Thursday, March 26, 2020

राजा गुरु बालकदास

"राजा गुरु बालकदास "

    सतनाम पंथ (धर्म) के प्रवर्तक गुरुघासीदास के मंझले पुत्र राजा गुरु बालकदास जी का जन्म गिरौदपुरी में सन १७९५  में भादो अंधियारी पाख आठे  (  कृष्ण पक्ष अष्टमी) को हुआ।
महा प्रतापी शूरवीर बालकदास बचपन से ही तेजस्वी थे ।पिता की तरह ६ फीट  ऊंचे कद- काठी गौर वर्ण और काले धुंधराले बाल और कसरती बदन राजसी स्वरुप वाले संम्मोहक छवि के धनी थे। उनमें अभूतपूर्व संगठनिक क्षमता थे ,फलस्वरुप वे बाल्यवस्था से ही गुरुबाबा के दर्शनार्थ आ रहे जनमानस को व्यवस्थित करते और उन्हे क्रमश: गुरुबाबा से मिलने वार्तालाप करने और उनकी समस्याओं के उचित निदान हेतु सार्थक विचार -विमर्श करते।सतनाम पंथ की प्रबंधन और उनके प्रभावी संचालन वे गुरुघासीदास के निर्देशानुसार बडी कुशलता से किया करते थे। गिरौदपुरी ग्राम में दूर- दूर  से दर्शनार्थी आते और गुरुवचन श्रवण कर सतनाम पंथ की दीक्षा  लेते वे यह सब क्रिया - कलाप  बचपन से देखते बड़े हुए।
     गिरौदपुरी  गुरुघासीदास के दर्शनार्थ एंव उनसे धर्म दीक्षा लेने वालों की  संख्या दिनोदिन बढ़ते  जा रहे थे  सैकड़ो -हजारों की संख्या में पैदल बैलगाडी आदि साधनों आने लगे ... बाबा जी किसी साकार  देव -देवी की मूर्ति और मंदिर के जगह सतनाम सत्पुरुष जो निराकार और ज्योति स्वरुप है उनकी ध्यान -अराधना और परस्पर लोगों मे सत्याचरण व सदाचार को अपनाने और व्यवहार करने की नैतिक सीख देते थे। लोगों को  परलोक नही अपने इर्द -गिर्द इहलोक जो काफी कुछ परलोक साधने के उपक्रम बिगड़ा हुआ था , को सुधारने में अपेक्षित सहयोग करने लगे। इस तरह देखे तो पिता  मात एंव पुत्र  के  यह  संयुक्त उपक्रम  बड़ी  तेजी से जनप्रिय होने लगे ।पंथ का प्रचार- प्रसार होने से जनमानस  इसे अंगीकार भी करने लगे। "मनखे मनखे एक "  दिव्य उक्ति महामंत्र सम जनमानस को गहराई से उद्वेलित और प्रभावित किया  इसके कारण  सदियों से व्याप्त ऊंच -नीच जात -पांत की दायरे टूटने लगे फलस्वरुप   धर्म -कर्म व सांस्कृतिक क्षेत्र में जो नव प्रवर्तन हुए उनसे सुविधाभोगी वर्ग हतप्रभ हो इस "सतनाम जागरण अभियान "  को रोकने अनेक तरह के कुचक्र व सडयंत्र भी करने लगे ।उन लोगों का  इतना अधिक हस्तक्षेप  बढ़ा कि गुरु घासीदास को परिवार सहित अपने प्रिय जन्मस्थली व तपस्थली गिरौदपुरी  का परित्याग करना पड़ा  और वे लोग सपरिवार रायपुर राज की ओर प्रयाण किए ...  
     इस तरह गुरुपरिवार तेलासी नामक ग्राम में आकर छिन्दहा तालाब पार में आश्रय बनाकर रहे।यहां वे अनेक असाध्य रोगियों को अपनी दिव्य चिकित्सा पद्धत्ति से निरोग किए फलस्वरुप उनकी यश -कीर्ति चहुंदिशा में फैलने लगी ... उनके नाम सुनके और अपने पिताश्री माता श्री को तलाशते एक नवयुवक साधु अम्मरदास जो   बचपन में बिछुड़ गये थे  ने आकर अपना परिचय दिया और इस तरह से बिखरे हुए गुरुपरिवार खुशियां मनाएं ।दोनो भाई एक -दूसरे को देख आश्चर्य चकित हुए और उपस्थित जन समुदाय को  सुखानुभूति हुए । गुरु की यश -कीर्ति चहुंओर फैल चुके थे ,फलस्वरुप अनेक  लोग दर्शनार्थ आते  गुरु से नाम- पान (दीक्षा) लेते  व श्रद्धानुरुप भेंट चढाते इस तरह एक नई सांस्कृतिक नवजागरण होने लगे । तेलासी में १८१० के आसपास ही विराट महासंगम हुआ। जहां पर अनेक जातियों के लोग स्वस्फूर्त सतनाम पंथ अंगीकृत किया ।तेलासी धर्मनगरी की तरह ख्यातिनाम हो गये । जहां चारों ओर से श्रद्धालू आने लगे ।
