कोठी मं लुकाए लइका,चिहुर परगे गांव भर
कौव्वा लेगिस कान कुदावय मनखे गांव भर
पाय मछरी बित्ता भर,गंवाए मछरी जांघ भर...
कतकोन पय दोदे फेर एक दिन उफलथे
0अलकर दु:ख मनखे के मारे- मारे फिरथे
उतरिस न बोझा मुड़ के लदकागे कांवर खांध भर ...
नानचुक जीव तोर अउ बोहे बोझा गरु
सुघ्घर मीठ जिनगी मं घोरे महुरा करु
बिखहर बिताए दिन, फेर अमरित ले सांझ बर ...
हरहिंछा रहिबे तय, भज ले चरन गुरु
सत मारग म चलबे तय ,पाबे शरन गुरु
करनी के फल जतका ,हवे तोर सांख भर ...
-डाॅ. अनिल भतपहरी
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