Monday, December 28, 2020

भंडारपुरी गुरुद्वारा का जीर्णोद्धार

#anilbtapahari 

।।सतनाम पंथ का विश्व प्रसिद्ध मोती महल गुरुद्वारा भंडारपुरी ।।

    इस भव्य स्मारक को गुरुघासीदास मंदिर के नाम से भी  जाने जाते हैं। इसे जीर्णोद्धार / नव निर्माण के नाम पर  तीन दशक पूर्व ढहा दिए गये हैं। वहाँ केवल ढाचा मात्र है। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि  पुरी एक पीढ़ी इस गौरवशाली दृश्यांकन व दृष्टान्त से वंचित हैं । जब देश भर में महत्वपूर्ण स्मारकों का जीर्णोद्धार व अनेक नव आस्था के नवनिर्माण जारी हैं। तब इसके लिए 
 कुछ भी पहल या हलचल न होना बेहद चिन्तनीय हैं।  
    देश भर के लाखों- करोड़ों लोगों की श्रद्धा का केन्द्र इस ऐतिहासिक ईमारत कब अपनी पूर्व स्वरुप में स्थापित होगा? इसका उत्तर संभवतः किसी के पास नहीं हैं। 
               ज्ञात हो कि इसका निर्माण १८२०-३० के बीच गुरुघासीदास के निर्देशन में राजा गुरुबालकदास ने एक दृष्टान्त के रुप में करवाया था ताकि इनके अवलोकन मात्र से सतनाम धर्म संस्कृति की जानकारी जन साधारण को हो सके।  यहाँ से ही पुरे छत्तीसगढ़ और उनके बाहर सतनाम पंथ का प्रचार -प्रसार हुआ। देश के कोने -कोने से श्रद्धालु यहाँ आते और मत्था टेक कर अपनी धार्मिक भावनाओं का इजहार करते थे ।अनुपम ज्ञान प्राप्त कर कृतार्थ होते थे। दूर से दर्शन मात्र से गुरु उपदेशना का भावबोध होता था।  शिखर के चारों कोने पर तीन बंदर और गरजते हुए शेर का शिल्पांकन से युक्त  चौखंडा महल का नीचे भाग तलघर था। संपूर्ण प्रखंड वास्तु व  काष्ठ कला की अनुपम कारीगरी रही हैं । यह मानव जीवन के चारो अवस्था का शानदार व्याख्या था।पुरातत्त्व की दृष्टिकोण से अतिशय महत्वपूर्ण इस ईमारत का राजनैतिक उठापटक ,शासन -प्रशासन की अनदेखी और उचित  प्रबंधन के अभाव में यह जमींदोज हो गया जो कि  अत्यन्त दयनीय व दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति हैं। 
           छत्तीसगढ़ी संस्कृति की अस्मिता और ‌पुरे विश्व के मानव समाज को मानवता का संदेश देने वाली इस भव्य ऐतिहासिक  ईमारत की हुबहु प्रतिरुप में निर्माण अत्यावश्यक है।   
                इस पावन कार्य हेतु  गुरुदर्शन मेला  मे लाखों दर्शनार्थियों की उपस्थिति में प्रबंधन मंडल की ओर से उचित व सार्थक पहल करते हुए नव निर्माण की घोषणा होनी चाहिए।  खास तौर पर अनेक सामाजिक व धार्मिक संगठन है जो सतनाम धर्म संस्कृति के पैरोकार समझते हैं उन्हे चाहिए कि केवल जनप्रतिनिधी एंव गुरुवंशज ही उनके लिए उत्तरदायी नहीं है बल्कि उनके साथ साथ जन समर्थन व सहयोग  कैसे एकजुट हो ? इन पर गंभीरतापूर्वक चिंतन मनन व सकरात्मक  कार्य करें।
         जय सतनाम 
               
          -डाॅ. अनिल भतपहरी / 9617777514

Wednesday, December 16, 2020

काव्य प्रयोजन

मंय काबर लिखथंव ?

लिखत पढ़त मंहु हर आनमन कस अपन काव्य प्रयोजन ल फरिया के 2007 के मोर किताब के छपवा तको डरे रहेंव -

अर्थ नहीं धर्म नहीं 
आत्म प्रशंसा मेरी
नज़र में व्यर्थ सही
जो सच है उसे ढूंढने 
और कहने आया हूँ  
सोये रहोगे कब तक 
तुम्हें जगाने आया हूँ

‌फेर अब जाके पता चलिस 

कोनो जागय त 
झन  जागय 
फेर अपन ल 
जगाय के जुगत सेती 
लिखथंव -पढथंव
ताकि मय  सोय  
झन भुलाव रहंव...

Friday, December 11, 2020

गुरुबालकदास और वीर नारायन सिंह

छत्तीसगढ़ की अस्मिता और स्वाभिमान का प्रतीक   बालसखा द्वय - "वीर नारायन सिंह एंव राजा गुरु बालकदास" 

        म. प्र. के समय छत्तीसगढ़ राजनैतिक शक्ति के केन्द्र थे। पर विकास के नाम पर शोषित रहा है। सच कहें तो यह  उपनिवेश परिक्षेत्र जैसा ही रहा है। 
   90 विधायकों वाली यह क्षेत्र( अब राज्य )और उनके नेतृत्व बेहद प्रभावशाली रहा है। फलस्वरुप यहाँ से प्रथम सहित  अधिकांश  मुख्यमंत्री बने। क्योंकि अनु जाति /जनजाति के एकमुश्त ४० से ऊपर  विधायकों का समवेत समर्थन मिलता रहा। जो शेष म प्र के नेताओं के ऊपर भारी पड़ता था। उसका प्रत्यक्ष लाभ मिला ।पर दीप तले अंधेरा के भांति यह अंचल विकास से कोसों दूर रहे खासकर सांस्कृतिक पहचान भी शैन शैन छीण होते चले गये। पाठ्यक्रमों में भी यहाँ की इतिहास कला व सांस्कृतिक प्रतिमानों को स्थान नहीं मिला फलस्वरुप यहाँ की बौद्धिक संपदा भाषाई विकास  भी अपेक्षाकृत गौण होने लगा ।
             बावजूद यहाँ के समकालीन स्थानीय  नेतृत्व अनु जाति /जनजाति के नायकों को प्रतिष्ठित करने में कभी रुची नहीं लिए न इन वर्गों को गंभीरतापूर्वक लिए।
फलस्वरुप छत्तीसगढ़ से बाहर  म प्र का जो नेतृत्व हुआ वे जरुर दोनो समुदाय के नायकों को प्रतिष्ठित कर इन समुदाय को मुख्यधारा में लाने का उत्कृष्ट  कार्य किया।
       आजादी के बाद लगभग 40 सालों से उपेक्षित व जमींदोंज करने पर तुले  दो महानायक गुरुघासीदास और वीर नारायन सिंह को 80 के दशक में विध्यांचल परिक्षेत्र के  मुख्यमंत्री  कुंवर अर्जुन सिंह और उनके विश्वस्त इन वर्गों  मंत्रीमंडल के सदस्य  झुमुकलाल भेडिया -अरविंद नेताम  विजय गुरु ,बंशीलाल धृतलहरे और अजीत जोगी    जैसे लोगों के  अथक प्रयास से छत्तीसगढ़ की धरा में दोनो महामानव को सही सम्मान प्राप्त हो सका ।  उच्च स्तरीय नेता गण 18 दिसंबर जयंती में व्यस्त रहते और दूसरे दिन 19 दिसंबर को वीर नारायण सिंह के कार्यक्रम रहते। इस तरह दो दिवसीय  भव्यतम आयोजनों से एक वातावरण बना। इसी आयोजनों से  पृथक छत्तीसगढ़ की बातें होना आरम्भ हुआ।
    विश्वविद्यालय बांध जैसे बड़ी  प्रतिष्ठानों का नामकरण, जयंती पर  सार्वजनिक  अवकाश  और सामाजिक धार्मिक कार्यों में सहभागिता के कारण सही अर्थों में छत्तीसगढ़ी पना का अहसास जनमानस में गहराई से पनपा।
    पृथक छत्तीसगढ़ आन्दोलन के पृष्ठभूमि में भी गुरुघासीदास अभिमंत्रित वीर नारायन सिंह व राजा गुरु बालकदास के प्रदेय आन्दोलन और शहादत ही प्रमुख कारक रहें हैं। 
             इनके साथ साथ राजिम माता , कबीर पंथी धर्मदास पुत्र  चुरामणी नाम साहब , माता कर्मा , गुण्डाधुर , पं सुन्दरलाल शर्मा ,गुरुअगमदास , खुबचंद बघेल मिनीमाता मंत्री नकूल ढीढी , कंगलामांझी , प्रवीणचंद भंजदेव जैसे ऐतिहासिक महापुरुष हुए जो छत्तीसगढ़ी स्वाभिमान व अस्मिता प्रतिष्ठित करने के प्रेरणा पुंज रहे हैं। वर्तमान में तेजी से विकसित समृद्धशाली छत्तीसगढ़ अप‌ने इ‌न सपूतों को पाकर  सदैव धन्य रहेन्गे।    
                जय छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ की अस्मिता और स्वाभिमान का प्रतीक   बालसखा द्वय - "वीर नारायन सिंह एंव राजा गुरु बालकदास" 

        म. प्र. के समय छत्तीसगढ़ राजनैतिक शक्ति के केन्द्र थे। पर विकास के नाम पर शोषित रहा है। सच कहें तो यह  उपनिवेश परिक्षेत्र जैसा ही रहा है। 
   90 विधायकों वाली यह क्षेत्र( अब राज्य )और उनके नेतृत्व बेहद प्रभावशाली रहा है। फलस्वरुप यहाँ से प्रथम सहित  अधिकांश  मुख्यमंत्री बने। क्योंकि अनु जाति /जनजाति के एकमुश्त ४० से ऊपर  विधायकों का समवेत समर्थन मिलता रहा। जो शेष म प्र के नेताओं के ऊपर भारी पड़ता था। उसका प्रत्यक्ष लाभ मिला ।पर दीप तले अंधेरा के भांति यह अंचल विकास से कोसों दूर रहे खासकर सांस्कृतिक पहचान भी शैन शैन छीण होते चले गये। पाठ्यक्रमों में भी यहाँ की इतिहास कला व सांस्कृतिक प्रतिमानों को स्थान नहीं मिला फलस्वरुप यहाँ की बौद्धिक संपदा भाषाई विकास  भी अपेक्षाकृत गौण होने लगा ।
             बावजूद यहाँ के समकालीन स्थानीय  नेतृत्व अनु जाति /जनजाति के नायकों को प्रतिष्ठित करने में कभी रुची नहीं लिए न इन वर्गों को गंभीरतापूर्वक लिए।
फलस्वरुप छत्तीसगढ़ से बाहर  म प्र का जो नेतृत्व हुआ वे जरुर दोनो समुदाय के नायकों को प्रतिष्ठित कर इन समुदाय को मुख्यधारा में लाने का उत्कृष्ट  कार्य किया।
       आजादी के बाद लगभग 40 सालों से उपेक्षित व जमींदोंज करने पर तुले  दो महानायक गुरुघासीदास और वीर नारायन सिंह को 80 के दशक में विध्यांचल परिक्षेत्र के  मुख्यमंत्री  कुंवर अर्जुन सिंह और उनके विश्वस्त इन वर्गों  मंत्रीमंडल के सदस्य  झुमुकलाल भेडिया -अरविंद नेताम  विजय गुरु ,बंशीलाल धृतलहरे और अजीत जोगी    जैसे लोगों के  अथक प्रयास से छत्तीसगढ़ की धरा में दोनो महामानव को सही सम्मान प्राप्त हो सका ।  उच्च स्तरीय नेता गण 18 दिसंबर जयंती में व्यस्त रहते और दूसरे दिन 19 दिसंबर को वीर नारायण सिंह के कार्यक्रम रहते। इस तरह दो दिवसीय  भव्यतम आयोजनों से एक वातावरण बना। इसी आयोजनों से  पृथक छत्तीसगढ़ की बातें होना आरम्भ हुआ।
    विश्वविद्यालय बांध जैसे बड़ी  प्रतिष्ठानों का नामकरण, जयंती पर  सार्वजनिक  अवकाश  और सामाजिक धार्मिक कार्यों में सहभागिता के कारण सही अर्थों में छत्तीसगढ़ी पना का अहसास जनमानस में गहराई से पनपा।
    पृथक छत्तीसगढ़ आन्दोलन के पृष्ठभूमि में भी गुरुघासीदास अभिमंत्रित वीर नारायन सिंह व राजा गुरु बालकदास के प्रदेय आन्दोलन और शहादत ही प्रमुख कारक रहें हैं। 
             इनके साथ साथ राजिम माता , कबीर पंथी धर्मदास पुत्र  चुरामणी नाम साहब , माता कर्मा , गुण्डाधुर , पं सुन्दरलाल शर्मा ,गुरुअगमदास , खुबचंद बघेल मिनीमाता मंत्री नकूल ढीढी , कंगलामांझी , प्रवीणचंद भंजदेव जैसे ऐतिहासिक महापुरुष हुए जो छत्तीसगढ़ी स्वाभिमान व अस्मिता प्रतिष्ठित करने के प्रेरणा पुंज रहे हैं। वर्तमान में तेजी से विकसित समृद्धशाली छत्तीसगढ़ अप‌ने इ‌न सपूतों को पाकर  सदैव धन्य रहेन्गे।    
                जय छत्तीसगढ़

Wednesday, December 9, 2020

हमरो पुरखौती डेहरी ...

।।पुरखौती डेहरी ।।

हमरों पुरखौती डेहरी 
जुनवानी के घर भीतरी 
जतने पोटारे नतनिन नाती 
खेलय संग दादा -दादी 
कुलकत मन मगन भारी 
हमरों पुरखौती डेहरी 
कोठा डोला कुआं बारी 
रंग रंग फर फूल तरकारी 
सांझ बिहान गाय गोरु के रद्दा 
सकलाए माई पिला सुद्धा 
खेलय खावय नाचय कुदय 
मगन मन सबके खुशी अमावय 
घर परवार सब सुखी रहय 
अइसन साहेब से असीस मिलय 
मंगल गान जैतखाम के आरती 
आए हवय बेरा सुघ्घर ममहाती 
राहय सबर दिन अछाहित  
सुख सम्पत्ति फल  पावे मनवांछित 



 

कोरोना के संग जीना - मरना

।।कोरोना के संग जीना ।।

बात कुछ भी नहीं हैं पर यूं ही बात का बतड़ंग तो होते ही रहते हैं।
हमारी विविधतापूर्ण संस्कृति में जहां चार बर्तन रहन्गे, खड़खडाएन्गे ही ।अब यह आपके रेस्तराँ तो नहीं जहां फाइबर का बर्तन हो ,एक के ऊपर एक सटा हो पर कोई शोर- गुल नहीं बल्कि  निस्तब्धता रहें। और तो और  चुपचाप निर्वाह चलता रहें।
    आजकल लोग कांसा -पीतल तांबे ,स्टैनलैस स्टील रहे ही कहां प्लास्टिक व फाइबर के मानिंद होते जा रहे हैं।  युज एंड थ्रो  काम के बाद व्यर्थ ।
  नहीं तो पहले जिंदा हाथी के बाद मृत हाथी जैसे  बेशकीमती हो जाया करते थे वैसे हमारे यहाँ आदमी मरकर देवता ही हो जाते हैं।  इसलिए साधारण व्यक्ति को भी ब्रम्हलीन ,स्वर्गवासी ,सतलोकी कहकर सम्मानीत करते हैं। यदि वह विशिष्ट हो तो उसे अमर ही कर देते हैं। धातु का यही फायदा हैं। उसे गला- पिधला कर जो स्वरुप ढाल दो।पर दोने पत्तल टाइप प्लेटों को क्या करेन्गे?
    बहरहाल जब बातें  चली तो बता दूं। आज बेहद गर्मी हैं पीने का पानी तक  थर्मस नुमा बोतल में शाम तक पीने योग्य नहीं रहता। तो बाकी का क्या बिसात ।हां रोटिया और सब्जी रात की रहे तो दोपहर लंच तक लंच बाक्स में रखे ही सिंका जाता हैं ,गरमा- गरम ।
  तो इस तरह ताजी गरम  खाना और बायल पानी का लुफ्त भरी दोपहरी में पसीने से तर -बतर ले रहे हैं। 
        जब से वह मायका गई अकेले सुबह से घुसे रहो किचन में जली -अधजली जो भी बना जल्दबाजी ठूस- ठास कर जोर जार कर भागते आफिस आयो और ये डाय‌न कोरोना के चलते सेट्रल एसी और कूलर न चलाने का फरमान से गरम पंखे के थपेडे का सामना जैसलमेर की गर्म हवाओं जैसा अनुभव करते शासकीय दायित्व निर्वहन में मगन रहों। शाम घर जाते फिर गृहस्थी की घानी में जुत जाओ कोल्हू की तरह । मोबाइल में मगन बेटों से पानी मांगकर देख लो ! फौरन फिल्मी डायलाग सुनने मिलेगा - इस घर का रामु काका मै हू क्या ?
तो भैय्ये हमीं बन जाते हैं । आखिर सेवा ही सत्कार और राष्ट्र प्रेम हैं।  

बहरहाल आजकल राष्ट्र प्रेम यही समझे जाने लगे हैं कि जो शासन प्रशासन का आदेश है चुपचाप मान लो ।कही कुछ अवांछनीय लगा और टीप -टिप्पणियां कहे तो सीधा देशद्रोही ठहरा दिए जाएन्गे ।संकट काल हैं कुछ भी संकट आ धिरेन्गे।  अनचाहे मेहमान की तरह ।

