Sunday, November 8, 2020

सुरता लक्ष्मण मस्तुरिया

#anilbtapahari

आज लक्ष्मण मस्तुरिया के पुण्य तिथि में -

सुरता - 

"लक्ष्मण  मस्तुरिया के संग "

        छत्तीसगढ़ी साहित्य/ गीत के स्वनाम धन्य सिरजन हार मधुर कंठ के धनि गायक भैया लक्ष्मण मस्तुरिया जी के सानिध्य लाभ हम ला  पढ़त घानी से  मिलत आत रहिन । ओ मन बड़ धीर- गंभीर, अल्प अउ मृदुभाषी रहिन ।

    मोला सुरता आत हे जब उनकर सो पहली मिलन भेटन होइस सन १९९०-९१ (फरफेक्ट सन तिथि के सुरता आत निये ) मं जब गुरुघासीदास छात्रावास आमापारा (१९८८-९३ )मं रहिके पढत रहेंव। मंत्री कन्हैयालाल कोसरिया जी के  सुपुत्र कवि और शिक्षक  रामप्रसाद  कोसरिया जी सुशील यदु के संग संझौती मोला खोजत छात्रावास मं आइस। अउ एक संगोष्ठी म आय बर नेवतिन अउ अपन समिति के कार्यकारिणी मं जोड़िन । ओ समे मय छिटपुट छपे धर ले रहेंव। दस रुपया चंदा तको देव अउ उनमन रसीद देइन ।ओला भी बहुत दिन तक जतनाय रखे रहेव हो सकथे कोनो किताब या डायरी घरखन रखाय होही।
ओ कार्यक्रम मं बडे -बडे मुड़का  जेन मं हरिठाकुर ,केयुर भूषण, लक्षमण मस्तुरिया ,रामेश्वर शर्मा , चेतन भारती, निकुम जी, शाद भंडारवी ,जागेश्वर प्रसाद सरिख छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी   आन्दोलन के सुत्रधार मन सकलाय रहिन ...लक्ष्मण मस्तुरिया जी के  बड़ सुघ्घर गीत सुन अउ दरस पाके मन कुलकत बड़  अछाहित होगे... जेन ल सुन के बाढे रहेन अउ जेकर गीत के प्रशंसक बाबु जी रहिन ओकर कुछ प्रसिद्ध  गीत के तर्ज के पेरोडी म उन मनभावन गीत लिखय यानि की मय पिता जी से एम्प्रेस रहेंव अउ पिता जी लक्ष्मन मस्तुरिया जी से ... उन ल साक्षात् देखेंव ... एक घाव यकीन तको न ई होत रहिन ... सच कहिबे त ओकर गीत अउ ओकर स्वर बचपन से मन मं रचे- बसे रहिन ... थोर- थीर मय हारमोनियम अउ बाबु जी  बासुरी में ओकर अउ केदार यादव के  गीत के धुन ल कभु कभु सौकिया गावन - फिटिक अंजोरी या तुक के मारे रे नैना बजावन तको घर मं  तीर तखार के मन सुने बर जुरिया तको जय।
 खैर मय डरावत लजावत अपन आरती नुमा  जय छत्तीसगढ़ गीत  पढे़व अउ सियनहा मन के असीम मया दुलार पाएंव। तंहा ले छप ई संग गोष्ठी मं अवई -जवई सुरु होगे!.छत्तीसगढी सेवक के अखंड धरना वर्तमान गुरुघासीदास नगर घड़ी चौक तीर चलय ओमा तको संघरन ।
     रायपुर मं मय  १९९४ तक रहेंव ये समे छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के जुराव मं, कवि गोष्ठी मं, संघरव सहपाठी चंद्रशेखर वर्मा चकोर  दुनो आवन -जावन अउ सुशील भोले जी तको संग साथ में रहय ...!
               जब भैया जी समवेत शिखर के छत्तीसगढ़ी कालम लोक सुधा के संपादन करत रहिन राजकुमार कालेज तीर  त मोर एक गीत "मन के दीया ल बार" छापिन ।मय विवेकानन्द आश्रम के वाचनालय मं छपे देखेंव ..त मन बड़ बिधुन हो गय ... बने चारों खुंट दीया के डिजाइन देके प्रमुखता से ओ गीत ल छापे रहिन ... मय तुरते प्रेस गयेंव । भैया जी उहचे बैठे देख अपन परिचय देवत कहे प्रणाम आदरणीय मै ... जानथंव भाई तोर अउ रचना मन ल छापे हन ... आज तोर मन के दीया बार छपे हे   ब इठ । उनमन आदर से बिठाइस अउ पेपर मंगा के देइस । आज ले ओ पेपर बिना कटिंग किए जतनाय रखाय हवे ... थोरिक रचना कर्म छत्तीसगढ़ी गीत साहित्य पढ ई- लिख ई के बात होईस। संगे संग  छत्तीसगढ़ी पन अउ शोषण अउ अलग राज खातिर लेख लिखव  कहिन ओ समे जादा लेखन न इ चलत रहिन ...
  ओकर अउ जागेश्वर जी  से प्रेरित होके "अलग राज भाव भूमि अउ भाखा" १९९३ में लिखेंव जोन दो तीन पत्र पत्रिका मं छपिस ।ओ लेख सेती छत्तीसगढ़ी साधक  गुणी जन के असीस पाए रहेंव, ओ लेख में अकारे कि सन २००० मं अलग राज बन जाही । ... (एक दु अभिन्न मित्र मन जोन लेख पढे अउ सुरता राखे रहिस बधाई देवत कहि‌ "बज्र भटरी अकार ये भाई, सच होगे।")
     
