"बौद्ध तुरि साधना स्थली तुरतुरियां "
आध्यात्मिक साधना एंव योग सिद्धी मे" तुरि" अवस्था को अर्जित करने सुरम्य व एकांत वन प्रांतर अत्यंत उपयुक्त स्थल माने गये है।
इसलिए मध्य भारत में बौद्धमहानगरी सिरपुर के समीप तुरतुरिया नामक जगह में बौद्ध साधक तुरि साधना में लीन रहा करते थे। इसके कारण ही तुरतुरिया नाम पड़ा।
लोक मान्यता में कलकल करती निर्झरणी भी प्रवाहित है जो तुर तुर की ध्वनि करती है इसलिए तुरतुरिया कहते है। शाक्त मत में इन भिछुणियों की प्रतिमाओं को देवी मानकर पूजने लगे है और मातागढ़ एक शक्तिपीठ के रुप में ख्यातिनाम है। वाल्मिकी आश्रम व लवकुश जन्म स्थल के नाम पर चर्चित पौष पूर्णिमा में यहां भव्य मेला लगता है।
बाहरहाल यह सुखद संजोग है कि सतनाम धर्म संस्कृति में भी साधना और समाधि की संस्कृति प्रचलन में अब भी है।
एक सतनाम साखी जो पंथी मंगलभजन के पूर्व गाए जाते है और वे छत्तीसगढ़ी में है उनमें ध्यान की इस तुरि अवस्था का जिक्र है -
लछ्य कोस म गुरु बसे, सुरता दिहव पठाय।
ग्यान तुरि असवार है, छिन आवय पल जाय ।।
विद्जन भावार्थ ग्रहण करे एंव सतनाम पंथ और बौद्ध धम्म में सहजयान की साधना पद्धति की साम्यता को समझे और आत्मसात करे।
गिरौदपुरी तुरतुरिया व सिरपुर एक ही परिछेत्र में महज २५-३० कि मी दायरे मे अवस्थित है ।
।।सतनाम ।।
चित्र - तुरतुरिया में स्थित बुद्ध व भिछुणियों की प्रतिमाएं जो यत्र तत्र बिखरे है में से कुछ झोपड़ियों में शोभायमान है।
No comments:
Post a Comment