Friday, December 11, 2020

गुरुबालकदास और वीर नारायन सिंह

छत्तीसगढ़ की अस्मिता और स्वाभिमान का प्रतीक   बालसखा द्वय - "वीर नारायन सिंह एंव राजा गुरु बालकदास" 

        म. प्र. के समय छत्तीसगढ़ राजनैतिक शक्ति के केन्द्र थे। पर विकास के नाम पर शोषित रहा है। सच कहें तो यह  उपनिवेश परिक्षेत्र जैसा ही रहा है। 
   90 विधायकों वाली यह क्षेत्र( अब राज्य )और उनके नेतृत्व बेहद प्रभावशाली रहा है। फलस्वरुप यहाँ से प्रथम सहित  अधिकांश  मुख्यमंत्री बने। क्योंकि अनु जाति /जनजाति के एकमुश्त ४० से ऊपर  विधायकों का समवेत समर्थन मिलता रहा। जो शेष म प्र के नेताओं के ऊपर भारी पड़ता था। उसका प्रत्यक्ष लाभ मिला ।पर दीप तले अंधेरा के भांति यह अंचल विकास से कोसों दूर रहे खासकर सांस्कृतिक पहचान भी शैन शैन छीण होते चले गये। पाठ्यक्रमों में भी यहाँ की इतिहास कला व सांस्कृतिक प्रतिमानों को स्थान नहीं मिला फलस्वरुप यहाँ की बौद्धिक संपदा भाषाई विकास  भी अपेक्षाकृत गौण होने लगा ।
             बावजूद यहाँ के समकालीन स्थानीय  नेतृत्व अनु जाति /जनजाति के नायकों को प्रतिष्ठित करने में कभी रुची नहीं लिए न इन वर्गों को गंभीरतापूर्वक लिए।
फलस्वरुप छत्तीसगढ़ से बाहर  म प्र का जो नेतृत्व हुआ वे जरुर दोनो समुदाय के नायकों को प्रतिष्ठित कर इन समुदाय को मुख्यधारा में लाने का उत्कृष्ट  कार्य किया।
       आजादी के बाद लगभग 40 सालों से उपेक्षित व जमींदोंज करने पर तुले  दो महानायक गुरुघासीदास और वीर नारायन सिंह को 80 के दशक में विध्यांचल परिक्षेत्र के  मुख्यमंत्री  कुंवर अर्जुन सिंह और उनके विश्वस्त इन वर्गों  मंत्रीमंडल के सदस्य  झुमुकलाल भेडिया -अरविंद नेताम  विजय गुरु ,बंशीलाल धृतलहरे और अजीत जोगी    जैसे लोगों के  अथक प्रयास से छत्तीसगढ़ की धरा में दोनो महामानव को सही सम्मान प्राप्त हो सका ।  उच्च स्तरीय नेता गण 18 दिसंबर जयंती में व्यस्त रहते और दूसरे दिन 19 दिसंबर को वीर नारायण सिंह के कार्यक्रम रहते। इस तरह दो दिवसीय  भव्यतम आयोजनों से एक वातावरण बना। इसी आयोजनों से  पृथक छत्तीसगढ़ की बातें होना आरम्भ हुआ।
    विश्वविद्यालय बांध जैसे बड़ी  प्रतिष्ठानों का नामकरण, जयंती पर  सार्वजनिक  अवकाश  और सामाजिक धार्मिक कार्यों में सहभागिता के कारण सही अर्थों में छत्तीसगढ़ी पना का अहसास जनमानस में गहराई से पनपा।
    पृथक छत्तीसगढ़ आन्दोलन के पृष्ठभूमि में भी गुरुघासीदास अभिमंत्रित वीर नारायन सिंह व राजा गुरु बालकदास के प्रदेय आन्दोलन और शहादत ही प्रमुख कारक रहें हैं। 
             इनके साथ साथ राजिम माता , कबीर पंथी धर्मदास पुत्र  चुरामणी नाम साहब , माता कर्मा , गुण्डाधुर , पं सुन्दरलाल शर्मा ,गुरुअगमदास , खुबचंद बघेल मिनीमाता मंत्री नकूल ढीढी , कंगलामांझी , प्रवीणचंद भंजदेव जैसे ऐतिहासिक महापुरुष हुए जो छत्तीसगढ़ी स्वाभिमान व अस्मिता प्रतिष्ठित करने के प्रेरणा पुंज रहे हैं। वर्तमान में तेजी से विकसित समृद्धशाली छत्तीसगढ़ अप‌ने इ‌न सपूतों को पाकर  सदैव धन्य रहेन्गे।    
                जय छत्तीसगढ़

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