मय प्रणाम करके कोनो देव धामी सो मिले कस उछाहित छात्रावास आगेंव ।  साथी मन ल बताएव तो ओ मन खुश होगे ... परतीत करे न इ धरत रहिस ... काबर लक्ष्मण  मस्तुरिया जी  ह हमन के जेहन मं  स्टार दर्जा बना डरे रहिस ... सिरतोन उन आपार लोकप्रिय रहिस अउ अभी भी हवय ।
        पेट बिकाली नौकरी म पेंड्रारोड पलारी बलौदाबाजार  किंजरत रायपुर मय २०१३ मं आएव। कुछ महिना बाद  धीरे -धीरे फेर साहित्यिक सभा सुसाटी मं आए गये घर लेंव।.  सुशील भोले जी ह  खुबचंद जयंती म नेवतिन ,त मय उछाहित गयेव ।उहा भैया जी मुख्य अतिथि रहिन आदरणीय शंकुनतला तरार जी के अध्यक्ष ता रहिन अउ कोंटा कांटा म ब इठ के सुन इया अनिल बपुरा ल नेवताय पहुना के न इ हबरे ले औचक विशिष्ट अतिथि  बना देगिस ...  मय अकस्मात मिले ये सम्मान से अकचका गेंव ..भैया जी समनान्तर बैठे के सौभाग्य मिलिस.. ..तहां  फेर सुरु होइस मघुर गीत कविता के दौर... मस्तुरिया जी ल  कतको सुन ले मन न इ अघाय ...
   उनमन अपन नवा किताब सांवरी मोला सप्रेम भेंट करिन।

  अइसे लगिस कि आज देवता के परसाद मिलगे !  बरसत पानी अउ ओकर मया दुलार के छिंटा म भिंजत अपन कुरिया रतिहा  लहुटेंव ।
    लक्ष्मण भैया जी के  अंतिम दरस नइ हो सकिन काबर कि जरुरी मिंटीग मंत्रालय म रहिन ... कभु -कभु कर्तव्य हर येकरे सेती मया दुलार ल भारी पर जथे !ओकर जग मं सघरेंव अउ दूधाधारी मठ के सत्संग भवन म सादर श्रद्धांजलि दे के आएंव ओकर गीत ल हारमोनियम के लहरा देव बिकट बेर तक गाते रहेंव ... ओ सच में कहे त हमन के अंतस मं बसे हय ओ कहु गे नइये ।
    यही अमरत्व भाव आय जेकर पात्र बिरले ह होथे।
       भैया जी सादर नमन 
विनम्र श्रद्धांजलि ...

-डाॅ. अनिल भतपहरी

पुरौनी -

    लक्ष्मण मस्तुरिया  के  व्यक्तित्व के अनेक आयाम रहिन उन मन बाजा रुजी गीत भजन म ही नही भलुक अकादमिक काम करे बर तको उमिहाय रहिन  अउ शोधार्थी बन के काम सुरु तको करे रहिस होही बात  
 १९९३ के आय मय अपन   पीएचडी करे बर डॉ देव कुमार जैन से मिलेव संग म चित्तरंजन कर सर तको बैठे रहिन .. . जवाहर मार्केट के कैमरा कार्नर म त उन कहिन गोष्ठी संगोष्ठी और छपने -सपने वाले लोग पीएचडी करने में सुस्त रहते हो जी ... देखो लक्ष्मण मस्तुरिया करुंगा कहे और अभी तक टापिक व  सिनाप्सीस का अता पता नहीं ! कही आपका भी ऐसा हाल न हो जाय ।
  कर सर मोला गुरु भाई कहिके आत्मीय संबोधित करिन ...जबकि उनमन मोर श्रद्धेय गुरुवर आय। मोर विषय -"  निर्गुण संत साहित्य में गुरुघासीदास के योगदान "  रहिस अउ मय ये बुता म लगे रहेंव ‌

    इही वर्तालाप मं पता चलिन मस्तुरिया जी भी पीएचडी करत हे ... एक बार ओकर से भेंट होइस त कहेव क इसे भैया  जैन सर ह सोरियात रहिस ... मोर संग रहे इंजी उमाशंकर धृतलहरे कहिस -"मस्तुरिया जी ऊपर लोगन पीएचडी करही " 
   मय कहे तोर मुंह मं घी शक्कर भाई ... मस्तुरिया जी .. बेफिकर अउ थोरिक हुर्रियात कहिस - अरे का का कहत हव भ इया ये ऊमर म अब कहा के... अउ कलेचुप होगे भीतरे भीतर हंसत  बानी कहे कहिस .. मसानबाडा ल बने लिखे अनिल छप गे हवे ले जा हमन लोकसुधा के अंक धर के  अउ प्रणाम करके लहुट गेयन ।

-डॉ. अनिल भतपहरी

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