Monday, November 26, 2018

सतनामी साहित्य व साहित्यकार

पहले तो सर्वमान्य शब्द को विलोपित कीजिये ।
लोकप्रिय सतनाम साहित्य और गुरु घासीदास चरित गाथा अनेक रचनाकारों ने बड़ी ही अलंकृत ‌और  कलात्मक गद्य पद्य रचनाएं की है।जिसे अनेक ग्रामों में ३-५-७ दिवसीय आयोजन कर सस्वर गायन व प्रवचन करते हैं। समाज में १० महाकाव्य और अनगिनत खण्ड काव्य गद्य पद्य रचनाएँ व विभिन्न पत्र पत्रिकाएं हैं। गुरुघासीदास पर जितना वृहत्तर लेखन हुआ हैं। संभवतः छत्तीसगढ़ के किसी विभूति के ऊपर नहीं हुआ है।और न ही सतनाम धर्म के शेष ३ शाखाओं में हुआ हैं।
          सर्व स्वीकार्य या कहे बहु स्वीकार्य  निरन्तर पठन पाठन और वृहत्त व्याख्या के साथ समय व्यतीत होने के बाद होते हैं। तत्छण कुछ भी नहीं होता। ४- ५ सौ साल बीत जाने के बाद हर लेखन एक दस्तावेज की तरह प्रमाणिक हो जाएन्गे। गीता बाईबिल कुरान रामायण त्रिपिटक इसलिए स्वीकार्य है क्योकि वे उतने प्राचीन और बहुभाष्य व बहु पठनीय हैं।
   यहां तो लोग सतनाम साहित्य से ही अपरिचित है। और जो लिखे है १९६८ नामायण  प्रथम सर्ग आदि खंड मात्र से लेकर श्री प्रभात सागर२०१२ तक वह भी छिटपुट  प्रचारित है को लोग ठीक से  जानते नहीं न इनके प्रतिबद्ध पाठक हैं। बस मुह उठा के बिना गहराई में गये बिना उनके रुपकार्थ जाने निकृष्ठ या चमत्कारिक और किसी के नकल है कह आलोचना कर बैठते हैं ।न खरीद कर पढते हैं। न लेखक कवियों को प्रोत्साहित करते हैं।  ऐसे में उत्कृष्ट सृजन कैसे होन्गे? तब भी हमारे प्रतिभावान साहित्यकार बेहतरी न सृजन कर्म में रत है।वर्तमान नहीं भविष्य के प्रतिभाशाली समीछक और काव्य रसिक उनका उचित मूल्यांकन करेन्गे।क्योकि धर्मग्रंथों और किसी महान व्यक्तित्व के चित्रण को लेखक या रचयिता के समकालीन लोग समझ नहीं सकते न मुक्त कंठ से प्रसंशा कर सकते हैं। रामचरितमानस ‌को‌ तुलसी के समछ उनके बिरादरी ब्राह्मणों द्वारा ही जलाए गये। आज उस एक ग्रंथ से पुरा ब्राह्मण समुदाय पीढ़ी दर पीढी कमा खा रहे हैं। अकेला मानस करोड़ो लोगो को रोजगार दे रखा हैं। जितनी फैक्टरियां नहीं दे सकती।पुरा उप बिहार म प्र जी खा रहा है।
    दुः ख की बात है कि हमारे साहित्यकारों की अकुत परिश्रम का न उचित मान है न सम्मान बल्कि उनके ऊपर केश मुकदमे भी हो रहे हैं। और वे मानसिक पीड़ा से आक्रान्त हो रहे हैं। उनके कोई संरछक नहीं ।

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