मंय काबर लिखथंव ?
लिखत पढ़त मंहु हर आनमन कस अपन काव्य प्रयोजन ल फरिया के 2007 के मोर किताब के छपवा तको डरे रहेंव -
अर्थ नहीं धर्म नहीं
आत्म प्रशंसा मेरी
नज़र में व्यर्थ सही
जो सच है उसे ढूंढने
और कहने आया हूँ
सोये रहोगे कब तक
तुम्हें जगाने आया हूँ
फेर अब जाके पता चलिस
कोनो जागय त
झन जागय
फेर अपन ल
जगाय के जुगत सेती
लिखथंव -पढथंव
ताकि मय सोय
झन भुलाव रहंव...
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