नासमझ आने वाली बातें करना ही
बौद्धिकता है
जहां बोलने की जरुरत पर चुप रहना ही
नैतिकता है
पुरातन परंपराओं का उत्सव मनाना ही
धार्मिकता है
उन आदिम प्रथाओं को मानना ही
प्राथमिकता है
किसी का हस्तक्षेप न करना ही
सज्जनता है
मित्रों क्या ऐसे ही जीवन यापन करना ही
स्वतंत्रता है ?
-डा. अनिल भतपहरी
No comments:
Post a Comment