Tuesday, December 1, 2020

रामनामी प्रथा और उनकी वर्तमान दशा

छत्तीसगढ़ में सतनामियों के बीच सतनाम के जगह रामराम सुमरने की प्रथा १९०० के आसपास शुरु हुआ ।
युं कहे सतनाम जागरण को छत्तीसगढ़ के उत्तर पूर्वी भाग में फैलने से बचाने और हिन्दूत्व विचारधारा को थोपने की  सडयंत्र के तहत हुआ।
यदि यह रामनाम भक्ति वाला मामला होता तो सारे हिन्दू जातियाँ जो परंपरागत राम भक्त हैं। वे लोग भी रामनाम गुदवाते। परन्तु ऐसा एक भी उदाहण नहीं हैं। रामनामियों से छुआछूत व भेदभाव करते हैं। इस तरह बेचारे रामनामी न हिन्दू हुए और न सतनामी ।बल्कि रामनाम और सतनाम के दो पाटन के बीच पीसते रहे हैं। इसलिए यह समाज बेहद पिछड़े व निर्धन लोग हैं। सतनाम‌ से दुराव के बाद  हिदुत्व की दुत्कार से रामराम को ही सतनाम के समकक्ष मानकर  निर्गुण निराकार दर्शन विकसित कर लिए पर भक्ति राम और रामचरित मानस का ही चलने लगा। इस बीच में इन्हें जाति प्रमाण पत्र बनाने और शासन की सुविधाओं का अपेक्षित  लाभ भी नहीं मिल पा रहे थे। 
         गिरौदपुरी के समीप ही शिवरीनारायण के आसपास  ग्रामों से हुआ। गौटिया / मालगुजार  परशुराम भतपहरी जो हमारे ही गोत्रज हैं इनके प्रमुख सूत्रधार रहे हैं।   फलस्वरुप यह परिक्षेत्र सतनाम जागरण से वंचित हो गये ।

     बहरहाल अब रामनामी महज ३०० - ४०० के आसपास ही बच गये हैं। न ई पीढ़ी इस परंपरा से काफी दूर हैं। 
        हिन्दूत्व संरक्षण वर्गों द्वारा इस प्रथा को बढावा देने  इनके प्रमुख लोगों को  रामनामी मेला लगाने सुविधाएँ उपलब्ध कराते हैं।  फलस्वरुप दो बार मेला लगाए जाने लगे हैं।
     विगत कुछ वर्षों से  सतनामी व रामनामी  के एकीकरण के लिए धार्मिक व सांस्कृतिक रुप से प्रयास हुए । मुझे भी उक्त आयोजन में सम्मलित होने का आमंत्रण मिला । रामनामी  आचार्यों से हमारी मेल मुलाकात व संक्षिप्त चर्चाएँ हुई । वे लोग शर्मिंदगी भी प्रकट किए और कुछ तो मरने तक इन्हे न उतार सकने की मजबूरी दशा को व्यक्त किए ।
          एक आयोजन में  प्रमुख मुखिया व आचार्यों ने घोषणा किया  कि एक भतपहरी भारद्वाज के चलागन को दूसरे भतपहरी भारद्वाज के संबोधन से समापन करेन्गे ।
            "जब तक जीयत हन एकर भार ल सहिबोन नवा पीढ़ी ज इसन करय।"
   चिन्ता प्रकट किए कि कुछ सत्ता पद प्रभाव  लोलुप और चालाक लोग अब कपड़े पर रामनामी ओढ़कर भजन मेला करने का ढोंग कर रहें हैं ।इन को बंद कराना चाहिए।

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