   आजकल ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य का बुरा हाल हैं, इसलिए बीमार लोग शहरों में इलाज कराने आते हैं। और दूर दराज से रिश्ते निकाल आ धमकते हैं।
गृहलक्ष्मी का मायके का हुआ तो शुक्र है वह जो भी रहेगा  ,(काला कु...नहीं कह सकता नहीं तो वाणी दोष लगेगा ।
  खैर !ग्रामीण परिवेश का आदमी ले- दे कर कर्ज से एक दो कमरे शहर में बेहतर भविष्य के लिए बनवा लिए तो समझो कि रिश्तेदारों के लिए सराय हो गये।ऊपर से ससम्मान व्यवहार अलग से ।यदि खाने- पीने और व्यवहार व सेवा सत्कार आदि  में कही कुछ  कमी या खोट मिले तो आपका खैर नहीं सारी बिरादरी में नाक कटना तय हैं ।   परिवार वालों को शहर बसने शौक नहीं पालना चाहिए । यदि बस भी गये तो वह कहावत सुबह ए शाम आरती जैसा कान में गुंजते रहते हैं-" गीदड़ की मौत आती हैं तो वह शहर की ओर भागते हैं।"
   हां स्मृत हुआ कि कोरोना से बचने लोग सुरक्षित गांव तलाश रहे हैं। जो वर्षो गांव छोड़ चूके थे ओ लोग अपने जीर्ण -शीर्ण घर को मरम्मत करवा रहे हैं। और तो और जहां अदद बाथ रुम नहीं था वहाँ अब   कमोड टायलेट तक लगवा रहे हैं। 
   क्योकि शहर खासकर राजधानी जहां एम्स है और सारी दुनिया देख रही हैं कि यहाँ डाक्टर नहीं साक्षात् ईश्वर हैं। एक भी का एंट्री यहाँ से नहीं हुआ।सो बड़ी संख्या में मृत्यु दूत कोरोनो के नाम पर भेजे जा रहे हैं। जहां २०  मार्च से  २० म ई तक ६० ही थे आज २९ तक ३६० लोगों की बुकिंग हो गये हैं।
      अब महज ९-१० दिन में यह हाल है तो अब तीन माह बाद रोजी रोजगार से वंचित लोगों के जान से अधिक जहान प्यारा हो गया है। फलस्वरुप सप्ताह में ६ दिन  सुबह 7 से ,शाम 7 तक हर तरह की दूकाने खुलेन्गे ।

  अब श्लोगन बदल दिए गये हैं। बल्कि हर कोई को कंठस्थ करा दिए गये हैं कि" कोरोना के संग जीना हैं। "
       यार ये तो ठीक हैं पर तेरे संग जीना तेरे संग मरना की तर्ज पर क्यों इन्हे प्रचारित नहीं करते ?
"क्योंकि हम जैसे मोटे बुद्धि वालों को जीना तब तक समझ नहीं आते जब तक कोई सामने मर नहीं जाते ।"  सच में जब पुलिसिया ठुकाई नहीं होती तो कर्फ्यू यहाँ अकारण सक्सेस नहीं होता।इसलिए जब तक निराशा और खौप  का अंधेरा नहीं दिखाओं तब तक लोग "आशा की किरण" भरी टार्च खरीदते नहीं ।हमारे अग्रज परसाई जी ने इसे वर्षो हमें लिखित में बता दिए थे।
      तो जो है सो हैं अब भयानक संकट के कारण  जो दैनंदिनी में बदलाव आया और रेहड़ी, फेरी वाले रोजगार विहिन हुए उन्हे बचाने न चाहकर लाकडाउन में ढील दिए जा रहे हैं। सच तो है लोग घरों में भूखे न मरे इसलिए कमा कूद कर  खाते -पीते  सड़क पर मरे  आखिर मृत्यु भय से इस तरह उबरना तो हो ही जाएगा न ? यही निर्भय होना तो शास्त्र सम्मत वानप्रस्थ आश्रम का पुरुषार्थ हहै। निर्भय जीवन ...भले संक्रमित हो जाय। उनके इलाज कर लिए जाएन्गे  अन्यथा अस्पताल वाले  बैठे ठाले बाकी आफिस वालों की तरह लाकडाउन का मज़ा लेन्गे क्या ? ऐसा हो नही सकता ।  भले बचे न बचे पर बचाने का प्रयास चलता रहें। उम्मीद न छीजें।
     इस तरह हम लोग  अब इन तीन महिनों में आग लगने के बाद कुछ कुए खोद लिए  हैं।  और वेंटी लेटर सेनेटाइजर व माक्स आ गये।अन्यथा बैपारी भाऊ लोग तो शुरु को करोड़ो कमा दबा लिए ।
   अब देखो न उस दिन नमक नहीं कहके १० रु की  नमक को १०० में बेच दिए ।यह है हमारी कारोबारी जगत का कमाल।
बिहारी ने बकारी देत इन ब्यापारी की गुण का चित्रण किस खूबसूरती से किया हैं-
खुली अलक छूटी परत है बढ गये अधिक उदोतू।
बंक बकारी देत ज्यों दाम रुपैया होतु।।
  तो सारे अर्थशास्त्रियों को इसका मरम समझना चाहिए। 

  बहरहाल हमारे लिक्विड गोल्ड धार्मिक स्थलों के हार्ड गोल्ड से अधिक उपयोगी हुआ और बंद पड़ी इंजन पटरी में आ आए ।शराब अपने साथ बस रेल वायुयान तक चला दिए ...सुनने में आ रहा है कि  हमारे चरौटा भाजी की डिमांड अमेरिका में हो रहे हैं। सोमारु पुछ रहे थे कि भईया हमर मौहा लांदा बासी चटनी ल तको ले जाय हमन  कोरोना ल मतौना देके मार गिराबोन।
     ये दे उड़ीसा के पुजारी हर शास्त्रीय पद्धति ले  नरबलि देके कोरोना ल कसरहा कर दिस । अब परंपरावादी मन हुकरत भुकरत कोरोना हमर काय कर लिहि कहिके अटियाय ल धर लिस ।सिरतो कहत हव आचेच ले ४ था लाकडाउन ह  खतम हो गय। यानि शिथिल करके सामान्य धोषित कर दिए जा रहे हैं। जब एक केश था हम तीन महिने कैद थे घरों में अब ३६० केश है तो उनके ही तोड़ ३६० दिन छुट्टा घुमें फिरे खाए खेले कुदे नाचे ... कुछ दुरिया बनाकर मुखटोप लगाकर क्योकि अब कोरोना के संग जीना हैं।  जैसे जंगल में विषैले और हिंसक पशु पक्षी जीव जन्तु हैं उनके संग जीने और रहने के अभ्यस्त हमारे आदिवासियों की तरह ही निर्भय कोरोना के संग रहना होगा। हमें लगता है सवा अरब लोगों को महज ३ महिने में कोरोना के संग जी‌ना सीखा दिए गये हैं। ऐसे महान सिखावनहारों को नमन ।
    जय जय ...

-डॉ. अनिल भतपहरी 

Friday, December 4, 2020

छत्तीसगढ़ी राजभाषा उत्सव

*छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस उत्सव (छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर)*
----------------- ( महेन्द्र बघेल)
छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के अवसर मा छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर के तरफ ले पांच दिवसीय ( 26 नवम्बर ले 30 नवम्बर तक) साहित्यिक कार्यक्रम के आयोजन करे गीस। जिहां 26 नवंबर प्रथम दिवस मा *छत्तीसगढ़ के पुरोधा साहित्यकार के साहित्यिक अवदान* विषय मा आलेख आमंत्रित करे गे रहिस। ये विषय मा हमर पुरखा साहित्यकार मनके साहित्यिक अवदान ला रेखांकित करत बुधियार साहित्यकार मनके द्वारा सुग्घर जीवन वृतांत पटल मा प्रस्तुत करे गीस। ये पटल के एडमिन श्री अरूण कुमार निगम जी हर जनकवि कोदू राम दलित जी के उपर, दीदी सरला शर्मा हर डाॅ. पालेश्वर शर्मा के उपर, श्री गया प्रसाद साहू हर गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिया के ऊपर, श्री अजय अमृतांशु हर सुशील यदु जी उपर, श्री ओमप्रकाश साहू हर पवन दीवान अउ विसंभर यादव मरहा के ऊपर अपन आलेख पटल मा रखिन।
हमर पुरखा साहित्यकार मनके वयक्तित्व अउ कृतित्व ला पढ़के अब्बड़ अकन नवा जानकारी मिलिस , छत्तीसगढ़ी साहित्य के प्रति उनकर समर्पण अउ संघर्ष हा नवा कलमकार मन बर प्रेरणास्पद ही नहीं अपितु अनुकरणीय भी हवय।
------
पांच दिवसीय आयोजन के क्रम मा दूसरैया दिन *छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के औचित्य* विषय उपर केन्द्रित मौलिक विचार ला पटल मा प्रस्तुत करे के अवसर प्रदान करे गीस।
ये विषय मा चर्चा होय के पहिली, पाछू दिन के मरहा जी वाले आलेख ला कोड करत श्री अजय अमृतांशु हर अपन संस्मरण साझा करिन।
तेकर बाद मा विषय ऊपर सबले पहिली दीदी सरला शर्मा के विचार आइस, ओमन छत्तीसगढ़ी साहित्य लेखन अउ स्कूली पाठ्यक्रम बर विस्तार पूर्वक चर्चा करत अपन सारगर्भित बात रखिन। अगले क्रम मा श्री चोवा राम वर्मा हर छत्तीसगढ़ी बर पुरोधा मन के संघर्ष अउ वर्तमान मा छत्तीसगढ़ी के दशा दिशा के ऊपर अपन विचार रखिन। इही बीच दीदी सरला शर्मा के विचार ला कोड करत तीन साहित्यकार मन के अभिमत पढ़े बर मिलिस।उन मा सर्वप्रथम डॉ विनोद वर्मा जी के समीक्षात्मक टिप्पणी आईस, उन मन कहिन छत्तीसगढ़ी के सुग्घर  भविष्य बर ये भाषा के मानकीकरण के अत्यंत आवश्यकता हवय। तत्पश्चात श्री अशोक तिवारी हर साहित्यकार मन के सतत संघर्ष अउ शासकीय उदासीनता ऊपर चिंता व्यक्त करिन। ओखर बाद श्री रामेश्वर गुप्ता हर अंग्रेजी स्कूल खुले ले छत्तीसगढ़ी कहीं नेपथ्य मा झन चले जाए कहिके अपन विचार रखिन। कुछ समय पश्चात आबंटित विषय मा श्री अनुज छत्तीसगढ़िया के विचार आईस, ओमन सकारात्मक भाव ले छत्तीसगढ़ी भाखा ल अपनाय बर कहिन।
तत्पश्चात डाॅ. विनोद वर्मा के टिप्पणी ऊपर प्रति टिप्पणी करत श्री रामनाथ साहू हर राजकाज अउ शिक्षा-दीक्षा के भाषा ऊपर अपन चिंता जाहिर करिन। विषय उपर श्री बल्दाऊ राम साहू अपन विचार व्यक्त करत कहिन कि छत्तीसगढ़ी मा अभी तक कोन कक्षा मा का पढ़ाय जाय उही च कार्ययोजना के इहाॅं लगभग अभाव हे।श्री पोखन लाल जायसवाल हर छत्तीसगढ़ी ला रोजगार मूलक भाषा बनाएं बर जोर दिन। श्री बलराम चंद्राकर हर राजभाषा आयोग के ऊपर प्रश्नचिन्ह उठावत कहिन कि येमन काबर उदासीन हवॅंय। अंत मा एडमिन श्री अरुण कुमार निगम हर अपन बात रखत कहिन कि सरकार संग हम सब ला छत्तीसगढ़ी भाषा बर आत्म समीक्षा और आत्म चिंतन के जरूरत हे।
येकरे साथ दूसरैया दिन के विषय काल के समापन होइस।
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आयोजन के तिसरैया दिन यानी छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस उत्सव 28 नवंबर के दिन *अवइया समय के छत्तीसगढ़ी* विषय ऊपर विचार आमंत्रित करे गिस । ये दिन पटल के लगभग सबो सक्रिय सदस्य मन बिहनिया च ले छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के अवसर मा बधाई अउ शुभकामना संदेश लगातार पठोवत रहिन। आबंटित विषय मा दो प्रबुद्ध साहित्यकार मन के विचार आइस सबसे पहली दीदी सरला शर्मा छत्तीसगढ़ी के व्याकरण पक्ष ला पोठ करे बर शानदार ढंग ले अपन विचार पटल मा रखत कहिन कि भाषा हर परिवर्तन शील सामाजिक सम्पत्ति आय तब छत्तीसगढ़ी ला पाठ्यक्रम मा 12. 72 % से  70.12 % तक पहुंचाना हमर लक्ष्य होना चाही। अभिव्यक्ति के अगला क्रम मा श्री सत्यधर बांधे हर अपन सुग्घर विचार रखिन।
 आज छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस उत्सव होय के कारण पूरक सामग्री के रूप मा श्री अजय अमृतांशु के द्वारा छत्तीसगढ़ी ला राज काज के भाषा बनाय बर अपन साहित्यिक संस्था अभिव्यक्ति डहर ले माननीय मुख्यमंत्री जी ला पठोय गय पत्र के जानकारी, वैभव प्रकाशन रायपुर के सहयोग ले आनलाइन  गोठबात के नेवता संग गुगल मीट के लिंक अउ छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग डहर ले कार्यक्रम के नेवता संग दीदी सुधा वर्मा ल सम्मानित करे संबंधित पत्र ला पटल मा साझा करे गिस।
येकरे संग तिसरइया दिन के आयोजन मा विराम लगिस।
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आयोजन के रूपरेखा अनुसार चौथइया दिन ला *तीसरइया दिन के आयोजन के रिपोर्टिंग* बर आरक्षित रखे गय रहिस।
सौभाग्य से छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के दिन साहित्य एवं भाषा अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़) द्वारा आयोजित राष्ट्रीय ई संगोष्ठी मा भाग लेहे के अवसर मिलिस।
दिनाॅंक 28 नवंबर 2020 के बिहनिया 11 बजे ले *छत्तीसगढ़ी, भाषा, संस्कृति अउ लोक साहित्य* विषय मा आयोजित ई संगोष्ठी हर माननीय कुलपति डॉ. केशरी लाल वर्मा के उपस्थिति मा पहुना डॉ. चितरंजन कर भाषाविद एवं साहित्यकार, डॉ. राजन यादव लोक साहित्य के मर्मज्ञ, डॉ. अनिल भतपहरी लोक साहित्यकार एवं श्री रामनाथ साहू उपन्यासकार मन के पहुनाई मा प्रारम्भ होइस।
सबले पहिली डॉ. स्मिता शर्मा हर कार्यक्रम के शुभारंभ विश्वविद्यालय के कुल गीत *सत्य शिव सुंदर से अभिमंत्रित सुहावन*, *ज्ञान का विज्ञान का यह तीर्थ पावन* ले करिन। फेर दीपमाला शर्मा व साथी मन छत्तीसगढ़ राज गीत *जै हो जै हो छत्तीसगढ़ मैया*  ले प्रारंभ करके *जतन करव भुइयां के संगी जतन करव,बही बना दिये रे बुंदेला, ओ गाड़ी वाले..पता ले जा रे, घोड़ा रोवय घोड़ेसारे मा* तक अपन सांगीतिक प्रस्तुति रखिन।
पहिली वक्ता के रूप मा विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ केशरी लाल वर्मा हर कहिन कि छत्तीसगढ़ी के मान सम्मान अउ प्रगति हर ख़ुद के मान सम्मान अउ प्रगति आय। संस्कृति अउ लोक साहित्य के विकास कइसे होय येकर चर्चा के साथ, आगे येकर पठन पाठन के चर्चा भी आवश्यक हे।
  डाॅ. शैल शर्मा कार्यक्रम के संयोजक हर अपन वक्तव्य मा कहिन कि छत्तीसगढ़ मा बंधुत्व, एकता अउ प्रेम के अद्भुत परम्परा हर सामाजिक एकता के रीढ़ आय।
श्री रामनाथ साहू जी उपन्यासकार हर  *हीरू के कहनी* से लेकर *भुइया* उपन्यास के यात्रा वृत्तांत बतावत कहिन कि समग्र राष्ट्रीय चेतना से छत्तीसगढ़ हा अलग नइहे।
डॉ. अनिल भतपहरी हर छत्तीसगढ़ी के प्राचीन अउ अर्वाचीन स्वरूप के उपर चर्चा करत छत्तीसगढ़ ला आर्य ,अनार्य अउ द्रविड़ तीनों संस्कृति के समागम बताइन।
डॉ.राजन यादव लोक साहित्य के मर्मज्ञ हर छत्तीसगढ़ी लोकगीत के विशेषता ला बतावत कहिन कि पूर्व काल मा पर्यावरणीय अउ भौगोलिक अनुभव के फलस्वरूप लोकगीत के माध्यम से समाज ला शिक्षा मिलत‌‌‌ रहिस।अउ आघू कहिन कि आज हमला छत्तीसगढ़ी राजभाषा ला सिरिफ कागज मा नहीं सचमुच के राजभाषा बनाय बर परही।
अंतिम वक्ता के रूप मा भाषाविद डॉ चितरंजन कर हर अपन विचार व्यक्त करिन कि संवैधानिक ढांचा मा शामिल होय ले नहीं ओमा काम करे ले भाषा के गौरव बाढ़ही।ज्ञान अउ भाषा हर एक पन्ना के दू पृष्ठ आय, जेला अपन मातृभाषा नइ आवय ओला कोई भाषा नइ आवय।
ये कार्यक्रम के सह संयोजक डॉ मधुलता बारा हर आभार प्रकट करिन।
कार्यक्रम के सुचारू रूप से संचालन के दायित्व डॉ गिरिजा शंकर गौतम हर निभाइस।
अउ अंत मा भाषा एवं अध्ययनशाला पं रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर के तरफ ले, ई प्रमाण पत्र मिल सके कहिके कार्यक्रम मा शामिल होवइया छात्र, शोधार्थी, शिक्षक अउ साहित्यकार मन ले अपन फीडबैक फार्म ला भरे के अपील करें गइस।
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आयोजन के पांचवा दिन 30 नवंबर 2020 के *ऑनलाइन कवि गोष्ठी*  के कार्यक्रम रखे गिस।

