमारी आलेख विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में १९९० से प्रकाशित होते आ रहे हैं।
सतनाम आन्दोलन शीर्षक वाले ग्रंथ जिसमें सतनामी और सतनाम आन्दोलन ले. डा शंकरलाल टोडर, गुरुघासीदास और उनका सतनाम आन्दोलन ले सर्वोत्तम स्वरुप , सतनाम दर्शन ले टी आर खुंटे यह सभी लेखक से हमारी गहरी परिचय और इस संदर्भ में बाते होते रहते हैं।
दरअसल सतनाम आन्दोलन की बाते हैं वह सतनामियों का आन्दोलन हैं। जो कि सतनाम पंथ का एक छोटा सा पार्ट मात्र हैं। कोई भी नवाचार हो वह एक मिशन या अभियान के द्वारा जनमानस में पहुँचाए जाते हैं। सतनाम पंथ की बातें गुरु और गुरु पुत्रों संत महंत द्वारा रामत रावटी द्वारा जनमानस तक पहुँचाए जाते जिन्हे वह बाते अच्छे लगते वे सतनाम पंथ में दीक्षित हो जाते । यह आन्दोलन अंत:करण का हैं। हृदय परिवर्तन का रहा हैं। इसलिए यह व्यवस्थित रुप से चला आ रहा हैं। लाखों लोग अन्य धर्म की तरह सतनाम पंथ (एक स्वतंत्र धर्म )की तरह इनके क्रियाकलापों में संलग्न हैं।
यदि यह आध्यात्म आस्था से अलग केवल आजादी या जमीन जायदाद के निमित्त आन्दोलन होते तो वह लक्ष्य मिल जाने के खत्म हो जाते। और महज इतिहास का एक चेप्टर होकर रह जाते ।
जैसे स्वतंत्रता आन्दोलन , अंग्रेज़ी वस्तुएँ बहिष्कार करने का आन्दोलन छात्र आन्दोलन ,मजदूर आन्दोलन या जूल्म अन्याय के विरुद्ध दलित आन्दोलन या महिला आन्दोलन ।
अगर भावार्थ गत देखे तो सतनामियों का आन्दोलन हो सकता हैं। सतनाम आन्दोलन तो बिल्कुल नहीं ।
क्योकि सतनाम पंथ, मत , सम्प्रदाय व धर्म हो सकते हैं। सतनाम दर्शन ,तत्व , विचार धारा आदि हो सकते हैं। पर सतनाम आन्दोलन .... यह नहीं हो सकते। पता नहीं ऐसा कह सतनाम की पवित्रता व सर्वस्वीकार्य छवि को क्यों जाने- अनजाने में प्रभावित किए जा रहे हैं। यह विचारणीय हैं।
पंथ ही विस्तारित होकर कलान्तर में धर्म के रुप में प्रतिष्ठित या चिन्हाकित होते हैं।
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