"छकड़ी हमरी "
कटते जंगल और ढ़हते पहाड़
सुखती नदिया हो रहे खेत ख्वाह
परणीति मानव की अदम्य है चाह
स्वार्थ के पुतले हैं घोर लापरवाह
ऐसा नही कि सभी है बेपरवाह
कितने ऐसे है जो करते है परवाह
-डा.अनिलभतपहरी९६१७७७७५१४
जुनवानी -अमलीडीह , रायपुर छ.ग.
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