हंसा अकेला सतनाम- संकीर्तन में
सतनाम-महामंत्र
जो नर सुमरै नित सतनाम
जीयत पावै पद निरवान
जन्म धरै तो करो कर्म अच्छा
दु:ख न पीरा हो जीवन सच्चा
खान-पान बेवहार हो पबरित
अन खावै जल पीयय अमरित
हिरदे सफ्फा मन रहे निश्चछल
तबहि पावै सुख सुन्दर सुफल
सद्कर्म देव हिरदे मन धाम
हिरदे भीतर बसै सतनाम
मान सम्मान सदा अजर-अमर
वंश विस्तार हो सेत -हरियर
हंसा अकेला उड़ै सतलोक
बहुरि न आवै कबहु मृतलोक
जो नर सुमरै नित सतनाम
जीयत पावै पद निरवान ...
- डां.अनिल भतपहरी
टीप - सतलोकी पिताश्री सुकालदास कृत पुनर्प्रकाशित सतनाम- संकीर्तन में संकलित स्वरचित सतनाम महामंत्र जिसे नित्य आरती व गुरुवंदना में प्रस्तुत करते है।
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