आनलाइन कवि गोष्ठी के शुभारंभ वरिष्ठ कवि गया प्रसाद साहू के सुरमयी सांगीतिक वंदना अउ *तोला बंदव तोला बंदव, तोहिला बंदव* के साथ होइस, ओकर पश्चात क्रमश: मोहन कुमार निषाद लमती (घनाक्षरी) - *भाखा महतारी आय, मान सबो रखलव* , बोधन राम निषाद कवर्धा ( लावणी छंद) - *ये माटी मा हीरा मोती,ये माटी हा चंदन हे*,चोवा राम वर्मा बादल ( गीत) - *मन भीतरी मा जी कहुं घपटे हे अंधियार* , ज्ञानूदास मानिकपुरी कवर्धा ( छप्पय छंद)- *मुचमुच ले मुस्कान,कहर हिरदय मा ढाथे*, दिलीप कुमार वर्मा (छंद पकैया)- *छंद पकैया छंद पकैया,जाड़ा के दिन आगे।* दीदी आशा देशमुख (शक्ति छंद)- *मिंजाई चलत हे,बियारा भरे*, शशिभूषण सनेही (मनहरण घनाक्षरी)- *धरती ये माता मोर,भाग्य के विधाता मोर* , अजय अमृतांशु भाटापारा (बरवै छंद)- *येती वेती कचरा झन बगराव,कचरा वाले गाड़ी आगे जाव* ,अनुज यादव कोरबा(कविता)- *मॅंय भारत मां के बेटा*, सुखदेव सिंह अहिलेश्वर ( लावणी छंद)- *अब का तीरथ बरत मॅंय जाहूॅं,बाॅंचे ये जिनगानी मा* , दीदी शोभा मोहन श्रीवास्तव (अंतस के गीत)- *गीत मोर मनखे के पीरा के सरेखा* , जितेंद्र वर्मा खैरझिटिया ( गीत)- *धान लू मिंज के मॅंय,करजा छूट देहूॅं लाला*, जगदीश हीरा साहू भाटापारा (दोहा)- *छत्तीसगढ़िया मॅंय हरॅंव,बोल लगे ना लाज*, ओमप्रकाश साहू अंकुर सुरंगी (कविता)- *छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया*, एडमिन श्री अरूण कुमार निगम (घनाक्षरी छंद)- *शरद ला बिदा देके आय हे हेमंत रितु*, राजेश कुमार निषाद चपरीद (दोहा)- *महॅंगू के तॅंय लाल गा , बाबा घासीदास* बल्दाऊ राम साहू (गीत)-  *बड़े बिहनिया हासत कुलकत,सुरूज अब उगइया हे*  सूर्यकांत गुप्ता दुर्ग (गीतिका)- *मान हिंदी के हवय जस मोर भाखा के घलव* मनीराम साहू मितान कचलोन (घनाक्षरी)- *खाड़ा मास हाड़ा काट, मूड़ गाड़ा गाड़ा काट* , दीदी सुधा वर्मा ( कविता)- *नोनी तॅंय चिरई कस झन उड़िया*, रामनाथ साहू डभरा जाॅंजगीर ( नव ददरिया गीत)- *मोर पिंयर सैंया पार लगा दे मोर नैंया*, दीदी बसंती वर्मा बिलासपुर (अमृतध्वनि छंद)- *मन के पीरा ला का कहॅंव ,आय बिदा के बेर* , पोखन जायसवाल (मतगयंद सवैया)- *बाल सखा सब संग धरे अउ हाॅंसत कूदत आवय टोली* , महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव (गीतिका छंद)- *शोध होवत रात दिन जी,चाॅंद के अभियान बर*, दीदी केवरा यदु राजीम (ताटंक छंद)- *राजा दशरथ के ॲंगना मा खेले चारों भैया जी*, दीदी शशी साहू कोरबा (गीत)- *मउहा झरै, रात भर टुप टुप मउहा झरै*, मिलन मल्हरिया (अमृतध्वनि छंद)- *दुख ला सुख के संग मा,समय बाॅंध के लाय* , दीदी शकुन्तला तरार (मुक्तक)- *आने के दुख ला मिटा के देख लव*  के प्रस्तुति लगातार चलिस।
बुधियार साहित्यकार मन ले आशीर्वाद लेवत ये गोष्ठी मा सबों प्रतिभागी कवि मन समाज के सरोकार ला आवाज देवत अपन अपन बात कहिन।
येकरे साथ छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर के पाॅंच दिवसीय कार्यक्रम के समापन होइस।
*येमा कोई अतिशयोक्ति नइहे कि राज बने के पहली अउ बाद मा हमर पुरखा सियान मन छत्तीसगढ़ी भाखा के विकास अउ विस्तार बर कोई कसर नइ छोड़िन। नवा बुधियार अउ उर्जावान साहित्यकार मनके सकारात्मक योगदान ले आज वो संघर्ष  हर लगातार जारी हे , जे निश्चित रूप से लक्ष्य तक पहुंचे बर हौसला ला बढ़ाथे। तब हम कहि सकथन कि हम सब के साॅंझर मिंझर प्रयास अउ अधिकाधिक उपयोग ले छत्तीसगढ़ी हर कार्यालयीन / राज-काज के भाषा बन के रही।*

महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव जिला राजनांदगांव

बेहद चिन्तनीय

बेहद चिन्तनीय !
देश पूंजीवाद और निजीकरण की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं उसी का यह दुष्प्रभाव हैं कि वर्तमान में चंद लोगों के पास देश की अकूत संपदा एकत्र हो रहे हैं। दर असल यह देश आरंभ से पूंजीवाद के गिरफ्त में रहे हैं। जिसकी लाठी उसकी भैंस यह तो रहा ही हैं। राजतंत्र इसलिए लाठियां सजाकर रखते और भैंस के साथ साथ  लठैत पालते थे।
बीच में अंग्रेज़ी सत्ता आई और भूमि का बन्दोबस्त करके राजा जमींदारों मालगुजारों के साथ  हलवाहों को भी भू स्वामी बनाकर एक सिस्टम दिए फलस्वरुप मध्यम वर्ग का उदय हुआ ।इनकी बड़ी आबादी हैं पर आजादी के बाद यह वोट के रुप में परिवर्तित हो गये । इनकी मत और वोट की सौदागरी के लिए इतना ही हिस्सेदारी दी ग ई कि  बमुश्किल गुजारा कर पा रहे हैं। जबकि कठोर परिश्रम के बावजूद करोड़ो   श्रमिक /निम्न वर्ग के लोगों का जीवन स्तर नारकीय हैं।   
       भारतीय समाज  के एक बड़ा तबका जो उक्त मध्यम वर्ग में वही हालात के मारे  धर्म -कर्म ,पूजा- पाठ में मगन ईश्वरीय कृपा  और "परलोक सुधारने "की चक्कर व चाह में भजन कीर्तन सत्संग प्रवचन सुनते  करते व्यतीत हो जाते हैं । फलस्वरुप न तो भगवान मिलते न अपेक्षित हाल मुकाम हैं। ऐसा लगता हैं कि इन्हे जानबूझकर इनमें उलझाया गया है। 
  भक्ति की मद  में डूबे और उन्मत्त परलोक सुधारने के चक्कर  अपना "इहलोक‌ बिगाड़" रहे  हैं!  
     जिस समुदाय का जितना बड़ा और लंबा धार्मिक आयोजन वह उतना कृपण व दयनीय व मजलूम ।
जैसे बस्तर में 71 दिवसीय रथयात्रा महोत्सव बेचारे केवल रोटी व लंगोटी के लिए संधर्ष रत है आधारभूत सुविधाएँ तो दूर की कौड़ी हैं।
    इसी तरह दो दो नवरात्रि हर महिना व्रत त्योहार उपवास नवधा व क ई दिनो तक की कथा  आयोजन  में सदियां बीत ग ई अबतक देव देवियों की कृपा की बरसात नहीं हुई।
        १५ दिनों तक जयंती  धूम और करोड़ों व्यय पर अपेक्षित मान सम्मान व आधारभूत आवश्यकता के लिए तरसते विराट सतनामी समाज । जिनके एक अदद फैक्ट्री व ५०-१०० लोगों को रोजगार दे सके ऐसा एक भी उद्योग नहीं न कोई प्रतिष्ठान हैं।

          धन्य हैं।

Thursday, December 3, 2020

चौंक चौराहें मोड़ पर ...

चौक चौराहे मोड़ पर ..

रविवार के बावजूद आज चुनावी ड्युटी के चलते आराम हराम हो गया और बोनस स्वरुप  रास्ते में बाल-बाल बचा! 
       हुआ युं कि वीकेन्ड अवकाश के आदत पड़ जाने से  एकाध धंटे बाद नींद खुली ।हड़बहाट में जल्दी निकले क्योकि  निर्वाचन  काल में  नौकरी करना नही बचाना जो पड़ता है। 
    बाहरहाल जैसे चौंक में मोटर साईकिल पहुंची कि स्मृत हुआ मोबाइल घर में छूट गये ... "दुब्बर बर दु असाढ़" जैसे स्थिति एक पहले से लेट दूसरे और भी लेट करने होन्गे !खाना पानी यहां तक परीचित से रुपये मिल भी सकते है पर मोबाइल  नही! और आज डिजिटल युग मे इनके बिना गुजारा मुश्किल ... लत आदि तो नही.. बल्कि पल -पल सुचनाओं के लिए यह आवश्यक है।
      वापस घर की ओर मुड़ना ही हुआ कि चौक में मंदिर के पास  एक घरघराती कार पीछे से टक्कर दे मारी  तिलक लगाए  हाथ में मौली सूत्र बांधे वह शख्स  धार्मिक और जल्दी में लगा .. और हम भी ... कहां-सुनी का समय ही कहा?  जो हुआ सो हुआ ! बस में बैठे मोबाइल के सिवा यदा -कदा ही यात्रियों में आज कल वार्तालाप हो पाते है डेली अप -डाउन वाले तो इनके चलते अब दुआ सलाम तक छोड़ दिए जिसे देखों सम खोए और इसी मे उलझे  है ... हम भी ।सफर काटने का यह नया और सर्वोत्तम तरीका भी तो है।
   अब रेल्वे ,बस स्टेण्ड मे पत्र- पत्रिकाएं की बुक स्टाल नही अपितु मोबाइल चार्जर ,इयर फोन  ,पावर बैंक  सेल्फी स्टीक मेमोरी कार्ड  की दुकानें सजे- धजे है।
      येशुदास की गोरी  तेरा गांव बड़ा प्यारा ... हो या चांद जैसे मुखड़े पे ... कितनी बार सुन लो मन नही अधाते ... और और सुनने का मन करता है ... इसलिए हर बस वाले जिनके पास स्टोरियों सिस्टम है जरुर बज जाते है । क्योकि बस ड्राइव्हर प्राय: मैच्योर ड्राइव्हर है और इस देश के मैच्योर लोग चाहे किसी कम्पनी या शासकीय  आफिस का डायरेक्टर हो या बस कंडक्टर सबको ७०-८० के दशक का फिल्मी गीत ही प्रिय है। हां यदा -कदा लोक गीत गर्मी में बारिश की फुहार की मानिन्द या ठंड मे चुभती -चिरती हवा में गर्म झोंके सा बज उठते है। एक परीचित के ड्राइव्हर को चंदैनी गोंदा के गीत रखने कहा ... पर राजधानी के बस ड्राइव्हर व कंडेक्टर छत्तीसगढिया नही है और डायरेक्टर का तो होने का सवाल पैदा नही होता।  गर भूले भटके हो गये तो छत्तीसगढी गीत गुनगुनाने की भूल मात्र से देहाती हो जाएन्गे। वैसे डायरेक्टर कला प्रेमी हो गये तो प्रशासन कैसे कर पाएन्गे। उन्हे जानबुझ कठोर और चेहरे पर गंभीरता तो लादना है ताकि जीनियस और धीर गंभीर लगते भले घर जाकर वह जो हो जाय।
बहरहाल  ये लोग छत्तीसगढिया सवारी से  उनके गंतव्य के किराया लेने और स्टेशनों के नाम याद कर लिये  पक्के छत्तीसगढ़िया जैसे दाई -माई गोठिया ले पर है यु पी बिहारी  और यहां रोपा बिसाई निंदाई छोड़ सब काम करने में माहिर हैं। यदि इनके भी मसीन आ जाए तो काम करते पर प्रातिंक नजर आएन्गे और चौरे पर तास फेटते माखुर गुटका के पीक थूकते या भट्टी से लड़भडाते आते छत्तीसगढ़िया दिखेन्गे।
   बहर हाल आजकल कठोर अकुशल श्रमिक छत्तीसगढ़िया है और वे केवल लेवर गिरी के लिए बना है जान पड़ते है। दीवाली व चुनाव समीप आने से देश भर के शहरों में राजमिस्त्री लेवर व  ईट भठ्ठे में ईट बनाते परिवार उछाहित झुंड के झुंड बाल- बच्चों सहित लौट रहे है।इनकी भीड़ व आव्रजन-पलायन देखा तो वह मंजर याद आने लगे जब हम कोसरंगी हाईस्कूल में पढ़ रहे थे।तब एक रात्रि खरोरा से आगे पेंड्रावन जलाशय के समीप पाइटेक इंजीनियरिंग  कालेज के पास पर सिमेन्ट से भरा ट्रक और उन पर बैठ कर जीविकोपार्जन हेतु पलायन करते मजदूर सहित  रात्रि में  मुरामोड़ पर उलट गये और४-६  लोग दब कर मर गये व  गंभीर रुप से धायल हो गये । दूसरे दिन  राजदूत से तीन सवारी हम मित्रगण यहां वह मंजर देखने आए ट्रक उलटा पड़ा और सिमेन्ट की बोरियां यत्र- तत्र बिखरे खुन से सने मिले ।लोमहर्षक दृश्य देख हृदय द्रवित हो गये।कुछ दिन बाद वहां मंदिर बन गये हर नवरात्रि व अवसर पर जोत जवारा भजन पूजन चलने लगा  वह शक्ती पीठ जैसे चर्चित होने लगे मनोकामना कलशों की संख्या बढ़ती जा रही है। आज उसी मोड़ पर बस पहुचते ही अचानक जोर से ब्रेक पड़ा । और  खड़े हुए यात्री गण एक दूसरे पर लद भिड़ गये।बैठे हुए लोग सामने सीट से टकराए ... मेरा तो ऊपरी ओठ सामने सीट मे लगे हाथ रखने के हत्थे से टकरा चोटिल हो गये .रुमाल से खून पोंछा ..नीचे गिरे मोबाइल उठाया और  फ्रंट कैमरे से देखा  सूज गये है दर्द से हाल-बेहाल रविवार है और नौकरी बचाना है और लोगों को गंतव्य की ओर जाना है। यह नौबत तब आया जब एक मोटर साईकिल चालक मंदिर के आगे हेंडिल छोड़  हाथ जोडने लगे  व लड़खड़ाकर गिर गये उसे बचाने बस चालक ब्रेक लगाए  ओ गाडी वाला चमत्कार मान और लेट गये ।बस ड्राइव्हर व पीड़ित यात्रियों का समवेत स्वर  उसे गालियों का आशीष देते आगे बढ़ गये ।
     हर गली चौक- चौराहे ,तिराहे मोड़ पर धार्मिक स्थलों की निर्माण और जनमानस की उनपर आस्था , वाहन चालकों का हैंडिल छोड़कर दोनो हाथ से प्रणाम व  पल भर आंखे बंद कर ध्यान भक्ति  कौन सी नवीन भक्ति अराधना की  विधी है!  जिससे अराध्य की कृपा मिलते है? यह जरुर धर्म अध्यात्म व दर्शन साहित्य जगत में अन्वेषण का विषय है।और यातायात विभाग वालों की कैसी रहमों- करम है नमकयह भी विचारणीय है ।
      लोग कहते है कि सड़क किनारे शराब दूकान के कारण दुर्धटनाएं धटती है ,आज हमे लगा वह जो हो पर इन सड़कों के किनारे ,मोड़,चौक- चराहों पर शेष भाग -३ 
लोग कहते है कि सड़क किनारे शराब दूकान के कारण दुर्धटनाएं धटती है ,आज हमे लगा वह जो हो पर इन सड़कों के किनारे ,मोड़,चौक- चराहों पर धार्मिक जगहों के कारण बड़ी -बड़ी दुर्धटनाएं धट रही  वह क्यो लोगों को नजर नही आते ? 
  धार्मिक कार वाले से बच कर बस में बैठ हुए मोटर साइकिल वाले की अन्यय भक्ति से धायल अनिल सच में विवश और बेबश है कि इन सबका क्या किया जाय 
      -डा. अनिल भतपहरी

Tuesday, December 1, 2020

रामनामी प्रथा और उनकी वर्तमान दशा

छत्तीसगढ़ में सतनामियों के बीच सतनाम के जगह रामराम सुमरने की प्रथा १९०० के आसपास शुरु हुआ ।
युं कहे सतनाम जागरण को छत्तीसगढ़ के उत्तर पूर्वी भाग में फैलने से बचाने और हिन्दूत्व विचारधारा को थोपने की  सडयंत्र के तहत हुआ।
यदि यह रामनाम भक्ति वाला मामला होता तो सारे हिन्दू जातियाँ जो परंपरागत राम भक्त हैं। वे लोग भी रामनाम गुदवाते। परन्तु ऐसा एक भी उदाहण नहीं हैं। रामनामियों से छुआछूत व भेदभाव करते हैं। इस तरह बेचारे रामनामी न हिन्दू हुए और न सतनामी ।बल्कि रामनाम और सतनाम के दो पाटन के बीच पीसते रहे हैं। इसलिए यह समाज बेहद पिछड़े व निर्धन लोग हैं। सतनाम‌ से दुराव के बाद  हिदुत्व की दुत्कार से रामराम को ही सतनाम के समकक्ष मानकर  निर्गुण निराकार दर्शन विकसित कर लिए पर भक्ति राम और रामचरित मानस का ही चलने लगा। इस बीच में इन्हें जाति प्रमाण पत्र बनाने और शासन की सुविधाओं का अपेक्षित  लाभ भी नहीं मिल पा रहे थे। 
         गिरौदपुरी के समीप ही शिवरीनारायण के आसपास  ग्रामों से हुआ। गौटिया / मालगुजार  परशुराम भतपहरी जो हमारे ही गोत्रज हैं इनके प्रमुख सूत्रधार रहे हैं।   फलस्वरुप यह परिक्षेत्र सतनाम जागरण से वंचित हो गये ।

     बहरहाल अब रामनामी महज ३०० - ४०० के आसपास ही बच गये हैं। न ई पीढ़ी इस परंपरा से काफी दूर हैं। 
        हिन्दूत्व संरक्षण वर्गों द्वारा इस प्रथा को बढावा देने  इनके प्रमुख लोगों को  रामनामी मेला लगाने सुविधाएँ उपलब्ध कराते हैं।  फलस्वरुप दो बार मेला लगाए जाने लगे हैं।
     विगत कुछ वर्षों से  सतनामी व रामनामी  के एकीकरण के लिए धार्मिक व सांस्कृतिक रुप से प्रयास हुए । मुझे भी उक्त आयोजन में सम्मलित होने का आमंत्रण मिला । रामनामी  आचार्यों से हमारी मेल मुलाकात व संक्षिप्त चर्चाएँ हुई । वे लोग शर्मिंदगी भी प्रकट किए और कुछ तो मरने तक इन्हे न उतार सकने की मजबूरी दशा को व्यक्त किए ।
          एक आयोजन में  प्रमुख मुखिया व आचार्यों ने घोषणा किया  कि एक भतपहरी भारद्वाज के चलागन को दूसरे भतपहरी भारद्वाज के संबोधन से समापन करेन्गे ।
            "जब तक जीयत हन एकर भार ल सहिबोन नवा पीढ़ी ज इसन करय।"
   चिन्ता प्रकट किए कि कुछ सत्ता पद प्रभाव  लोलुप और चालाक लोग अब कपड़े पर रामनामी ओढ़कर भजन मेला करने का ढोंग कर रहें हैं ।इन को बंद कराना चाहिए।

Monday, November 23, 2020

सहोद्रा माता झांपी दर्शन मेला

सतनाम धर्म संस्कृति के नव प्रवर्तन पर्व - 
"सहोद्रामाता झांपी दर्शन मेला "डुम्हा भंडारपुरी फागुन पूर्णिमा की हार्दिक बधाई .....

