Thursday, December 3, 2020

चौंक चौराहें मोड़ पर ...

चौक चौराहे मोड़ पर ..

रविवार के बावजूद आज चुनावी ड्युटी के चलते आराम हराम हो गया और बोनस स्वरुप  रास्ते में बाल-बाल बचा! 
       हुआ युं कि वीकेन्ड अवकाश के आदत पड़ जाने से  एकाध धंटे बाद नींद खुली ।हड़बहाट में जल्दी निकले क्योकि  निर्वाचन  काल में  नौकरी करना नही बचाना जो पड़ता है। 
    बाहरहाल जैसे चौंक में मोटर साईकिल पहुंची कि स्मृत हुआ मोबाइल घर में छूट गये ... "दुब्बर बर दु असाढ़" जैसे स्थिति एक पहले से लेट दूसरे और भी लेट करने होन्गे !खाना पानी यहां तक परीचित से रुपये मिल भी सकते है पर मोबाइल  नही! और आज डिजिटल युग मे इनके बिना गुजारा मुश्किल ... लत आदि तो नही.. बल्कि पल -पल सुचनाओं के लिए यह आवश्यक है।
      वापस घर की ओर मुड़ना ही हुआ कि चौक में मंदिर के पास  एक घरघराती कार पीछे से टक्कर दे मारी  तिलक लगाए  हाथ में मौली सूत्र बांधे वह शख्स  धार्मिक और जल्दी में लगा .. और हम भी ... कहां-सुनी का समय ही कहा?  जो हुआ सो हुआ ! बस में बैठे मोबाइल के सिवा यदा -कदा ही यात्रियों में आज कल वार्तालाप हो पाते है डेली अप -डाउन वाले तो इनके चलते अब दुआ सलाम तक छोड़ दिए जिसे देखों सम खोए और इसी मे उलझे  है ... हम भी ।सफर काटने का यह नया और सर्वोत्तम तरीका भी तो है।
   अब रेल्वे ,बस स्टेण्ड मे पत्र- पत्रिकाएं की बुक स्टाल नही अपितु मोबाइल चार्जर ,इयर फोन  ,पावर बैंक  सेल्फी स्टीक मेमोरी कार्ड  की दुकानें सजे- धजे है।
      येशुदास की गोरी  तेरा गांव बड़ा प्यारा ... हो या चांद जैसे मुखड़े पे ... कितनी बार सुन लो मन नही अधाते ... और और सुनने का मन करता है ... इसलिए हर बस वाले जिनके पास स्टोरियों सिस्टम है जरुर बज जाते है । क्योकि बस ड्राइव्हर प्राय: मैच्योर ड्राइव्हर है और इस देश के मैच्योर लोग चाहे किसी कम्पनी या शासकीय  आफिस का डायरेक्टर हो या बस कंडक्टर सबको ७०-८० के दशक का फिल्मी गीत ही प्रिय है। हां यदा -कदा लोक गीत गर्मी में बारिश की फुहार की मानिन्द या ठंड मे चुभती -चिरती हवा में गर्म झोंके सा बज उठते है। एक परीचित के ड्राइव्हर को चंदैनी गोंदा के गीत रखने कहा ... पर राजधानी के बस ड्राइव्हर व कंडेक्टर छत्तीसगढिया नही है और डायरेक्टर का तो होने का सवाल पैदा नही होता।  गर भूले भटके हो गये तो छत्तीसगढी गीत गुनगुनाने की भूल मात्र से देहाती हो जाएन्गे। वैसे डायरेक्टर कला प्रेमी हो गये तो प्रशासन कैसे कर पाएन्गे। उन्हे जानबुझ कठोर और चेहरे पर गंभीरता तो लादना है ताकि जीनियस और धीर गंभीर लगते भले घर जाकर वह जो हो जाय।
बहरहाल  ये लोग छत्तीसगढिया सवारी से  उनके गंतव्य के किराया लेने और स्टेशनों के नाम याद कर लिये  पक्के छत्तीसगढ़िया जैसे दाई -माई गोठिया ले पर है यु पी बिहारी  और यहां रोपा बिसाई निंदाई छोड़ सब काम करने में माहिर हैं। यदि इनके भी मसीन आ जाए तो काम करते पर प्रातिंक नजर आएन्गे और चौरे पर तास फेटते माखुर गुटका के पीक थूकते या भट्टी से लड़भडाते आते छत्तीसगढ़िया दिखेन्गे।