     गुरु अम्मरदास व बालकदास परस्पर  मिलकर अपने पिता के कार्य को गतिमान करने में सक्रिय हो गये । अम्मरदास सतनाम के दार्शनिक व  आध्यात्मिक व  पछ को लेकर चिन्तन मनन कर व्यवस्थित करने में रम गये तो बालकदास युवाओं में  अनुशासन आत्मसंयम बल शक्ति  लाने योग के साथ व्यायाम व आखाड़ा प्रथा का प्रवर्तन किए .... यह नवयुवक गुरु के साथ पंथ प्रचरार्थ रामत- रावटियों में प्रबंधन हेतु जाते और व्यवस्था आदि करते । 
     तेलासी के पास ही एक छोटा सा ग्राम धरमपुरा  था वहां के मुखियां लोहार थे  वे नि:संतान थे उनकी विधवा  धरमौतिन लोहारिन ने अपनी जमीन सर्वप्रथम गुरुचरण में दान स्वरुप भेंट किए... भूदान की इस प्रक्रियां ने जनमानस को प्रेरित किए फलस्वरुप अनेक लोगों ने अन्न व भूदान देने लगे। अन्न -धन के भंडारन होने तथा श्रद्धालूओं के लिए नित्य.भोग भंडारा चलने  लगे इस कारण कलान्तर में धरमपुरा ग्राम "भंडारपुरी" के नाम से ख्यातिप्राप्त हो गये। जहां गुरुओं ने आकर स्थायी रुप से बसे व  ठहरने विश्रामालय बाड़ा आदि बनवाएं । दोनो गुरु पुत्रों की विवाह भी यहीं सम्पन्न हुआ। गुरु अम्मरदास का विवाह प्रतापुर की प्रतापपुरहिन माता से हो गई ।और गुरुबालकदास का महंत भुजबल महंत ढ़ारा नवागढ बेमेतरा निवासी  के बहन नीरा माता से हुई।
   गुरु परिवार समृद्ध व ऐश्वर्यवान होने लगे तथा जनमानस में गुरु घासीदास उनके पुत्र  के  आपार लोकप्रियता और अनुयाइयों की लाखों तक पहुंचने पर उनके जनाधार को देखते १८२० में  ब्रिटिश गवर्नमेंट ने गुरु पुत्र बालक दास को जी सोने मूठ वाली तलवार और  हाथी- घोडे  तथा सैनिक रखने का अधिकार पत्र प्रदान  दकर राजा धोषित किए .. तत्पश्चात गुरु परिवार "राजवंश "  परिवार में परिवर्तित हो गये।
 उन्हे रायपुर व रतनपुर राज में ८ (तेलासी भंडार  परिक्षेत्र )-८ गांव (कुंआ - बोडसरा परिक्षेत्र  ) समर्पित किए गये ।जहां  भव्यतम चौखंडा मोतीमहल सतनाम गुरुद्वारा का निर्माण १८३० के आसपास  करवाएं गये । बोड़सरा में भव्यतम लाल पत्थर का बाडा बनवाए गये।
      गुरुबालकदास ने अपने पिता गुरुघासीदास के सतनाम जागरण को  "सतनाम आन्दोलन" में परिणीत किया।और उन्हे अन्याय जुल्म  व स्वाभिमान हेतु व्यक्ति स्वतंत्रता के रुप में अलग तरह से संगठित किया।वे सत‌नाम सेना गठित कर राजपाठ चलाया।अनेक राजवंशो के परिक्षेत्र  में जाकर शोभायात्रा व जुलूस निकाल "सतनाम सम्राज्य "का विस्तार करने लगा।भटगांव पलारी लवन बिलाईगढ़  सिमगा  तरेंगा मारों नवागढ मुंगेली  में  आदि जगहों पर चतुरंगी सेना जिसमें  हाथी घोडे ऊंट व पैदल का प्रदर्शन किए ... गुरु बालकदास के आन- बान -शान की शोर उड़ने लगे।उनकी प्रशंसा में अनेक लोकगीत व मंगल भजन फिंजाओं में गूंजने लगे ... एक नया स्वाभिमान व शौर्य से नव  संगठित  सतनामी समाज प्रदीप्त होने लगे।
    १८४० में गुरुअम्मरदास के समाधिस्थ होने पर गुरुघासीदास अपने प्रिय पुत्र के विलगाव से आह्त व अनमना सा एकांतवासी व वृद्धता आदि के कारण या गुरुबालकदास की प्रखर नेतृत्व के एकांतवासी हो गये ... अंतत: वे १८५० में मोती महल व भव्यतम गुरुआवास भंडारपुरी का परित्याग करके अपनी प्रिय  जन्मभूमि गिरौदपुरी की ओर प्रयाण कर गये । 