सहोद्रा माता की झांपी दर्शन मेला डुम्हा भंडारपुरी 
                  २१ मार्च २०१९ 

   गुरुघासीदास की सुपुत्री सहोद्रामाता की झांपी जो (उनके गृहग्राम कुटेला बाद मे डूम्हा मे )उनके परिजन दीवान परिवार के पास संरछित है। उसमे गुरु घासीदास द्वारा व्यवहृत की ग ई सामाग्री संचित है जिसमे चरणपादुका , कंठी और सोटा सम्मलित है।ध्यान दे उनमे जनेऊ आदि नही है। उसे प्रत्येक वर्ष होली के दिन विधिवत पूजा अर्चना कर सफेद वस्त्र से बांधकर पलटे जाते है। जैसे गद्दी व नाडियल पलटते है।
      इसे देखने दूर दूर से कुछ विशिष्ट श्रद्धालू आते है।खासकर बोडसरा परिछेत्र जो सहोद्रामाता की ससुराल परिछेत्र है ,उधर के लोग अधिकतर आते है।
        आने वाला समय मे डुम्हा ग्राम मेले  के रुप मे परिणित हो सकते है ,जहां बडी संख्या मे लोग बाबा जी की  उक्त पवित्र अवशेष के दर्शनार्थ आयेन्गे।
            हमारी तो यह दि‌ली चाह है कि डुम्हा मे गद्दी सोटा और कंठी माला के लिए भव्य स्मारक बने और दीवान परिवार उनके संरछक सेवादार रहे।
    साथ ही साथ गुरु बाबा घासी दास द्वारा  सतनाम धर्म प्रचार हेतु  लगाए गये ९ रावटी स्थल - चिर ई पहर ,दंतेवाडा , कांकेर ,पानाबरस , डोंगरगढ ,भंवरदाह ,भोरमदेव ,रतनपुर और दल्हा पहाड मे भी स्मारक बने एंव कंठी माला के एक एक मनके को रजत या स्वर्ण मंजुषा मे रखकर स्थापित व  संरछित करे।
  यह धार्मिक योजना बडी ही महत्वाकांछी योजना है। इनके लिए समाज के सभी वर्ग खासकर गुरु परिवार दीवान परिवार साधु संत महंत भंडारी साटीदार अधिकारी कर्मचारी गण से प्रतिनिधी मंडल बनावे एंव उक्त निर्माण एंव संबंधित जगहो के विकास व वहां मेले संगत पंगत अंगत की सतनामी सांस्कृतिक अनुष्ठान आरंभ करावे। 

तब जाकर सतनाम धर्म के मार्ग प्रशस्त होन्गे।
    धर्म और धार्मिक आयोजन ही जनमानस मे सांस्कृति एकता स्थापित कर सकते है।और परस्पर मेलजोल से संगठन और संगठन से ही शक्ति ।शक्ति से हस्ती और हस्ती से युक्ति युक्ति से मुक्ति......!.
 धार्मिक आयोजन ही मुक्ति के प्रथम सोपान है। दुर्भाग्यवश समाज मे सिवाय जंयती और मेले के अतिरिक्त कुछ हुआ ही नही न ढंग से कुछ हो पा रहे है...... इस दिशा मे प्रग्यावानों को गंभीरता पूर्वक विचार विमर्श करना चाहिए ।

      इस फागुन पूर्णिमा को इच्छुक श्रद्धालू गण डुम्हा भंडारपुरी जाकर माता सहोद्रा की झांपी में यत्नपूर्वक रखे  सद्गुरु घासीदास की सोंटा चरण पादुका कंठीमाला एंव अंग वस्त्र का पावन दर्शन लाभ कर सकते है। 

गांव वालों सहित समस्त  संत महंत दीवान परिवार के साथ मेला लगाने की गुरुवंशजो की मार्गदर्शन लेकर  सार्थक पहल कर सकते है‌। सतनाम धर्म- संस्कृति में यह मेला अभिनव पहल होगा। इससे जनमानस का  नैतिक उत्थान सहित सर्वांगीण विकास के मार्ग प्रशस्त होन्गे।
        सतनाम 
डा अनिल भतपहरी

         चित्र - तपोभूमि गिरौदपुरी के मुख्यमंदिर औंरा धौरा वृछ के समीप तेंदूवृछ के तले हम तीनो भाई अनिल‌ सुनील सुशील

Friday, November 20, 2020

।।देवारी ।।

#anilbhatpahari 
लोक पर्व 

।।त्रिदिवसीय भव्यतम देवारी और उनका महत्व ।।

कृषि संस्कृति का यह महा पर्व "देवारी"   जिसे हिन्दी में  छत्तीसगढ़ की  दीवाली  " कहते  हैं। यह तीन दिन तक आयोजित होते हैं। शेष भारत से यहाँ की संस्कृति बिल्कुल अलग तरह की हैं। बल्कि सैंधव आर्य और द्रविड़ संस्कृति का समागम होने से यहाँ मिश्रित संस्कृति तो झलकती हैं। पर  "देवारी परब" में ओ यहाँ की मूल या ओरिजन संस्कृति है वह स्पष्ट नजर आते हैं। संक्षिप्त में देखे ती‌न दिन तक चलने वाली यह लोक पर्व कैसे सौख्य व सम भावना का पर्व है। 

१ .सुरहुत्ती  

   प्रथम दि‌न को  सुरहुत्ती कहते हैं।  सुर + आहुति = सुरहुत्ती बना है। इसका अर्थ हुआ देवताओं की आहुति यानि  देवताओं को आव्हान / निमंत्रण  इस दिन ग्राम में स्थित सभी ग्राम देव धामी जिनमें प्रमुखतः ठाकुर देव (बड़ादेव या महादेव भी  कहते  हैं।) महामाई, शीतला, ठेंघा देव , माचादेव, जराही ,बराही , भैसासुर ,  ध्रुआ देव (उत्ती), करियादेव (बुड़ती )  कोठार देव , गोठान देव मेड़ो देव, डीह- डोंगरदई , भंडार देव रक्सेल देव,में घरो घर दीप चढाते हैं। इस दिन नये चावल के आटे से फरा चुकिया बनाए जाते हैं। चुकिया में तेल बाती से दीया और मिट्टी का दीया यह दोनो दीया इन देव धामी में  चढ़ाते हैं। इस दिन रात्रि में अनेक जगहों पर कोठार देव में पशुधन की संरक्षण  ठाकुर देव में सफेद  मुर्गा या सफेद बकरा की बलि दिये जाते हैं।
आजकल बलि न देकर उसे चढाकर छोड़ देते हैं । मुर्गे को कोई खा जाता है। पर बकरा शान से गांव में घुमते रहते हैं। इसे "ठाकुर देव का बोकरा " कहते है।
           
(कोई वंश परिवार फरा- चुकिया  डेवठन के दिन चढाते हैं। इसके पीछे का कारण यह होगा कि उनके घर धान की कटाई पूर्ण  नही हुआ होगा। हमारे घर डेवठन को फरा चुकिया बनाकर चुकिया की दीया इन ग्राम देवता में चढाते हैं। तब तक कोई नये चावल की फरा चुकिया खाने वर्जित रहते हैं।)
२ देवारी 
दूसरा दिन  देवारी होते हैं  देवारू का अर्थ है  देव + ओरी = देवताओ का ओरी इस दिन सारे देव गण  हमारे पशु धन के साथ आते हैं। उन सबकी द्वाराचार कर अभिनंदन स्वागत करते हैं।   
 खास तौर पर कोठा देव के द्वार सजाते हैं। राउताइन मुख्य द्वार या कोठे की द्वार पर घी और रंग से सुन्दर " छापन " लगाकर सजाते हैं।  गोबर के आसन पर कलश स्थापित कर नादी से चारो दिशाओं के लिए चार बाती जलाते हैं। और सिलयारी चिड़चिडा व गेंदाफूल  खोसते हैं। आम पत्ता केला पत्ता से  आंगन और द्वार में तोरण सजाते हैं। 
     गृह स्वामी उपवास रहते हैं  और  रोठ पकाते है उसे गुड़ और घी मे शानकर कोठार देव में चढाते है। इधर महिलाएँ भी उपवास रहकर  विभिन्न व्यंजन अरिसा सोहारी  चीला खुरमी बड़ा आदि बनाती है और कोचई  जिमीकांदा मखना की  मिश्रित सब्जी बनाते हैं। उसे भात में सान कर पशुधन को  खिचड़ी खिलाते  हैं ।
      इसके बाद घरोघर परस्पर भोजन के आते जाते हैं। और शाम को साहड़ा देव में  "गोबरधन " खुंदाते है ।उस गोबरधन को बडे बुजुर्गों को तिलक लगाते उनके आशीष पाते हुए घर के  "माई कोठी "में थाप देते हैं। 
  
    मातर 
  

देवारी के दूसरा दिन मातर होते हैं। मतलब आज मातर हैं। मातर मात + अर = मा की आरती यानि मातृ पूजा ।
  इस दिन मातृका शक्ति खासकर भूमि और गाय / भैंस की विशेष पूजा होती है। गाय भू के प्रतीक भी हैं। गांव के गोठान पर मातर जगाए जाते हैं। जहां ऊची व समतल भूमि होते हैं। उसे साफ कर गोबर से लीपते और चावल आटे की सफेद चौक पुरकर मातृका पूजन कर  सफेद ध्वज (पालो ) की खाम गड़ाते है जिसे "दमदमा" कहते हैं।  
    फिर अनेक धरों से  देवी- देवताओं की धजा सजाकर मातृ देवी के दरबार में नाचते गाते परघा कर शौर्य पराक्रम दिखाते हुए स्थापित करते हैं। इसे ही  "मातर जगाना " कहते हैं। 
    भू देवी की प्रतीक दुधारु गाय और भैंसी की पूजा की जाती है।उसे सोह ई पहिनाते है । उनके सींग पर मखना तुमा फेकते है और कौतुहल खेल करते हैं। ऐसा कर इन दुधारु गाय भैस को भूदेवी समान महत्व देते हैं क्योंकि इनसे भी  लालन पोषण पालन. होते हैं उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं।

    इस दिन और पर्व को राउत समाज बड़े उत्साह से मनाते हैं। वे लोग सज -संवर  कर अखाड़ा  काछन और मातर  नृत्य करते हैं। पालो या  ध्वजा को मड़ई  भी कहते । महिलाएँ सज धज कर सुआ नृत्य करती है। पुरा गांव मातर की महोत्सव में मग्न हो जाते हैं।उपस्थित लोगों को दूध  ,मीठी दही ‌-मही पिलाए जाते हैं। 

    इस तरह सुरहुत्ती को देवताओं की आहुति  यानि आहुत कर आव्हान आमंत्रण होते हैं। दीप चढाते है  यह  सुरहुत्ती कहलाते हैं। दूसरे दिन देवाताओं की विशेष पूजा वार का दिन होते हैं। यही देवारी हैं। और तीसरा दिन मातृ शक्ति भूदेवी और पशुधन की श्रृंगार व पूजा होते हैं। यह मातर कहलाते हैं। 
     इस तरह भव्यतम व गरिमा मय वर्ष का सबसे बड़ा महापर्व देवारी का समापन हो जाता है। 
  इस दरम्यान  घरो की सफाई रंग रोगन ,नये वस्त्र, गहने, बर्तन  मिठाई ,व्यंजन ,खिलौने ,पटाखे आदि पर दिल खोलकर खर्च करते हैं। आर्थिक कारोबार का यह महापर्व है फलस्वरुप वणिक वर्गों द्वारा इसे लक्ष्मी पूजा कहे जाने लगे हैं।
       इन सबमें कुछ अति उत्साही जन  जुआ शराब मांस आदि  भी व्यवहार  करते   हैं। यह इस पर्व का स्याह पक्ष है पर इससे क्या ? 
स्याह और धवल यह जीवन का  दो अभिन्न पक्ष जो हैं। और इनसे जीवन संपूर्ण होते हैं।पर्व हमे स्याह पक्ष से परिष्कार कर धवल पक्ष को अर्जित करने का भाव बोध कराते हैं। 
       
      -डाॅ. अनिल कुमार भतपहरी / 9617777514 

    सत श्री ऊंजियार सदन अमलीडीह रायपुर (जुनवानी) छत्तीसगढ़

रामनामियों की दशा और दिशा

#anilbhatpahari
।।रामनामियों की दशा और दिशा  ।।
सतनाम संस्कृति के एक अंग रामनामी में  सतनाम‌ के स्थान पर हृदय मन में रमने वाले निर्गुण  रामनाम को सुमरने और धारण करने की प्रथा (गुरुघासीदास के पुत्र  गुरुबालकदास के शहादत 1860 के बाद )  1890 के आसपास  चल पड़ा । इसको दशरथ सुत  अयोध्या के राजा श्रीराम की भक्ति  समझ कर मूल्यांकन करने की अजीब परिपाटी विकसित हो गई है।
      और तो और  महज इसलिए श्रीराम को रोम -रोम में  बसा लेने की ऐतिहासिक साक्ष्य के रुप में इन रामनामियों को प्रस्तुत किए जा रहे हैं।जबकि इनके साथ  कथित रामभक्त सदैव दोयम दर्जे और भेदभाव करते रहे हैं। अब मौका है कि इन्हे केवल मुख्यधारा ही नही बल्कि रामाश्रय आधारित हिन्दूत्व में इन्हे  सर्वोपरि स्थान दें। क्योकि इस क्षेत्र में कोसिर नामक ग्राम है जिसे श्री राम के माता कौशल्या की मायका समझे जाते है।छत्तीसगढ़ में राम को भांजा मानकर उस रिश्ते को  पूजने की परंपरा है ,तथा कुछेक संस्थाएं एंव उनके प्रतिबद्ध  लेखकगण  इन्हे रामायण कालीन संस्कृति होने की बातें सिद्ध करने में लगे  हुए हैं। 
   बहरहाल यह  कौतुहल व अन्वेषण का विषय हो सकते है । पर उनकी दयनीय दशा और सामाजिक वर्जनाओं का दंश झेलते इनकी हालात पर भी दृष्टिपात होनी चाहिए  
     अन्यथा यह रामनामी प्रथा एकाद दशक बाद 2030-40 तक विलिन हो जाएन्गे।
         केवल 150 के आसपास बुजुर्ग बचे है , कुछ संस्थाए संरक्षण के नाम पर अनुदान या सहयोग देकर इनकी वार्षिक भजन मेला को प्रोत्साहन दे रहे है ।तथा इन्ही में से कुछ लोलुप वर्ग कपड़े मे रामनामी ओढ़कर धनार्जन व जीवकोपार्जन  करने की माध्यम बना लिए है।
     ऐसी जानकारियां समय समय पर उन लोगों से मिलती रहती हैं।
      विगत कुछ वर्षों से इन्हे अनु जाति वर्ग का जाति प्रमाण पत्र बनवाने में भी परेशानियां उठाने पड़ते है। फलस्वरुप शासकीय योजनाओं के लाभ से वंचित रहे ।तथा हिन्दूओ से दुराव और सतनामियों से भी अलगाव का दंश भी झेलते आ रहे थे।परन्तु 1984बसपा के अभ्युदय के बाद इनके युवा वर्गों में सतनाम संस्कृति और बौद्ध धर्म के प्रति रुझान जागृत हुए ।इस तरह देखे तो अब पहले से बेहद सजग और विकास की ओर अग्रसर यह रामनामी परिक्षेत्र है।

