Tuesday, October 13, 2020

तीन कविताएँ काव्य मेराथन में ‌

#PeetMeMotLeave 

वैश्विक काव्य मेराथन में आज हमारा अंतिम ‌दिवस हैं। इन आठ दिनों में हमने अपनी कविताओं सहित कवि मित्रों / परिजनों में अनिल जांगडे, डां . हेमंतपाल धृतलहरे ,संदीप पांडे , कौतुक पटेल ,शशिबाला भतपहरी, संतोष कुर्रे , लोकेश कन्नौजे, और अजय खुंटे जी को सहभागी बनाए।
       कहे जा रहे हैं कि उक्त हैशटेग से सभी सहभागियों की कविता एकत्र की जाएगी ।फिर अल्मानक‌ नामक रुसी संस्था द्वारा चुनिंदे या सबकी एक एक उत्कृष्ट रचना प्रकाशित की जाएगी।
    बहरहाल वहाँ प्रकाशन हो न हो पर इस के माध्यम से अनगिनत कवियों और कविताएँ पढने समझने‌ का अवसर सोशल मीडिया से मिला ।जो कवि जुड़े उन्हे लगा कि एक अभियान के हिस्सेदारी निभाए यह सुखद एहसास रहा। हर बीता क्षण इतिहास हो जाते हैं। यह एक तरह का इतिहास ही बनाना हो रहे हैं।ऐसे में जब बेहद प्रतिस्पर्धा हो और दूर- दराज तक दृष्टि पड़ते हो उस दरम्यान ,अपने आसपास को भी देख समझ और जोड़ लेने की यह बेहद सरल सहज‌ माध्यम जान पड़ा । हम भी सुगमता से काव्य रुपी मशाल ले मेराथन में दौड़ पड़े ।इस यात्रा में जो मित्र हौसला अफजाई अपनी लाइक कमेन्ट्स के द्वारा करते रहे उनके प्रति आभार ।
       कहते हैं रचना चोरी हो जाएगी इसलिए यु ही सार्वजनिक नहीं करना चाहिए। एक न एक दिन प्रकाशित होने पर वह सबके हो ही  जाते हैं इसलिए बिना नाम के मोह लिए रचना सचमुच में समाजोपयोगी हो ,तो  क्या हर्ज़  हैं? 
        बहरहाल बेफ़िक्र वैश्विक कल्याण की मंगलकामनाएं सहित आज ३ छोटी कविताएँ प्रस्तुत कर अपनी बारी का समापन कर रहे  हैं-
 ।।काव्यार्पण ।।

मेरी कलम की स्याही 
आँसू हैं जो टप-टप चू कर 
काग़ज में कविता बनती हैं
मानवता एंव सत्यता पर 
फिसलते ये कलम 
सिर्फ़ विचार प्रगट करते हैं
मार्क्सवादियों की तरह 
आज हर कवि/ रचनाकार 
सिर्फ़ भावनाओं से शोषित हैं
और जो वाकिय में शोषित हैं
वे लिख नहीं सकते 
गा -बोल नही सकते  
ले देकर जीते हैं
अंत में मर-खप जाते हैं
कार्ल मार्क्स और अंबेडकर की तरह 
ये कम्बख्त कविओं/ वक्ताओं
बहुत सम्मानित होते हैं
उनके वाणी 
महल ड्राइंगरुम में 
सरकारी सभागारों में 
कैद हो जाते हैं 
ठीक कीचड़ के कमल की तरह 
खूबसूरत मंदिर के 
खूबसूरत मूरत के 
खूबसूरत चरण में 
 - डॉ. अनिल भतपहरी 
।।सलाह ।।

सुविधाएँ भी 
उत्पन्न कराती हैं संकट
इसके पहले तो
थे नही कुछ झंझट 
हो गिरफ्त आदमी 
पराधीन हो गये 
सामर्थ्य होते भी 
बलहीन हो गये 
आत्मविश्वास भी 
छीना गया 
ये कैसा डर कर 
जीना हुआ 
एक पेट दो हाथ 
फिर काहे उदास 
अभावग्रस्त पुरखे 
सौ साल जीते थे 
कितने खुशहाल 
कष्टों को पीते थे 
उनके गीत संगीत 
उनकी कथा कहानी 
उनके शौर्य पराक्रम 
उनकी अमृत वाणी 
सोचों क्या ज़रा सा 
हमने ऐसा पाया 
संकट में धैर्य खोकर 
जार-जार आँसू बहाया 
उठो आगे बढ़ो 
करो प्रयाण हिम्मत से 
नायाब नया गढ़ो किस्मत से 
दास न बनो सुविधाओं  के 
बल्कि दास रखों सुविधाओं को‌
मनोरंजन समझना मत‌‌ प्यारे 
 मेरी इ‌न कविताओं को‌
      -डॉ अनिल भतपहरी
।।मज़ा और सज़ा ।।

कहते हैं वो कि उनकी ,मज़ा ही मज़ा हैं
पर सच कहे ज़िन्दगी, सज़ा ही सज़ा हैं

 दिखने  लगा  साफ़ सब, चढ़कर ऊँचाई 
हुए दूर खाली हाथ सब ,तन्हाई ही सज़ा हैं 

यकीन है दूर कर लेगें ,उनकी नाराज़गी 
हर अदा पर उनकी, दिल अपनी रज़ा हैं

उसे पता है कि ये ,आदमी है बेवकूफ़ 
पर न जाने क्युं, उनसे ही वफ़ा हैं

झुके थे सज़दे में तभी ख़बर आया 
आ रही ओ इस तरफ़ हो गई कज़ा हैं 

 जैसा भी है अब तो मस्ती में मलंग है 
आने से उनकी अब रंगीन ही फिज़ा हैं

  -डाॅ. अनिल भतपहरी/ 9617777514

सत श्री ऊंजियार - सदन अमलीडीह रायपुर छत्तीसगढ भारत

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