            १८५०-६० तक गुरु बालकदास का स्वनेतृत्व रहा वे तत्काल सफलताएं अर्जित करने अपने विश्वस्त सिपहसालार  अंग रक्षक सरहा और जोधाई सहित अनेक प्रवीण सतनाम सैनिक निकल महाअभियान रामत -रावटी  हेतु निकल पडे । अंग्रेज सतनामियों के वर्तमान स्थिति को देख ईसाईत की ओर ले जाना चाहते थे  पर धर्मांतरण हो नही पा रहे थे  क्यकि  समाज में गुरु घासीदास   के गहरा प्रभाव  था तथा गुरुबालकदास के सुदृढ़ समाजिक संगठन दोनो की युति ने हिन्दूओ और ईसाईयों के मन्सुबे पर पानी फेरने लगे ।अधिकतर लोग सतनाम पंथ में दीक्षित होने लगे ।इस कारण राजा गुरुबालकदास दोनो धार्मिक संगठन हिन्दू और ईसाई  के संज्ञान व सडयंत्र के  केन्द्रबिन्दु
में थे।
  ‌‌‌२७  मार्च  सन १८६० की रात्रि  सतनाम‌ पंथ  प्रचार मे गये गुरुबालकदास को मौका  पाकर औराबांधा नामक ग्राम में निहत्थे भोजन के लिए  आमंत्रित गुरु पर एक राजपूत सैनिकों की टोली ने आक्रमण किए ।उनके अंग रक्षक‌ सरहा - जोधाई पानी दिए चंदाही लोटे से पानी उलच हाथ के मुठ्ठी में फंसाकर अदम्य शौर्य प्रदर्शन कर  लडते हुए घर से सुरछित बाहर निकाले और चनवारी  खेत की ओर ले गये ....
    रात्रि में‌ शिष्य व अनुयाई का आवाज निकाल  धोखा देते गुरु गोसाई  .... राजा गुरु ...गुरुबाबा जी  आप‌ कहां हो शत्रु चले गये ... कह  शत्रु धोखे से  निहत्थे गुरु के ऊपर तबल तलवार से वार किए ... वे पंछे को डोरी बना वार झेलते युद्धरत रहे और सरहा जोधाई भी  भीषण संधर्ष करते रहे .... गुरु को धायल अवस्था में छोड़ भय से शत्रु टोली भाग खड़े हुए ... धायल अवस्था में रक्त रंजित गुरु के शरीर को सिर और पैर को कांधे में रख अनुयाई मेड़पार व भर्री की धरसा वाले अरकट्टा रास्ते से कोसा मुलमुला होते पुराण की ओर शिवनाथ नदी तट ले गये .... उधर तीयो दौडते हुए  गु्रु के ऊपर वार का समाचार देने उनके बहनोई भुजबल महंत ढारा और गुरुद्वारा  भंडारपुरी संदेश भेजे गये ... महंत भुजबल भाई आगरदास और पुत्र साहेब दास के उपस्थिति में अंतिम बाखरी वाणी में संदेश और झीना दरस दिखाकर गुरुबालक दास २८ मार्च १८६० को सतलोक प्रयाण कर गये।  लाखो अनुयाई और जनमानस अपने प्रिय गुरु के वियोग से  हतप्रभ  किम् कर्तव्य विमूढ़म‌ हो गये... उधर सरहा जोधाई भी लड़ते वीर गति को प्राप्त हो गये।
   फलस्वरुप तेजी से गतिमान सतनाम पंथ प्रवर्तन के चक्र थम सा गये ... 
    कलान्तर में अंग्रेजों ने  गुरु बालकदास के प्रदेय पर लिखे कि " वे कुशल संगठक और प्रभावी प्रवक्ता थे ।वे कुछ दिन और रहते तो छत्तीसगढ़ को सतनाम‌ मय  देते ।" बलिदानी राजा गुरुबालकदास की शहादत को नमन करते उनके स्मृति  पर उन्हे भावभीनी  काव्यांजलि समर्पित करते है - 
"राजा गुरु बालकदास"

धन्य गुरु बालक दास 
गुरुवंश म जनम धर आये तय...

बन के बधवा बेटा बबा के
सपना ल संवारे तय ......

बनके  सतनामी राजा   
गुरु राजपाठ ल चलाये तय...

रावटी लगा के दुनिया म 
सतनाम पंथ ल चलाये तय....

गाव गाव अठगवा बनाके 
सतनाम अखाडा ल चलाये तय

भंडार धाम म अचरुज
मोती महल सिरजाये तय...

चाद सुरुज जोडा खाम गडाये
सतनाम- से‌ना साजे तय ....

दुख पीरा हरके मनखे मन के
मान ल बढाये तय ....

सत‌नाम के सेती बबा 
अपन जान ल गवाये तय... 

जुग जुग नाम अम्मर होगे 
बीर बलिदानी कहाये तय...
 
 डा.अनिल भतपहरी
९६१७७७७५१४
( गाव जुनवानी ,भंडार-तेलासी)

सी-११ ऊंजियार- सदन ,सेन्ट
 जोसेफ टाउन, अमलीडीह रायपुर।

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