Thursday, November 19, 2020

संविधान पवित्र ग्रंथ हैं

।। डां. अंबेडकर कृत हमारा संविधान  ही पवित्र ग्रंथ हैं।।

     धर्म ,पंथ ,मत ,वाद और उनसे अभिप्रेरित राजनीति    से केवल हम किसी पर विचार लाद सकते है उन्हे बंधन में ला सकते है यहां तक उनके भौतिक सुविधाओ को बढा सकते हैं। परिक्षेत्र, राज्य व देश का  विकास भी कर सकते हैं। पर मानव को सुख और स्वतंत्रता नही दे सकते। 
        सुख और स्वतंत्रता  के लिए समानता पर आधारित  साहित्य  परिपक्व  ज्ञान -विज्ञान सम्मत  विचार  उन्नत दर्शन व कलाए चाहिए ।साथ ही  उनके प्रभावी क्रिन्यावयन भी। पश्चात्य जगत इन्हे अर्जित कर रहे है और भारतीय प्राचीन सांमती बर्बर व्यवस्था को ढोने इसलिए बाध्य किए जा रहे है कि वे हमारे विरासत है। संस्कृति और पुरातन प्रेम  के कारण इस तरह के विचार अग्राह्य हो जाते है।  आज भी हम जात- पात, मंदिर- मस्जिद ,पूजा -पाठ अराधना व इबादत आदि  से उबर नही सके हैं।  बल्कि यह धारणा बना रखे हैं कि इसी में सुख और कल्याण हैं। मानव  बरगद की लाह की तरह कुछ आधुनिक होते तो है पर एक ऊचाई पर पहुंच वापस जमीदोंज हो जाते हैं। बस बरगद को सजीव रखे है बिना किसी उपयोग के वह न इमारती लकड़ी है न औषधि न जलाऊ भी ।क्योकि हमने उसे पवित्र. मानकर केवल पुजनीय बना रखे हैं ।
मानव स्वतंत्रता और उनकी मान -सम्मान सहित कल्याण की कामना  संविधान में निहित हैं।
     दर असल  हमारा संविधान  वृहत्तर भाव को अपने में समाहित किए धर्मनिरपेक्ष है और मानव के हितार्थ ही सृजित हैं। अब तो यह बातें सुप्रिम कोर्ट के न्यायाधीश  तक कह रहे है कि संविधान सबसे पवित्र ग्रंथ हैं।

Wednesday, November 18, 2020

गुरुघासीदास जयंती शोभायात्रा

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गुरुघासीदास जयंती पूर्व शोभायात्रा 16 दिसंबर 1995 की  विज्ञापन ।

इसमें जो चित्र हैं वह गुरुघासीदास का आशीर्वाद ( अभय ) मुद्रा में मेरे द्वारा महाविद्यालय में अध्ययन के समय  पायलेट पेंन से भूगोल के  पेट्रिकल्स कापी के सफेद पेपर पर सन १९९० को बनाया चित्र है। जिसे फ्रेमित कर नीचे पांजीनाम मंत्र लिखा था। और कमरा नंं 7 जहां मै रहता था  में यत्नपूर्वक संजोकर रखा था। यह चित्र शोभायात्रा के पूर्व ही मेरे आलेख में समाचार पत्रों पर यदा कदा प्रकाशित होते रहा है।
           बहरहाल 25 वर्ष पूर्व गुरुघासीदास छात्रावास आमापारा के हम छात्रावासी छात्रों के साथ मान. नरसिंग मंडल जी के नेतृत्व में प्रारंभ किए गये शोभायात्रा  वर्तमान में जयंती पूर्व  एक विशिष्ट प्रथा के रुप में प्रचलन में आ चूका हैं। यह  स्वर्णिम व सुखद पल हैं। 
       ज्ञात हो कि छात्रावास के अस्तित्व में आते ही हमलोग १९९० से ही जयंती आयोजित करते और अमीनपारा छात्रावास आमापारा छात्रावास में संयुक्त आयोजन करते मान कन्हैयालाल कोसरिया पूर्व मंत्री और अधीक्षक रामाधार बंजारे जी के निर्देशन में उत्साह पूर्वक भाग लेते संगोष्ठी कराते उस कार्यक्रम का संचालन सौभाग्य वश मुझे करने का अवसर मिलता रहा है।
   हमलोग समाज के प्रबुद्ध  लोगों को आमंत्रित करते उनके संदेश व मोटिवेशनल व्याख्यान श्रवण करते जिसमें प्रमुखतः कन्हैयालाल कोसरिया पूर्व मंत्री रेशमलाल जांगडे पूर्व सांसद  , एड मनोहर लाल भतपहरी डा अम्बेडकर के सहयोगी प्रसिद्ध आर पी आई लीडर  , केयुर भूषण पूर्व सांसद,  रामाधार बंजारे अधीक्षक ,एम आर जोल्हे जज , महिलकर जी जज , प्रों मीना बंजारे , बी आर बंजारे  बैक अधिकारी , श्री एस डी भतपहरी प्राचार्य , नरसिंह मंडल  पूर्व अध्यक्ष म प्र राज परिवहन निगम , के पी खांडे डिप्टी कलेक्टर , श्री पी आर गहिने प्राचार्य बी एड कालेज , देवादास बंजारे  प्रसिद्ध पंथी नर्तक  राम प्रसाद कोसरिया , सुशील यदु , इत्यादि कवि गण अलग अलग वर्षों सम्मलित होते थे। आयोजन में तत्कालीन महापौर पार्षद आदि जनप्रतिनिधी भी आमंत्रित किए जाते रहे हैं।
       इस तरह एक दिन कार्यक्रम में ही  शोभायात्रा करने का विचार आया । और आगामी वर्ष वह प्रारंभ हुआ।
    शोभायात्रा की यह २५ वां वर्ष हैं। हम सभी सौभाग्यशाली है कि उक्त गरिमामय आयोजन के साक्षी व सूत्रधार रहे हैं। हमलोगों को  मान नरसिंह मंडल जी जैसे कुशल नेतृत्व कर्ता व मार्ग द्रष्टा मिला। उनकी पहल से राजधानी रायपुर में  अलग अलग जगहों पर निवासरत सतनामियों से संपर्क हुआ ।समाज प्रमुखो साटीदार भंडारियों एंव जन सामान्य को जोड़कर  सप्त ध्वज वाहक सहित भव्यतम पंथी अखाडा  झांकी जुलुश आतिशबाजी निकाले ।
           आज यह चित्र मेरे एफ बी वाल में उभरा तो हर्षित होकर हमारे सुधि पाठकों के जानकारी के लिए पुनश्च पोष्ट किया ....
     जय सतनाम 
-डाॅ. अनिल भतपहरी  / 9617777514

चित्र- १ विज्ञापन १९९५
         २ मूल चित्र 
          ३ गुरुघासीदास जयंती समारोह गुरुघासीदास छात्रावास आमापारा रायपुर  १९९२  जिसमें मान नरसिंह‌ मंडल जी की अध्यक्षता  में कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। इसी कार्यक्रम में शोभायात्रा का प्रस्ताव हुआ और इस तरह समाज में यह प्रचलन में आया।

Monday, November 16, 2020

देवारी

#anilbhatpahari 
लोक पर्व 

।।त्रिदिवसीय भव्यतम देवारी और उनका महत्व ।।

कृषि संस्कृति का यह महा पर्व "देवारी"   जिसे हिन्दी में  छत्तीसगढ़ की  दीवाली  " कहते  हैं। यह तीन दिन तक आयोजित होते हैं। शेष भारत से यहाँ की संस्कृति बिल्कुल अलग तरह की हैं। बल्कि सैंधव आर्य और द्रविड़ संस्कृति का समागम होने से यहाँ मिश्रित संस्कृति तो झलकती हैं। पर  "देवारी परब" में ओ यहाँ की मूल या ओरिजन संस्कृति है वह स्पष्ट नजर आते हैं। संक्षिप्त में देखे ती‌न दिन तक चलने वाली यह लोक पर्व कैसे सौख्य व सम भावना का पर्व है। 

१ .सुरहुत्ती  

   प्रथम दि‌न को  सुरहुत्ती कहते हैं।  सुर + आहुति = सुरहुत्ती बना है। इसका अर्थ हुआ देवताओं की आहुति यानि  देवताओं को आव्हान / निमंत्रण  इस दिन ग्राम में स्थित सभी ग्राम देव धामी जिनमें प्रमुखतः ठाकुर देव (बड़ादेव या महादेव भी  कहते  हैं।) महामाई, शीतला, ठेंघा देव , माचादेव, जराही ,बराही , भैसासुर ,  ध्रुआ देव (उत्ती), करियादेव (बुड़ती )  कोठार देव , गोठान देव मेड़ो देव, डीह- डोंगरदई , भंडार देव रक्सेल देव,में घरो घर दीप चढाते हैं। इस दिन नये चावल के आटे से फरा चुकिया बनाए जाते हैं। चुकिया में तेल बाती से दीया और मिट्टी का दीया यह दोनो दीया इन देव धामी में  चढ़ाते हैं। इस दिन रात्रि में अनेक जगहों पर कोठार देव में पशुधन की संरक्षण  ठाकुर देव में सफेद  मुर्गा या सफेद बकरा की बलि दिये जाते हैं।
आजकल बलि न देकर उसे चढाकर छोड़ देते हैं । मुर्गे को कोई खा जाता है। पर बकरा शान से गांव में घुमते रहते हैं। इसे "ठाकुर देव का बोकरा " कहते है।
           
(कोई वंश परिवार फरा- चुकिया  डेवठन के दिन चढाते हैं। इसके पीछे का कारण यह होगा कि उनके घर धान की कटाई पूर्ण  नही हुआ होगा। हमारे घर डेवठन को फरा चुकिया बनाकर चुकिया की दीया इन ग्राम देवता में चढाते हैं। तब तक कोई नये चावल की फरा चुकिया खाने वर्जित रहते हैं।)
२ देवारी 
दूसरा दिन  देवारी होते हैं  देवारू का अर्थ है  देव + ओरी = देवताओ का ओरी इस दिन सारे देव गण  हमारे पशु धन के साथ आते हैं। उन सबकी द्वाराचार कर अभिनंदन स्वागत करते हैं।   
 खास तौर पर कोठा देव के द्वार सजाते हैं। राउताइन मुख्य द्वार या कोठे की द्वार पर घी और रंग से सुन्दर " छापन " लगाकर सजाते हैं।  गोबर के आसन पर कलश स्थापित कर नादी से चारो दिशाओं के लिए चार बाती जलाते हैं। और सिलयारी चिड़चिडा व गेंदाफूल  खोसते हैं। आम पत्ता केला पत्ता से  आंगन और द्वार में तोरण सजाते हैं। 
     गृह स्वामी उपवास रहते हैं  और  रोठ पकाते है उसे गुड़ और घी मे शानकर कोठार देव में चढाते है। इधर महिलाएँ भी उपवास रहकर  विभिन्न व्यंजन अरिसा सोहारी  चीला खुरमी बड़ा आदि बनाती है और कोचई  जिमीकांदा मखना की  मिश्रित सब्जी बनाते हैं। उसे भात में सान कर पशुधन को  खिचड़ी खिलाते  हैं ।
      इसके बाद घरोघर परस्पर भोजन के आते जाते हैं। और शाम को साहड़ा देव में  "गोबरधन " खुंदाते है ।उस गोबरधन को बडे बुजुर्गों को तिलक लगाते उनके आशीष पाते हुए घर के  "माई कोठी "में थाप देते हैं। 
  
    मातर 
  

देवारी के दूसरा दिन मातर होते हैं। मतलब आज मातर हैं। मातर मात + अर = मा की आरती यानि मातृ पूजा ।
  इस दिन मातृका शक्ति खासकर भूमि और गाय / भैंस की विशेष पूजा होती है। गाय भू के प्रतीक भी हैं। गांव के गोठान पर मातर जगाए जाते हैं। जहां ऊची व समतल भूमि होते हैं। उसे साफ कर गोबर से लीपते और चावल आटे की सफेद चौक पुरकर मातृका पूजन कर  सफेद ध्वज (पालो ) की खाम गड़ाते है जिसे "दमदमा" कहते हैं।  
    फिर अनेक धरों से  देवी- देवताओं की धजा सजाकर मातृ देवी के दरबार में नाचते गाते परघा कर शौर्य पराक्रम दिखाते हुए स्थापित करते हैं। इसे ही  "मातर जगाना " कहते हैं। 
    भू देवी की प्रतीक दुधारु गाय और भैंसी की पूजा की जाती है।उसे सोह ई पहिनाते है । उनके सींग पर मखना तुमा फेकते है और कौतुहल खेल करते हैं। ऐसा कर इन दुधारु गाय भैस को भूदेवी समान महत्व देते हैं क्योंकि इनसे भी  लालन पोषण पालन. होते हैं उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं।

    इस दिन और पर्व को राउत समाज बड़े उत्साह से मनाते हैं। वे लोग सज -संवर  कर अखाड़ा  काछन और मातर  नृत्य करते हैं। पालो या  ध्वजा को मड़ई  भी कहते । महिलाएँ सज धज कर सुआ नृत्य करती है। पुरा गांव मातर की महोत्सव में मग्न हो जाते हैं।उपस्थित लोगों को दूध  ,मीठी दही ‌-मही पिलाए जाते हैं। 

    इस तरह सुरहुत्ती को देवताओं की आहुति  यानि आहुत कर आव्हान आमंत्रण होते हैं। दीप चढाते है  यह  सुरहुत्ती कहलाते हैं। दूसरे दिन देवाताओं की विशेष पूजा वार का दिन होते हैं। यही देवारी हैं। और तीसरा दिन मातृ शक्ति भूदेवी और पशुधन की श्रृंगार व पूजा होते हैं। यह मातर कहलाते हैं। 
     इस तरह भव्यतम व गरिमा मय वर्ष का सबसे बड़ा महापर्व देवारी का समापन हो जाता है। 
  इस दरम्यान  घरो की सफाई रंग रोगन ,नये वस्त्र, गहने, बर्तन  मिठाई ,व्यंजन ,खिलौने ,पटाखे आदि पर दिल खोलकर खर्च करते हैं। आर्थिक कारोबार का यह महापर्व है फलस्वरुप वणिक वर्गों द्वारा इसे लक्ष्मी पूजा कहे जाने लगे हैं।
       इन सबमें कुछ अति उत्साही जन  जुआ शराब मांस आदि  भी व्यवहार  करते   हैं। यह इस पर्व का स्याह पक्ष है पर इससे क्या ? 
स्याह और धवल यह जीवन का  दो अभिन्न पक्ष जो हैं। और इनसे जीवन संपूर्ण होते हैं।पर्व हमे स्याह पक्ष से परिष्कार कर धवल पक्ष को अर्जित करने का भाव बोध कराते हैं। 
       
      -डाॅ. अनिल कुमार भतपहरी / 9617777514 

    सत श्री ऊंजियार सदन अमलीडीह रायपुर (जुनवानी) छत्तीसगढ़

Friday, November 13, 2020

पंथी गीत का हिन्दी अंग्रेज़ी अनुवाद

छत्तीसगढ़ी  क्लासिक गीत/ कविता की श्रेणी में रामनाथ साहू जी प्राचीन और आधुनिक रचनाकारों की रचनाओं को हिन्दी और अंग्रेजी में शब्दा/ भावानुवाद कर रहे हैं। 
इस अनुक्रम में  आज हमारी 30-32 वर्ष पूर्व  लिखी बहुचर्चित / बहुप्रसारित पंथी गीत- "तोला नेवता हे आबे गुरु घासीदास" जो कि सतनाम संकीर्तन  केसेट २००२  दूरदर्शन २०१०-११  एंव अनेक लोक मंच में  अनेक गायकों द्वारा प्रस्तुति दी जाती  रही है। उसी गीत का रामनाथ साहू जी द्वारा किए गये भावानुवाद द्रष्टव्य हैं-

     तोला नेवता हे आबे गुरुघासीदास 

-

*मंगल पंथी गीत*
-------------------
*डॉ.अनिल भतपहरी*

-
साखी-
सत  फूल धरती फूलय, 
सुरुज फूलय  अगास ।
कंवल फूल मन सागर फूले,
जिहाँ खेले गुरु घासीदास ।।

तोला नेवता हे आबे गुरु घासीदास
हमर       गांव     म         मंगल हे
आबे        आबे       गुरु घासीदास
जुनवानी       गांव    मं    जयंती हे...

करिया करिया बादर छाए हवय
घपटे            हे         अंधियार
मनखे ल मनखे       मानय नही
घोर                       अत्याचार।
बगरादे बबा सत के परकास...

दुनों आंखी    हवय फेर 
होगे         मनखे अंधरा
मोह माया मं मगन होके
पूजय       लोहा पथरा
सिरजादे मनखे मन के हिरदे मं धाम...

आगी लगगे चारो    मुड़ा मं
जरगे                 ये संसार
आके अमरित चुहा दे बाबा
कर दे               ग  उद्धार
विनय करत हवन हमन बारंबार ...

***

***
 *मंगल पंथी गीत*
- *डॉ.अनिल भतपहरी*

-
साखी-

सत्य कुसुम से कुसुमित अवनि
सूर्य प्रफुल्लित   इस अम्बर पर
कमल मुकुलित  हुए वारिधि में
क्रीडारत    जहाँ  गुरुघासीदास ।।

तुझे निमंत्रण तुझे      आमंत्रण
आना मेरे ग्राम    गुरु घासीदास
मंगल है              हमारे ग्राम में
बाबा      जुनवानी जरूर आना
हमारे           गांव   में जयंती है...

काले -काले    बादल       छाये   
घनघोर    तिमिर    आच्छादित
मनुष्य   मनुष्य का सत्कार नही
करता, करता भर वहअत्याचार
बाबा    ऐसे में     तुम्हें करना है 
सत्य   का      आलोक प्रसारित...

चक्षु युगल     रखता     मानव पर
अन्तश्चक्षु                 विहीन वह
माया महाठगिनी के     वश होकर
पूजने चला लौह प्रस्तर खण्ड सब
बाबा      ऐसे    तुम्हे   सिरजना है
मनुष्यों के   हृदय में  तुम्हारा धाम...

दिग दिगंत          व्यापे वैश्वानर
जगती यह    जलकर खाक हुई 
नवप्राण फूंकने तुम्हे आना     है
करना    है     सबका      उद्धार
बाबा तुम्हे  तो यह  करना ही है
यही     विनती        है बारम्बार...

***

 ***

*The Mangal panthi Carol*
------------------------------------------

Sakhi-

The truth is blessed on this Good Earth . The sun rises like a big blooming flower in the sky. The lotus bloom in the mighty sea. All these are the good play area of Guru Ghasidas.

O my great guru ! You are cordially invited to my town. The big gala -The Mangal is upcoming soon.
Junvani -My town is hosting the jubilee celebration.

The dense clouds accumulated well covering even the last ray of light. Man doesn't respect the man, he commits only a gross torture.
Baba you have to shine the sun of the  holy truth...!