   बहर हाल आजकल कठोर अकुशल श्रमिक छत्तीसगढ़िया है और वे केवल लेवर गिरी के लिए बना है जान पड़ते है। दीवाली व चुनाव समीप आने से देश भर के शहरों में राजमिस्त्री लेवर व  ईट भठ्ठे में ईट बनाते परिवार उछाहित झुंड के झुंड बाल- बच्चों सहित लौट रहे है।इनकी भीड़ व आव्रजन-पलायन देखा तो वह मंजर याद आने लगे जब हम कोसरंगी हाईस्कूल में पढ़ रहे थे।तब एक रात्रि खरोरा से आगे पेंड्रावन जलाशय के समीप पाइटेक इंजीनियरिंग  कालेज के पास पर सिमेन्ट से भरा ट्रक और उन पर बैठ कर जीविकोपार्जन हेतु पलायन करते मजदूर सहित  रात्रि में  मुरामोड़ पर उलट गये और४-६  लोग दब कर मर गये व  गंभीर रुप से धायल हो गये । दूसरे दिन  राजदूत से तीन सवारी हम मित्रगण यहां वह मंजर देखने आए ट्रक उलटा पड़ा और सिमेन्ट की बोरियां यत्र- तत्र बिखरे खुन से सने मिले ।लोमहर्षक दृश्य देख हृदय द्रवित हो गये।कुछ दिन बाद वहां मंदिर बन गये हर नवरात्रि व अवसर पर जोत जवारा भजन पूजन चलने लगा  वह शक्ती पीठ जैसे चर्चित होने लगे मनोकामना कलशों की संख्या बढ़ती जा रही है। आज उसी मोड़ पर बस पहुचते ही अचानक जोर से ब्रेक पड़ा । और  खड़े हुए यात्री गण एक दूसरे पर लद भिड़ गये।बैठे हुए लोग सामने सीट से टकराए ... मेरा तो ऊपरी ओठ सामने सीट मे लगे हाथ रखने के हत्थे से टकरा चोटिल हो गये .रुमाल से खून पोंछा ..नीचे गिरे मोबाइल उठाया और  फ्रंट कैमरे से देखा  सूज गये है दर्द से हाल-बेहाल रविवार है और नौकरी बचाना है और लोगों को गंतव्य की ओर जाना है। यह नौबत तब आया जब एक मोटर साईकिल चालक मंदिर के आगे हेंडिल छोड़  हाथ जोडने लगे  व लड़खड़ाकर गिर गये उसे बचाने बस चालक ब्रेक लगाए  ओ गाडी वाला चमत्कार मान और लेट गये ।बस ड्राइव्हर व पीड़ित यात्रियों का समवेत स्वर  उसे गालियों का आशीष देते आगे बढ़ गये ।
     हर गली चौक- चौराहे ,तिराहे मोड़ पर धार्मिक स्थलों की निर्माण और जनमानस की उनपर आस्था , वाहन चालकों का हैंडिल छोड़कर दोनो हाथ से प्रणाम व  पल भर आंखे बंद कर ध्यान भक्ति  कौन सी नवीन भक्ति अराधना की  विधी है!  जिससे अराध्य की कृपा मिलते है? यह जरुर धर्म अध्यात्म व दर्शन साहित्य जगत में अन्वेषण का विषय है।और यातायात विभाग वालों की कैसी रहमों- करम है नमकयह भी विचारणीय है ।
      लोग कहते है कि सड़क किनारे शराब दूकान के कारण दुर्धटनाएं धटती है ,आज हमे लगा वह जो हो पर इन सड़कों के किनारे ,मोड़,चौक- चराहों पर शेष भाग -३ 
लोग कहते है कि सड़क किनारे शराब दूकान के कारण दुर्धटनाएं धटती है ,आज हमे लगा वह जो हो पर इन सड़कों के किनारे ,मोड़,चौक- चराहों पर धार्मिक जगहों के कारण बड़ी -बड़ी दुर्धटनाएं धट रही  वह क्यो लोगों को नजर नही आते ? 
  धार्मिक कार वाले से बच कर बस में बैठ हुए मोटर साइकिल वाले की अन्यय भक्ति से धायल अनिल सच में विवश और बेबश है कि इन सबका क्या किया जाय 
      -डा. अनिल भतपहरी

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