Man haves both the eyes, but he is the ultimate blind.
Only allured by the illusions and fantasy. Always busy worshiping the false things.
Baba, please build your holy abode in the heart of such misers.

The whole world is under fire
All got turned to ash.
Please come here and serve the nectar ! You are our truly saviour.
This is what I am craving for.

*Dr. Anil Bhatpahari*

***

धन्यवाद साहू जी

Sunday, November 8, 2020

सुरता लक्ष्मण मस्तुरिया

#anilbtapahari

आज लक्ष्मण मस्तुरिया के पुण्य तिथि में -

सुरता - 

"लक्ष्मण  मस्तुरिया के संग "

        छत्तीसगढ़ी साहित्य/ गीत के स्वनाम धन्य सिरजन हार मधुर कंठ के धनि गायक भैया लक्ष्मण मस्तुरिया जी के सानिध्य लाभ हम ला  पढ़त घानी से  मिलत आत रहिन । ओ मन बड़ धीर- गंभीर, अल्प अउ मृदुभाषी रहिन ।

    मोला सुरता आत हे जब उनकर सो पहली मिलन भेटन होइस सन १९९०-९१ (फरफेक्ट सन तिथि के सुरता आत निये ) मं जब गुरुघासीदास छात्रावास आमापारा (१९८८-९३ )मं रहिके पढत रहेंव। मंत्री कन्हैयालाल कोसरिया जी के  सुपुत्र कवि और शिक्षक  रामप्रसाद  कोसरिया जी सुशील यदु के संग संझौती मोला खोजत छात्रावास मं आइस। अउ एक संगोष्ठी म आय बर नेवतिन अउ अपन समिति के कार्यकारिणी मं जोड़िन । ओ समे मय छिटपुट छपे धर ले रहेंव। दस रुपया चंदा तको देव अउ उनमन रसीद देइन ।ओला भी बहुत दिन तक जतनाय रखे रहेव हो सकथे कोनो किताब या डायरी घरखन रखाय होही।
ओ कार्यक्रम मं बडे -बडे मुड़का  जेन मं हरिठाकुर ,केयुर भूषण, लक्षमण मस्तुरिया ,रामेश्वर शर्मा , चेतन भारती, निकुम जी, शाद भंडारवी ,जागेश्वर प्रसाद सरिख छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी   आन्दोलन के सुत्रधार मन सकलाय रहिन ...लक्ष्मण मस्तुरिया जी के  बड़ सुघ्घर गीत सुन अउ दरस पाके मन कुलकत बड़  अछाहित होगे... जेन ल सुन के बाढे रहेन अउ जेकर गीत के प्रशंसक बाबु जी रहिन ओकर कुछ प्रसिद्ध  गीत के तर्ज के पेरोडी म उन मनभावन गीत लिखय यानि की मय पिता जी से एम्प्रेस रहेंव अउ पिता जी लक्ष्मन मस्तुरिया जी से ... उन ल साक्षात् देखेंव ... एक घाव यकीन तको न ई होत रहिन ... सच कहिबे त ओकर गीत अउ ओकर स्वर बचपन से मन मं रचे- बसे रहिन ... थोर- थीर मय हारमोनियम अउ बाबु जी  बासुरी में ओकर अउ केदार यादव के  गीत के धुन ल कभु कभु सौकिया गावन - फिटिक अंजोरी या तुक के मारे रे नैना बजावन तको घर मं  तीर तखार के मन सुने बर जुरिया तको जय।
 खैर मय डरावत लजावत अपन आरती नुमा  जय छत्तीसगढ़ गीत  पढे़व अउ सियनहा मन के असीम मया दुलार पाएंव। तंहा ले छप ई संग गोष्ठी मं अवई -जवई सुरु होगे!.छत्तीसगढी सेवक के अखंड धरना वर्तमान गुरुघासीदास नगर घड़ी चौक तीर चलय ओमा तको संघरन ।
     रायपुर मं मय  १९९४ तक रहेंव ये समे छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के जुराव मं, कवि गोष्ठी मं, संघरव सहपाठी चंद्रशेखर वर्मा चकोर  दुनो आवन -जावन अउ सुशील भोले जी तको संग साथ में रहय ...!
               जब भैया जी समवेत शिखर के छत्तीसगढ़ी कालम लोक सुधा के संपादन करत रहिन राजकुमार कालेज तीर  त मोर एक गीत "मन के दीया ल बार" छापिन ।मय विवेकानन्द आश्रम के वाचनालय मं छपे देखेंव ..त मन बड़ बिधुन हो गय ... बने चारों खुंट दीया के डिजाइन देके प्रमुखता से ओ गीत ल छापे रहिन ... मय तुरते प्रेस गयेंव । भैया जी उहचे बैठे देख अपन परिचय देवत कहे प्रणाम आदरणीय मै ... जानथंव भाई तोर अउ रचना मन ल छापे हन ... आज तोर मन के दीया बार छपे हे   ब इठ । उनमन आदर से बिठाइस अउ पेपर मंगा के देइस । आज ले ओ पेपर बिना कटिंग किए जतनाय रखाय हवे ... थोरिक रचना कर्म छत्तीसगढ़ी गीत साहित्य पढ ई- लिख ई के बात होईस। संगे संग  छत्तीसगढ़ी पन अउ शोषण अउ अलग राज खातिर लेख लिखव  कहिन ओ समे जादा लेखन न इ चलत रहिन ...
  ओकर अउ जागेश्वर जी  से प्रेरित होके "अलग राज भाव भूमि अउ भाखा" १९९३ में लिखेंव जोन दो तीन पत्र पत्रिका मं छपिस ।ओ लेख सेती छत्तीसगढ़ी साधक  गुणी जन के असीस पाए रहेंव, ओ लेख में अकारे कि सन २००० मं अलग राज बन जाही । ... (एक दु अभिन्न मित्र मन जोन लेख पढे अउ सुरता राखे रहिस बधाई देवत कहि‌ "बज्र भटरी अकार ये भाई, सच होगे।")
     
मय प्रणाम करके कोनो देव धामी सो मिले कस उछाहित छात्रावास आगेंव ।  साथी मन ल बताएव तो ओ मन खुश होगे ... परतीत करे न इ धरत रहिस ... काबर लक्ष्मण  मस्तुरिया जी  ह हमन के जेहन मं  स्टार दर्जा बना डरे रहिस ... सिरतोन उन आपार लोकप्रिय रहिस अउ अभी भी हवय ।
        पेट बिकाली नौकरी म पेंड्रारोड पलारी बलौदाबाजार  किंजरत रायपुर मय २०१३ मं आएव। कुछ महिना बाद  धीरे -धीरे फेर साहित्यिक सभा सुसाटी मं आए गये घर लेंव।.  सुशील भोले जी ह  खुबचंद जयंती म नेवतिन ,त मय उछाहित गयेव ।उहा भैया जी मुख्य अतिथि रहिन आदरणीय शंकुनतला तरार जी के अध्यक्ष ता रहिन अउ कोंटा कांटा म ब इठ के सुन इया अनिल बपुरा ल नेवताय पहुना के न इ हबरे ले औचक विशिष्ट अतिथि  बना देगिस ...  मय अकस्मात मिले ये सम्मान से अकचका गेंव ..भैया जी समनान्तर बैठे के सौभाग्य मिलिस.. ..तहां  फेर सुरु होइस मघुर गीत कविता के दौर... मस्तुरिया जी ल  कतको सुन ले मन न इ अघाय ...
   उनमन अपन नवा किताब सांवरी मोला सप्रेम भेंट करिन।

  अइसे लगिस कि आज देवता के परसाद मिलगे !  बरसत पानी अउ ओकर मया दुलार के छिंटा म भिंजत अपन कुरिया रतिहा  लहुटेंव ।
    लक्ष्मण भैया जी के  अंतिम दरस नइ हो सकिन काबर कि जरुरी मिंटीग मंत्रालय म रहिन ... कभु -कभु कर्तव्य हर येकरे सेती मया दुलार ल भारी पर जथे !ओकर जग मं सघरेंव अउ दूधाधारी मठ के सत्संग भवन म सादर श्रद्धांजलि दे के आएंव ओकर गीत ल हारमोनियम के लहरा देव बिकट बेर तक गाते रहेंव ... ओ सच में कहे त हमन के अंतस मं बसे हय ओ कहु गे नइये ।
    यही अमरत्व भाव आय जेकर पात्र बिरले ह होथे।
       भैया जी सादर नमन 
विनम्र श्रद्धांजलि ...

-डाॅ. अनिल भतपहरी

पुरौनी -

    लक्ष्मण मस्तुरिया  के  व्यक्तित्व के अनेक आयाम रहिन उन मन बाजा रुजी गीत भजन म ही नही भलुक अकादमिक काम करे बर तको उमिहाय रहिन  अउ शोधार्थी बन के काम सुरु तको करे रहिस होही बात  
 १९९३ के आय मय अपन   पीएचडी करे बर डॉ देव कुमार जैन से मिलेव संग म चित्तरंजन कर सर तको बैठे रहिन .. . जवाहर मार्केट के कैमरा कार्नर म त उन कहिन गोष्ठी संगोष्ठी और छपने -सपने वाले लोग पीएचडी करने में सुस्त रहते हो जी ... देखो लक्ष्मण मस्तुरिया करुंगा कहे और अभी तक टापिक व  सिनाप्सीस का अता पता नहीं ! कही आपका भी ऐसा हाल न हो जाय ।
  कर सर मोला गुरु भाई कहिके आत्मीय संबोधित करिन ...जबकि उनमन मोर श्रद्धेय गुरुवर आय। मोर विषय -"  निर्गुण संत साहित्य में गुरुघासीदास के योगदान "  रहिस अउ मय ये बुता म लगे रहेंव ‌

    इही वर्तालाप मं पता चलिन मस्तुरिया जी भी पीएचडी करत हे ... एक बार ओकर से भेंट होइस त कहेव क इसे भैया  जैन सर ह सोरियात रहिस ... मोर संग रहे इंजी उमाशंकर धृतलहरे कहिस -"मस्तुरिया जी ऊपर लोगन पीएचडी करही " 
   मय कहे तोर मुंह मं घी शक्कर भाई ... मस्तुरिया जी .. बेफिकर अउ थोरिक हुर्रियात कहिस - अरे का का कहत हव भ इया ये ऊमर म अब कहा के... अउ कलेचुप होगे भीतरे भीतर हंसत  बानी कहे कहिस .. मसानबाडा ल बने लिखे अनिल छप गे हवे ले जा हमन लोकसुधा के अंक धर के  अउ प्रणाम करके लहुट गेयन ।

-डॉ. अनिल भतपहरी

Wednesday, November 4, 2020

सुरता डाॅ नरेन्द्र देव वर्मा

#anilbtapahari
 सुरता 
          मोला गुरु बनई लेते / सुबह की तलाश 

        डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा

बड़ अजब संजोग हो जथे या जेहन मं रहे, बात हर कब क इसे उपला जथे? कहे नी जा सकय !
     बात  कोसरंगी हाई स्कूल में पढ़त घानी ८४-८५  के  आसपास कर आय २६ जनवरी के उपलक्ष्य मं दो दिन स्कूल मं उत्सव होवय बाबु जी के नवरंग नाट्यकला के बैनर मं हमन आनी -बानी के नाटक खेलन ...   मोला गुरु बनई लेते नाटक मं चेला के रोल करत रहेंव। बाद में गुरु ल कहिथंव चेला बनाय बर तोला उसरय नहीं अउ बड़ कठिन काम ये त मोला गुरु बना लेते ... ओला अइसे कहना रहिस कि पब्लिक ल हांसी आना रहिस १० वीं  पढ़त लयकुशहा म ओ फिलिंग आत न ई रहिस ... बाबु जी हर एक्टिंग के संगे संग डायलाग बोले तरिका अउ ऐसे शब्द ल उच्चारित करय कि रिहर्सल मं जतका रहेन अउ जगुरुजी  मन ब इठे सुनय त हर बेर  कठ्ठल  जय । गणित वाला  गुप्ता सर डरावन काबर ओला कभु हांसत न इ देखे रहेन ... ओ रिहर्सल देखे आय रहिस  भारी जुवर ले सुरता कर के हांसय । नाटक तो ज इसे त इसे खेलेन फेर ओकर डर सिरागय। अउ बाबु जी जोन सबकुछ ल इका मन संग मिलके लइका होके सिखावय तभो ले  ओकर डर हर बाढ़गे ।
    भारी अनुशासन प्रिय अउ सम्मानीय  प्रचार्य /शिक्षक रहिन । विद्यार्थी शिक्षक अउ गांव के पंच सरपंच सबो मान देवय ।
      १९८७ में  दुर्गा महाविद्यालय रायपुर में पढ़त, श्री राम पुस्तक प्रतिष्ठान सत्ती बाजार ले कापी अउ आधा कीमत में सेकेन्ड हेंड किताब लेवन । ओकर संचालक सियनहा बबा संग बनेच घुलमिल गे रहेन । साहित्य के प्रति अनुराग अउ कालेज मे हिन्दी साहित्य पढथे जान के  एक दिन बता- चिता मं बताइस कि छत्तीसगढ़ कालेज में ओकर सुपुत्र डाॅ नरेन्द्र देव वर्मा हिन्दी के प्रोफेसर रहिन ... ओकर लिखे  उपन्यास "सुबह की तलाश " के एक प्रति देवत कहिस येला आधा कीमत म लेजा पढबे । मय ओ  किताब ल पढेव त पढिते रहिंगेंव ... रायपुर के मुरमी भाठा खारुन नंदिया  अउ सरोना तरिया के महादेव  के बड़ सुघ्घर वर्णन... हमन ओती इतवार के किंदरे जान किताब मं वर्णित दृश्य डग डग ले दिखय ... पहली बेर किताब मं अपन आसपास संउहात बरबन पढ़के मन अघा गय ... सोचेव असनेच महु लिखहू। "कब होही बिहान"  जइसे शब्द   घेरी बेरी मन मथय ... बाद मं मोर ए शीर्षक के किताब छपिस ... आदरणीय केयुर भूषण हर ये शीर्षक के उछाहित होके अपन मन के सम्मति लिखिस अउ आद रामेश्वर वैष्णव जी ह वैभव प्रकाशन मं सुधीर भैया संग बैठ के फरमाइश करके दो चार कविता सस्वर सुनिस अउ शबासी दिस ... कब होही बिहान में लगथे "सुबह की तलाश"  की  ध्वनि अनुगुंजित हो रहे हो।
 ओ संग्रह ल बहुत सेहराय गिस ३-४ जगा समीक्षा छपिस सुधा दीदी ह "मन में गुथाय मोती कस गीत " कहिके साहित्याकाश में  कहां से कहां पहुंचा दिस अइसे मोला लगे धरिस ... मय बड़ भागमानी हव ये सेहरौनिक ज्ञानी गुणी मन सो मिलिस हिरदय से आभार ...ले देख बात कहां ले कहां फलंगे ...
     मय धनीराम बबा जी कना जाके कहेव सुबह की तलाश  बहुत सुन्दर उपन्यास हे त ओ बताइस ओहर बढिया नाटक तको लिखय बहुचर्चित नाटक "मोला गुरु बनई लेते "  नाम सुने है ?
   मय दंग रहिगेंव ... सच कहे त ये नाटक के चेला पात्र मय  बचपन में स्कूली जीवन में करे रहेव फेर हमन ओकर रचयिता ल जानत न इ रहेन न जाने के कोशिश करे रहेन ।  अरपा पैरी गीत के रचनाकार भी हरय ... अब तो ओकर स्मारिका निकले रहिस जेमा डॉ नरेन्द्र देव वर्मा के जीवन वृत्त अउ रचना कर्म ल संजोय रहिस ... श्री राम पुस्तकालय से ही पढे के मौका मिलिस अउ बहुत कुछ जानबा होईस।
     मोला गुरु ब नइ लेते ल पिता जी हर अइसे टच दे रहिस कि बिल्कुल गम्मत लगय  अउ अपन डहन ले तको संवाद जोड़ लेत रहेन  ज इसे  बिस अमृत, परीक्षा बुद्धुराम जइसे पारंपरिक प्रहसन मन मे   करन।
    
(बडे नाटक म चांदी के पहाड़, एक मुठा माटी के असर इया  , संगत राह के फूल जइसे बाबु के लिखे नाटक अउ चरनदास चोर के मंचन करन  जेमा ५-६ गीत रहय । हमर नवरंग नाट्यकला  मंच हर दरभंगा बिहार के  पैटर्न या प्रेरित १९७५- १९९३ तक चलिस अउ अबड़ मजा करेन । )
      त डाॅ नरेन्द्र वर्मा के अबड सुरता करय धनीराम बबा हर ओकर एक बेटा विवेकानन्द  आश्रम में रहय स्वामी आत्मानंद जेकर दरस अउ कभु कभु दुआ सलाम हो जय काबर हमन पेपर पत्रिका पढे अक्सर आश्रम जावन ... एक दू बेर  मंदिर में रामकृष्ण के प्रतीमा के आधु बुद्ध पुरुष समझ ध्यान तको करे के परयास करन ... खासकर मंदिर गुलाब जल अउ संगमरमर के ठंडाई तरपौरी में ले ये के सौक से जावन .. त स्वामी जी के दरस हो जय।
            सुबह की तलाश मोला गुरु बनइ लेते  अउ राज गीत अरपा पैरी के धार सब क्लासिक रचना होगे हवय।
   उकर छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य के इतिहास अउ काल विभाजन जैसे अद्वितीय कार्य हर  रामचंद्र शुक्ल के " हिन्दी साहित्य का  इतिहास "  के बरोबर हवय ।
         अइसे स्वनाम धन्य वर्मा जी हर कम समय में भारतेन्दु सरीख हमर छत्तीसगढ़ी साहित्य ल समरिद्ध करिन ओकर  सेती उन सदैव ज्वाजल्यमान नक्षत्र सरीख छत्तीसगढ़ी साहित्याकाश मं जगमगात रही हमन सही पथिक मन ल दिशा बोध करात रही।
आज जयंती मं उन ल परनाम हे ।
      जय छत्तीसगढ़ 

डाॅ. अनिल भतपहरी / 9617777514

Monday, November 2, 2020

वाड्गमय

" वांग्मय"
   
वेद उपनिषद 
पुराणादि  
मानव मेधा की 
अनुपम ऊपज  है
स्मृति योग मीमांसाएं  
विविध विचारों से संवृत 
भारतीय वांग्मय है
 राज्य विस्तार की
रोचक  दास्तान 
है वाल्मिकी कृत
रामायण 
जहां प्रजातियों का
समागम और संधर्ष है 
मनभावन 
मन की अन्तर्द्वंद्व का
शानदार विचार- विमर्श है 
एक्शन इमोशन थ्रीलर 
रहस्य रोमांच का दास्तान 
महाभारत व्यास मंडल 
रचयिताओं का 
है अनोखा वृतान्त 
"अत्तदीपोभव" की 
महिमा त्रिपिटक गाती है
बीजक की साखी तो 
ज्ञान की आँखी है 
संत-गुरु की वाणी ही
असल  मानव का धन है 
गुरुग्रंथ साहिब निर्वाणग्रंथ
और सतनमायन है 
विषैले मानस सागर में 
चुहते ये अमृत बुन्द है 
उद्गाता /श्रोता के लिए 
 विविध रत्न भरे समुन्द है

  ।‌।सत श्री सतनाम ।।

-डा. अनिल भतपहरी
 9617777514

चित्र- ऊंजियार सदन के आंगन में सजी  रंगोली

Friday, October 30, 2020

सतनाम महामंत्र

हंसा अकेला सतनाम- संकीर्तन में  

सतनाम-महामंत्र 

जो नर सुमरै नित सतनाम  
           जीयत पावै पद निरवान 
 जन्म धरै तो करो कर्म अच्छा 
      दु:ख न  पीरा हो जीवन सच्चा
खान-पान बेवहार हो पबरित
    अन खावै जल पीयय अमरित 
हिरदे सफ्फा मन रहे निश्चछल 
    तबहि पावै सुख सुन्दर सुफल 
सद्कर्म देव हिरदे मन धाम
        हिरदे भीतर बसै सतनाम
मान सम्मान सदा अजर-अमर 
       वंश विस्तार हो सेत -हरियर  
हंसा अकेला उड़ै सतलोक
    बहुरि न आवै कबहु मृतलोक 
जो नर सुमरै नित सतनाम 
     जीयत पावै पद निरवान ...

               - डां.अनिल भतपहरी

टीप - सतलोकी पिताश्री सुकालदास कृत पुनर्प्रकाशित सतनाम- संकीर्तन में संकलित स्वरचित  सतनाम महामंत्र जिसे नित्य आरती व  गुरुवंदना  में प्रस्तुत करते है।

Monday, October 26, 2020

कंठी तो फांसी भये ...

कंठी तो फांसी भये ,तिलक  भये  तलवार ।
  सतनाम महुरा भये ,जोत पीये चतुर सुजान‌।।

सतनाम पंथ में बहुप्रचलित  यह साखी उलट बांसी  हैं ।इनके अपने विशिष्ट अर्थ हैं। समय- समय पर साधक साधु संत व आचार्य गण इस संदर्भ में गहन मनन- चिंतन करते ही रहते हैं। सच कहे तो साधारण सा दिखने वाला कंठी तिलक कैसे फांसी और तलवार हो जाएगा और अमृतयमय सतनाम महुरा कैसे हो जाएगा ?यह गुढ़तम बातें उक्त उलटबांसी में अन्तर्ध्वनित हैं।
  सामान्यत:  गुरुमुखी जन साधारण  कनफुक्का गुरु से कान फूकाकर कंठी धारण करना और माथे पर चंदन तिलक लगाना  और नित्य सतनाम जपना इन लोगों के लिए  क्रमश: फांसी तलवार और महुरा यानि जहर की तरह हो जाते  है। सहजतापूर्वक मिथ्या व आडंबर से भरा संसार जीवन निर्वहन कठिन हो जाते हैं। इसलिए ऐसा कथ्य या मंतव्य चल पड़ा हैं।
   आधी -अधुरी जानकारियाँ और प्रतीकों के बिना सही उद्देश्य  जाने समझे  बगैर धारण करना मुस्किल ही नहीं संकट जन्य होते  हैं। 
यह संत और साधु वेष का प्रतीक हैं। इसे जल्दबाजी में या फैशन में  धारण कर लेने से  धारक के लिए फांसी तलवार व जहर की तरह कष्टदायक और हंसी के पात्र बन जाते हैं। जैसे लालची आमिष आहारी देखादेखी जोश में आकर सात्विक होने कंठी पहन लिए तो आमिष चीजों को देख ललचते रहेगा और पावन कंठी को फांसी समझ लेगा। तिलक उनके लिए तलवार सदृश्य हो जाएन्गे । इसी तरह झुठ फरेब से काम लेना वाला सत्यनिष्ठ होने की ढोंग करते ऊपर से ही  सतनाम सतनाम जपेगा उनके लिए वह विष की तरह हो जाएगा।
 
   चतुर सुजान तो वह है जो कंठी की फांसी (जैसे कि जन मानस कहते है ) तिलक की तलवार और सतनाम जो अमृत है (जन साधारण सच बोलके मरोगे क्या? कह) को  जहर कह लेते हैं, इसे बड़ी श्रद्धा व सहजता से धारण कर इनके जोत अर्थात् चमक/ तेज को पीकर बडे ही तेजस्वी हो जाते हैं।
जबकि कच्चे और अति साधरण लोग जल्दबाजी देखादेखी  या फैशन में पड़कर कठिनाई में फस जाते है ।उनके लिए कंठी , फांसी  तिलक तलवार,और सतनाम जो अमृत है वह जहर बन  जाते हैं।
     साधना और आचरण गत व्यवहार करके पहले काबिल बनना चाहिए ।संत वृत्ति व समदर्शी भाव जागृत होना चाहिए  तब इन प्रतीकों को धारण करे तभी इनकी महत्ता है । अन्यथा नादान और ना समझ के लिए यह क्रमशः फांसी तलवार और जहर ही है। इसलिए वे इनसे दूर रहते और भागते है।  
   यही इस उलटबासी साखी का असल भावार्थ हैं। 
     सतनाम
                     -डाॅ. अनिल भतपहरी

कंठी तो फांसी

कंठी तो फांसी भये ,तिलक  भये  तलवार ।
  सतनाम महुरा भये ,जोत पीये चतुर सुजान‌।।

सतनाम पंथ में बहुप्रचलित  साखी उलट बांसी  हैं इनके अपने विशिष्ट अर्थ हैं। 
  गुरु से कान फूकाकर कंठी धारण करना और माथे पर चंदन तिलक लगाना  और नित्य सतनाम जपना साधारण लोगों के लिए  क्रमश: फांसी तलवार और महुरा यानि जहर की तरह हो जाते  है। 
   आधी -अधुरी जानकारियाँ और प्रतीकों के बिना सही उद्देश्य  जाने समझे  बगैर धारण करना मुस्किल ही नहीं संकट जन्य होते  हैं। 
यह संत और साधु वेष का प्रतीक हैं। इसे जल्दबाजी में या फैशन में  धारण कर लेने से  धारक के लिए फांसी तलवार व जहर की तरह कष्टदायक और हंसी के पात्र बन जाते हैं। 
   चतुर सुजान तो वह है जो कंठी की फांसी (जैसे कि जन मानस कहते है ) तिलक की तलवार और सतनाम जो अमृत है (जन साधारण सच बोलके मरोगे क्या? कह) को  जहर कह लेते हैं, इसे बड़ी श्रद्धा व सहजता से धारण कर इनके जोत अर्थात् चमक/ तेज को पीकर बडे ही तेजस्वी हो जाते हैं।
जबकि कच्चे और अति साधरण लोग जल्दबाजी देखादेखी  या फैशन में पड़कर कठिनाई में फस जाते है ।उनके लिए कंठी , फांसी  तिलक तलवार,और सतनाम जो अमृत है  जहर बन  जाते हैं।
     साधना और आचरण गत व्यवहार करके पहले काबिल बनना चाहिए ।संत वृत्ति व समदर्शी भाव जागृत होना चाहिए  तब इन प्रतीकों को धारण करे तो महत्ता है । अन्यथा नादान और ना समझ के लिए यह क्रमशः फांसी तलवार और जहर ही है। इसलिए वे इनसे दूर रहते और भागते है।  
   यही इस उलटबासी साखी का असल भावार्थ हैं। 
     सतनाम
                     -डाॅ. अनिल भतपहरी

Saturday, October 24, 2020

तुरतुरिया

"बौद्ध तुरि साधना स्थली तुरतुरियां "

आध्यात्मिक साधना एंव योग सिद्धी मे" तुरि" अवस्था को अर्जित करने सुरम्य व एकांत वन प्रांतर अत्यंत उपयुक्त स्थल माने गये है। 
      इसलिए मध्य भारत में बौद्धमहानगरी सिरपुर के समीप तुरतुरिया नामक जगह में बौद्ध साधक तुरि साधना में लीन रहा करते थे। इसके कारण ही तुरतुरिया नाम पड़ा। 
 लोक मान्यता में  कलकल करती निर्झरणी भी प्रवाहित है जो तुर तुर की ध्वनि करती है इसलिए  तुरतुरिया कहते है। शाक्त मत में इन भिछुणियों की प्रतिमाओं को  देवी मानकर पूजने लगे है और मातागढ़ एक शक्तिपीठ के रुप में ख्यातिनाम है। वाल्मिकी आश्रम व लवकुश जन्म स्थल के नाम पर चर्चित पौष पूर्णिमा में यहां भव्य मेला लगता है।  
   बाहरहाल  यह सुखद संजोग है कि सतनाम धर्म संस्कृति में भी साधना और समाधि की संस्कृति प्रचलन में अब भी है।
एक  सतनाम साखी जो पंथी  मंगलभजन के पूर्व गाए जाते है  और वे छत्तीसगढ़ी में है उनमें ध्यान की इस तुरि अवस्था का जिक्र है - 
 लछ्य कोस म  गुरु बसे, सुरता दिहव पठाय।
  ग्यान तुरि असवार है,  छिन आवय पल जाय ।। 
                 विद्जन भावार्थ ग्रहण करे एंव सतनाम पंथ और बौद्ध धम्म में सहजयान की साधना पद्धति की साम्यता को समझे और आत्मसात करे।
 गिरौदपुरी  तुरतुरिया व सिरपुर एक ही परिछेत्र में महज २५-३० कि मी दायरे मे अवस्थित है ।
                    ।‌।सतनाम ।।
 चित्र - तुरतुरिया में स्थित बुद्ध व भिछुणियों की प्रतिमाएं जो यत्र तत्र बिखरे है में से कुछ  झोपड़ियों में शोभायमान‌ है।

Friday, October 16, 2020

जस गीत

मोर घर के अंगना मं फूले , रिगबिग चंदैनी गोंदा चुन चुन हार सिरजातेंव 
मइया के चरण मं सरधा के फूल चढा़तेंव ...
बड़ फजर सुत उठके करेंव नंदिया  असनांद 
करेंव नंदिया असनांद हो माया करेंव नंदिया असनांद 
धोवा के धोती सोनहर अलफी  चंदन सारेव माथ 
चंदन सारेंव माथ मं इया चंदन सारेंव 
झुमर झुमर तोर जस पचरा गातेंव ...

२ रतन पिंवरी चंपा चमेली फूल गोंदा छतनार ...
फूल गोंदा छतनार भवानी 

आमा अमली लिंबु माते , लटलट फरे अनार 
लटलट फरे अनार हो माया 
 टोर के फरहार करवातेंव ....
तोर नांव ले ले के मंइया, लहु  रकत बोहाथे 
मंद मउहा मं चुर अधरमी तोर अपजस  फैलाथे 
मयारुक ममता के दरसन करावातेंव ....

डाॅ. अनिल भतपहरी

मोती महल‌ गुरुद्वारा का निर्माण

#anilbtapahari 

।।सतनाम पंथ का विश्व प्रसिद्ध मोती महल गुरुद्वारा भंडारपुरी ।।

    इस भव्य स्मारक को गुरुघासीदास मंदिर के नाम से भी  जाने जाते हैं। इसे जीर्णोद्धार / नव निर्माण के नाम पर  तीन दशक पूर्व ढहा दिए गये हैं। वहाँ केवल ढाचा मात्र है। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि  पुरी एक पीढ़ी इस गौरवशाली दृश्यांकन व दृष्टान्त से वंचित हैं । जब देश भर में महत्वपूर्ण स्मारकों का जीर्णोद्धार व अनेक नव आस्था के नवनिर्माण जारी हैं। तब इसके लिए 
 कुछ भी पहल या हलचल न होना बेहद चिन्तनीय हैं।  
    देश भर के लाखों- करोड़ों लोगों की श्रद्धा का केन्द्र इस ऐतिहासिक ईमारत कब अपनी पूर्व स्वरुप में स्थापित होगा? इसका उत्तर संभवतः किसी के पास नहीं हैं। 
               ज्ञात हो कि इसका निर्माण १८२०-३० के बीच गुरुघासीदास के निर्देशन में राजा गुरुबालकदास ने एक दृष्टान्त के रुप में करवाया था ताकि इनके अवलोकन मात्र से सतनाम धर्म संस्कृति की जानकारी जन साधारण को हो सके।  यहाँ से ही पुरे छत्तीसगढ़ और उनके बाहर सतनाम पंथ का प्रचार -प्रसार हुआ। देश के कोने -कोने से श्रद्धालु यहाँ आते और मत्था टेक कर अपनी धार्मिक भावनाओं का इजहार करते थे ।अनुपम ज्ञान प्राप्त कर कृतार्थ होते थे। दूर से दर्शन मात्र से गुरु उपदेशना का भावबोध होता था।  शिखर के चारों कोने पर तीन बंदर और गरजते हुए शेर का शिल्पांकन से युक्त  चौखंडा महल का नीचे भाग तलघर था। संपूर्ण प्रखंड वास्तु व  काष्ठ कला की अनुपम कारीगरी रही हैं । यह मानव जीवन के चारो अवस्था का शानदार व्याख्या था।पुरातत्त्व की दृष्टिकोण से अतिशय महत्वपूर्ण इस ईमारत का राजनैतिक उठापटक ,शासन -प्रशासन की अनदेखी और उचित  प्रबंधन के अभाव में यह जमींदोज हो गया जो कि  अत्यन्त दयनीय व दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति हैं। 
           छत्तीसगढ़ी संस्कृति की अस्मिता और ‌पुरे विश्व के मानव समाज को मानवता का संदेश देने वाली इस भव्य ऐतिहासिक  ईमारत की हुबहु प्रतिरुप में निर्माण अत्यावश्यक है।   
                इस पावन कार्य हेतु  गुरुदर्शन मेला  मे लाखों दर्शनार्थियों की उपस्थिति में प्रबंधन मंडल की ओर से उचित व सार्थक पहल करते हुए नव निर्माण की घोषणा होनी चाहिए।  खास तौर पर अनेक सामाजिक व धार्मिक संगठन है जो सतनाम धर्म संस्कृति के पैरोकार समझते हैं उन्हे चाहिए कि केवल जनप्रतिनिधी एंव गुरुवंशज ही उनके लिए उत्तरदायी नहीं है बल्कि उनके साथ साथ जन समर्थन व सहयोग  कैसे एकजुट हो ? इन पर गंभीरतापूर्वक चिंतन मनन व सकरात्मक  कार्य करें।
         जय सतनाम 
               
          -डाॅ. अनिल भतपहरी / 9617777514

Thursday, October 15, 2020

मय दानव का मायाजाल

मै की बिमारी फैले है
चारो तरफ चहुं ओर 
मै से हम हम से मै 
का हैं सब तरफ शोर 
आजकल का नहीं ,
यह रोग बहुत पुरानी हैं
मय दानव के मायाजाल से
भरी -पुरी कहानी हैं
मैं के कुनबे मिलकर
आपस में हम हुआ 
फिर जातिय संगठन
का उन्हे अहम हुआ 
मानवता पिसाती गई 
इनकी काली करतुत से 
तुष्ट भले वे हो अपनों में
पर मरते जन दारुण दु:ख से 
मैं के कारण ही सर्वत्र 
छल -छद्म  पलने लगा 
वर्ग संघर्ष शोषण दमन का
चक्र  चलने लगा 
उसी का विस्तार देखों
अब भी फल फूल रहा 
पर उपदेश कुशल बहुतेरे 
प्राय:इन के ही उसुल रहा ...
    -डॉ. अनिल भतपहरी

Tuesday, October 13, 2020

तीन कविताएँ काव्य मेराथन में ‌

#PeetMeMotLeave 

वैश्विक काव्य मेराथन में आज हमारा अंतिम ‌दिवस हैं। इन आठ दिनों में हमने अपनी कविताओं सहित कवि मित्रों / परिजनों में अनिल जांगडे, डां . हेमंतपाल धृतलहरे ,संदीप पांडे , कौतुक पटेल ,शशिबाला भतपहरी, संतोष कुर्रे , लोकेश कन्नौजे, और अजय खुंटे जी को सहभागी बनाए।
       कहे जा रहे हैं कि उक्त हैशटेग से सभी सहभागियों की कविता एकत्र की जाएगी ।फिर अल्मानक‌ नामक रुसी संस्था द्वारा चुनिंदे या सबकी एक एक उत्कृष्ट रचना प्रकाशित की जाएगी।
    बहरहाल वहाँ प्रकाशन हो न हो पर इस के माध्यम से अनगिनत कवियों और कविताएँ पढने समझने‌ का अवसर सोशल मीडिया से मिला ।जो कवि जुड़े उन्हे लगा कि एक अभियान के हिस्सेदारी निभाए यह सुखद एहसास रहा। हर बीता क्षण इतिहास हो जाते हैं। यह एक तरह का इतिहास ही बनाना हो रहे हैं।ऐसे में जब बेहद प्रतिस्पर्धा हो और दूर- दराज तक दृष्टि पड़ते हो उस दरम्यान ,अपने आसपास को भी देख समझ और जोड़ लेने की यह बेहद सरल सहज‌ माध्यम जान पड़ा । हम भी सुगमता से काव्य रुपी मशाल ले मेराथन में दौड़ पड़े ।इस यात्रा में जो मित्र हौसला अफजाई अपनी लाइक कमेन्ट्स के द्वारा करते रहे उनके प्रति आभार ।
       कहते हैं रचना चोरी हो जाएगी इसलिए यु ही सार्वजनिक नहीं करना चाहिए। एक न एक दिन प्रकाशित होने पर वह सबके हो ही  जाते हैं इसलिए बिना नाम के मोह लिए रचना सचमुच में समाजोपयोगी हो ,तो  क्या हर्ज़  हैं? 
        बहरहाल बेफ़िक्र वैश्विक कल्याण की मंगलकामनाएं सहित आज ३ छोटी कविताएँ प्रस्तुत कर अपनी बारी का समापन कर रहे  हैं-
 ।।काव्यार्पण ।।

मेरी कलम की स्याही 
आँसू हैं जो टप-टप चू कर 
काग़ज में कविता बनती हैं
मानवता एंव सत्यता पर 
फिसलते ये कलम 
सिर्फ़ विचार प्रगट करते हैं
मार्क्सवादियों की तरह 
आज हर कवि/ रचनाकार 
सिर्फ़ भावनाओं से शोषित हैं
और जो वाकिय में शोषित हैं
वे लिख नहीं सकते 
गा -बोल नही सकते  
ले देकर जीते हैं
अंत में मर-खप जाते हैं
कार्ल मार्क्स और अंबेडकर की तरह 
ये कम्बख्त कविओं/ वक्ताओं
बहुत सम्मानित होते हैं
उनके वाणी 
महल ड्राइंगरुम में 
सरकारी सभागारों में 
कैद हो जाते हैं 
ठीक कीचड़ के कमल की तरह 
खूबसूरत मंदिर के 
खूबसूरत मूरत के 
खूबसूरत चरण में 
 - डॉ. अनिल भतपहरी 
।।सलाह ।।

सुविधाएँ भी 
उत्पन्न कराती हैं संकट
इसके पहले तो
थे नही कुछ झंझट 
हो गिरफ्त आदमी 
पराधीन हो गये 
सामर्थ्य होते भी 
बलहीन हो गये 
आत्मविश्वास भी 
छीना गया 
ये कैसा डर कर 
जीना हुआ 
एक पेट दो हाथ 
फिर काहे उदास 
अभावग्रस्त पुरखे 
सौ साल जीते थे 
कितने खुशहाल 
कष्टों को पीते थे 
उनके गीत संगीत 
उनकी कथा कहानी 
उनके शौर्य पराक्रम 
उनकी अमृत वाणी 
सोचों क्या ज़रा सा 
हमने ऐसा पाया 
संकट में धैर्य खोकर 
जार-जार आँसू बहाया 
उठो आगे बढ़ो 
करो प्रयाण हिम्मत से 
नायाब नया गढ़ो किस्मत से 
दास न बनो सुविधाओं  के 
बल्कि दास रखों सुविधाओं को‌
मनोरंजन समझना मत‌‌ प्यारे 
 मेरी इ‌न कविताओं को‌
      -डॉ अनिल भतपहरी
।।मज़ा और सज़ा ।।

कहते हैं वो कि उनकी ,मज़ा ही मज़ा हैं
पर सच कहे ज़िन्दगी, सज़ा ही सज़ा हैं

 दिखने  लगा  साफ़ सब, चढ़कर ऊँचाई 
हुए दूर खाली हाथ सब ,तन्हाई ही सज़ा हैं 

यकीन है दूर कर लेगें ,उनकी नाराज़गी 
हर अदा पर उनकी, दिल अपनी रज़ा हैं

उसे पता है कि ये ,आदमी है बेवकूफ़ 
पर न जाने क्युं, उनसे ही वफ़ा हैं

झुके थे सज़दे में तभी ख़बर आया 
आ रही ओ इस तरफ़ हो गई कज़ा हैं 

 जैसा भी है अब तो मस्ती में मलंग है 
आने से उनकी अब रंगीन ही फिज़ा हैं

  -डाॅ. अनिल भतपहरी/ 9617777514

सत श्री ऊंजियार - सदन अमलीडीह रायपुर छत्तीसगढ भारत

Sunday, October 11, 2020

गुरुगद्दी पूजा महोत्सव व गुरुदर्शन मेला

सतनाम धर्म -संस्कृति का मांगलिक अनुष्ठान
 
             *गुरुगद्दी पूजा व गुरुदर्शन मेला महोत्सव*
   
            सतनाम धर्म-संस्कृति में  क्वांर शुक्ल एकम से दसमी तक आयोजित "गुरुगद्दी पूजा महोत्सव और उनके समापन में भव्य शोभायत्रा जुलूस का आयोजन गुरुघासीदास के पुत्र  "राजा गुरु बालकदास " का राज्याभिषेक और उनकी शान में किए जाने वाले राज दशहरा पर्व की शोभायात्रा की मांगलिक अनुष्ठान हैं। 
       क्वांर शुक्ल  एकम से दसमी  तक यह आयोजन होते हैं। दसमी को सतघरा स्नान कर गुरुगद्दी व सतनाम ज्योत कलश को शोभायात्रा द्वारा  सतनाम भवन में स्थापित जोत में समाहित कर देते हैं। 
   दूसरे दिन पंथी नर्तक दल और आखाड़ा वाले क्वार एकादसी को  गुरु दर्शन मेला भंडारपुरी जाते हैं। वहाँ भव्यतम हाथी घोडे के जुलूस  निकाल अनेक करतब पंथी नृत्य ,अखाडा साजते हैं।
   कुछ विद्वान कहते हैं कि  यह परंपरा आशोक दशहरा हैं ।जो सतनाम संस्कृति में आंशिक संशोधन के बाद  १८२० के बाद प्रचलित हुआ।  तब साक्षात् गुरुघासीदास इस आयोजन के सूत्रधार थे।
         सन १८६० में राजा गुरु बालकदास की हत्या और उनके बाद समाज में नेतृत्व शून्यता भीषण अकाल एंव उनके गिरफ्त में जनमानस , बोड़सरा बाड़ा व तेलासी बाड़ा के महाजनों व अन्य के पास  हस्तगत हो जाने और अनेक सामाजिक उथल- पुथल से यह आयोजन स्थगित हो गया।
  केवल  राज दसहरा  गुरुदर्शन मेला के नाम पर भंडारपुरी में एक दिवसीय होते रहे। आसपास के लोग सम्मलित होते और यथा संभव पंथी ,अखाडा  आदि प्रदर्शन करते उसे पूर्ववत तेजस्वी स्वरुप देते नव कलेवर के साथ भंडारपुरी के समीपस्थ ग्राम जुनवानी में शिक्षक सुकालदास भतपहरी एंव मध्य बाल समाज व युवा जागृति मंच के संयुक्त तत्वावधान से १९८५ में दस दिवसीय आयोजन  किए गये‌ ।उसके बाद व्यवस्थित ढंग से गांव -गांव दसदिवसीय गुरुगद्दी पूजा महोत्सव आयोजन कर शौर्य -पराक्रम अर्जित करने  वाली उक्त महाआयोजन का पुनश्च आरंभ हुआ।यह सैकड़ों  ग्रामों /कस्बो में उत्साह पूर्वक मनाए जा रहे हैं।
   गुरुगद्दी पूजा महोत्सव ३५वां वर्ष का आयोजन  तो हमारे ग्राम जुनवानी में  इस वर्ष हो रहा हैं। 

" गुरुगद्दी पूजा समोखन "
   और दु:ख-दंश हरा परब

सतनाम धर्म के चारों शाखाओं और देश विदेश में निवासरत सतनामियों मे गुरुगद्दी पूजा विधान प्रचलित है।
  गुरुगद्दी सद्गुरु के आसन है जिसपर  आसनगत  होकर अपने सम्मुख उपस्थित अनुयायियों को धर्मोपदेश देते और उनके तमाम उलझनो परेशानियों और दसो तरह  दु:ख व्याधि के हरन का उपाय बताते इसलिए भी यह दु:ख दंशहरा परब है।
   क्वार शुक्ल एकम से  दशमी तक दस दिवसीय इस महापर्व का आयोजन होते है नित्य प्रात: शाम आरती पूजा के साथ साथ संत महंत गुरुओ द्वारा  ग्यान वर्धक व्यख्यान्न सत्संग प्रवचन गुरु ग्रंथ व चरित का पाठ एंव लोक कलाकारों द्वारा प्रेरक व मनोरंजक नाट्य मंचन गायन व नर्तन होते है।कही कही हर शाम सामूहिक भोग भंडारा होते है जिससे इस विकट समय टुटवारो के दिन में परस्पर मिलजुल कर सहभोज कर आत्मिक आनंदोत्सव मनाते है ।यह सब सद्गुरु के समछ  होते है।ताकि पुरी पवित्रता और महत्ता कायम रहे उनका सदैव आशीष मिलता रहे।इस कठिन वक्त जब फसलें खेत मे है और लगभग जन साधारण के अन्नागार कोठी खाली हो उस समय साधन सछम लोग जन कल्याणार्थ इस महा पर्व मे अन्नदान कर सामूहिक भोग भंडारा चलाते है ताकि गरीब गुरबा बडे बुजुर्ग महिलाओं  व बच्चो  को  गुरुप्रसादी के रुप मे भोजन मिल सके।और रात्रिकालीन होने वाले ग्यान वर्धक व मनोरंजक कार्यक्रमों का लाभ उठाकर सुखमय जीवन निर्वाहन कर सके।इसी  प्रयोजनार्थ  सतनाम संस्कृति मे यह महत्वपूर्ण आयोजन है।
    दसवें दिन "सदगुरुआसन" का  प्रात: शोभायात्रा निकाल ग्राम गलियों की परिक्रमा कराते है।और सदानीरा नदी सरोवर के समीप जल परछन कराकर वापस गुरुद्वारा या कोई श्रद्धालु अपने घर नित्य आगामी उत्सव तक पूजा अर्चन करने स्थापित करते है।
   शाम को तेलासी अमसेना खपरी बोडसरा ( वर्तमान मे स्थगित) खडुआ गुरु वंशजो के दर्शनार्थ जाते है शोभायात्रा और उनके सम्मुख श्री मुख से सद्गुरु की अमृतवाणी श्रवण करते कृतार्थ होते है।गुरु उपदेश सिद्धान्त रावटी महात्म से परिपूर्ण संत महंत की उपदेशना चौका आरती भजन पंथी एव ग्यान व मनोरंजन पूर्ण कार्यक्रम देख सुन कृतार्थ होते है।
    दूसरे दिन जग प्रसिद्ध भंडारपुरी गुरुदर्शन दशहरा पर्व का आयोजन हर्षोल्लास पूर्वक होते है।इस दिन हाथी घोडे ऊट पैदल चतुरंगी शोभायात्रा गुरु वंशजो व गुरुगद्दी नशीन धर्मगुरु का उपदेश व प्रवचन होते है।
   सतनामियो का यह सबसे बडा और प्राचीन महोत्सव है। जहां गुरुवंशज के घर से गुरु प्रसादी भोग भंडारा पाकर श्रद्धालु गण लोग धन्य-धन्य हो जाते है।
     छग मे स्थापित सतनामधर्म का यह उत्सव १८३०-४० जब मोती महल गुरुद्वारा का उद्धाटन हुआ और राजा धोषित होने बाद चतुरंगी सेना साजकर आम‌जन मानस को दर्शनार्थ सद्गुरु घासीदास के मंझले पूत्र राजा गुरु बालकदास  भाई आगरदास पुत्र साहेब दास हाथी मे संवार आमजनमानस के बीच आकर गुरु उपदेशना व पंथ संचालन हेतु आवश्यक दिशा निर्देशन किए।
  तब से यह विशिष्ट आयोजन परंपरागत आन बान से आयोजित किए जा रहे हैं। देश भर के लाखों श्रद्धालु गण एकत्र होते हैं जिसे गुरुगद्दी नशीन धर्म गुरु एंव अन्य  गुरु वंशज वर्ष भर के धार्मिक क्रिया कलापों की जानकारियों के साथ- साथ देते हुए सुखमय जीवन हेतु धार्मिक उपदेशना प्रदान करते हैं। संत महंत भी इस अवसर पर उपस्थित जन समूह को संबोधित करते हैं। 
      इस महाआयोजन से समाज सुसंगठित होते हैं। और उपस्थित गांवो के मुखिया /प्रतिनिधि गण  यहाँ से सीखे समझे बातों को अपने अपने ग्रामों जगहों पर संचालित करते हैं। इसलिए  सतनाम संस्कृति में "गुरु दर्शन मेला"  का अतिशय महत्व हैं। 

   गुरुगद्दी पूजा महोत्सव का आयोजन प्रत्येक सतनामी ग्रामों में होना चाहिए दस दिनो तक सामूहिक आयोजन होने से परस्पर लोग सामाजिक व धार्मिक कार्यों में प्रवृत्त होते हैं संगठित होते हैं और वर्ष भर की जाने अनजाने कटुताओं का समापन होते हैं। साथ ही न ई पीढ़ी के लोगों को अपनी समृद्धशाली संस्कृति का हस्तांतरण होते हैं। इस आयोजन का यही प्रमुख उद्देश्य हैं। 

     ।।जय सतनाम ।।

-डॉ. अनिल भतपहरी, 
    9617777514 
सतश्री ऊंजियार- सदन अमलीडीह रायपुर छग

चित्र- १मोतीमहल गुरुद्वारा भंडारपुरी स्वयं कैमरा से खीची ग ई फोटोग्राफ १९९३ 
२ गुरुघासीदास द्वारा धारण किए कंठी माला एंव चरणपादुका सहोद्रा माता की झांपी‌ डूम्हा भंडारपुरी

Saturday, October 10, 2020

गंवाए मछरी जांघ भर

कोठी मं लुकाए लइका,चिहुर परगे गांव भर 
कौव्वा लेगिस कान कुदावय मनखे गांव भर 
पाय मछरी बित्ता भर,गंवाए मछरी जांघ भर... 

कतकोन पय दोदे फेर एक दिन उफलथे 
0अलकर दु:ख  मनखे के मारे- मारे फिरथे 
उतरिस न बोझा मुड़ के लदकागे कांवर खांध भर ...

नानचुक जीव तोर अउ बोहे बोझा गरु 
सुघ्घर मीठ जिनगी मं घोरे  महुरा करु 
बिखहर बिताए दिन, फेर अमरित ले सांझ बर ...

हरहिंछा रहिबे तय, भज ले चरन गुरु 
सत मारग म चलबे तय ,पाबे शरन गुरु
करनी के फल जतका ,हवे तोर सांख भर ...
          -डाॅ. अनिल भतपहरी

सफ़ल वही जो

#PeetMeNotLeave
वैश्विक काव्य मेराथन में आज पंचम दिवस पर बहुमुखी प्रतिभाशाली  विधि स्नातक शिक्षिका  छोटी बहन श्रीमती शशिबाला सोनकेवरें ( भतपहरी ) को‌ आमंत्रित कर रहा हूँ । बाल्यावस्था से ही खेल -खेल में बच्चों के बीच   कविताएँ रचती जैसे-
नाक के अंदर
बड़ा समंदर 
झर -झर करते 
बहती झरना 
ठंडी में जम गये 
देखों न डरना 
उनकी इस प्रवृत्ति से उत्साहित ऋषि सम पिताश्री सतनाम संकीर्तनकार सतलोकी सुकालदास भतपहरी "गुरुजी "उन्हे  ननकुनियां "गार्गी" कहते थे। 

            उनकी समर्थ  हाथों में  काव्य मेराथन की मशाल सौंपते आश्वस्त हूँ । एक सप्ताह तक रोज अपनी एक   कविता और एक कवि मित्र जोड़कर कारवां आगे ले जाएंगी।
        तत्क्षण सेल्फी सहित स्वरचित कविता प्रस्तुत हैं- 

सफ़ल वही जो...

खाए -पीए, अघाए लोग  
बरजते हैं मत खाओ 
कुछ भी मत पीओ 
अपच से परेशान रहोगे 
हम जैसे बीमार पड़ोगे 
अनुभव के नाम पर रोकते हैं
मत जाओं उधर संकट हैं
रास्ते में रोड़े और कंटक हैं
चर्चित वरिष्ठ साहित्यकार 
देते हैं नसीहत अक्सर
मिटा दो छपास 
और मंच की भूख 
इसमें नहीं कोई सुख 
उधर सृजन नहीं 
मान सम्मान नहीं 
क्यों मरे जा रहे हो उद्यम में
उद्योगपति कहते हैं मंदी 
कर्ज में डूबकर शौक से 
कराने है ताले बंदी 
बैठे रहते लिए आरी 
 फूटकर,थोक व्यापारी 
बेरोजगार  नौकरी के लिए 
आवेदन गुपचुप भरते हैं 
क्या पता यही न छीन ले 
भीतर मन ही मन डरते है
सभी क्षेत्र में 
गलाकाट प्रतिस्पर्धा हैं
देखें तो सर्वत्र  
संकट और असुविधा हैं
ऐसे में कोई कैसे 
सहयोग की शुरुआत करे 
पहल करने 
कैसे किससे बात करे 
पर सच तो यह हैं
 मांजते रहो शस्त्र 
पढते रहो शास्त्र 
कोई न सुने 
सहयोग न करे 
निकल चले अकेले 
अपनी सामर्थ्य पर
रखो भरोसा 
करो उद्यम 
टूटे न आशा 
जलाओं तो सही 
एक  नन्हा दीया 
अंधेरे में घिरे लोग 
पाएन्गे एक ठीया 
क्योंकि अधिकतर 
अंधेरा कर 
सितारें हो गये 
तुम बनो तो सही 
एक अदद दीये
माना की उसके तले भी 
रहते हैं अँधेरा 
पर अभियान हो
ईमानदारी से मिटाने 
दीये तले का अँधेरा 
भूल न जाना  
बनना अपना ही दीया 
तप सा जीवन श्रमयुक्त 
सफल वही जो 
बुद्ध सा जीवन किया

-डॉ. अनिल भतपहरी /9617777514
सत श्री ऊंजियार सदन, अमलीडीह  रायपुर छ. ग. भारत.