Saturday, November 10, 2018

अब का होही

"अब का होही"

     गाँव के छोटे -बड़े  सब्बों किसान -बनिहार मन के  धर- दुवार, बारी -बखरी,बियारा- सियारा ( खेत- खलिहान) के चउक- चाकर रक्बा ल देख परप्रान्तिक मन जर भुन जथे! भले घर खदर -खपरा के छानही आय फेर लगथे कि यहू झन रहय। उनमन ल परपरी घर ले हे ।रकम- रकम के उदिम करत हे इनकर भुंइय्या नगाय के।  इकर अनाप -सनाप संउक चढ़ा के भले ओमन  बिसा लेवय । जुआ -मंद ,नाचा -पेखन, दान -दछिणा के ओड़हर करके या लाटरी रकम दुगुना करे के लालच ये बीमा -सीमा चिटफड कंपनी देखाथे। जबर  जाल फैलाके उखर  ठग फुसारी करके छत्तीसगढ़िया मन लूटत हवे।ओ दिन के बात आय समारु बतात रहिस-
    एक झन नवा  बड़े  बंगला बनाय  परप्रान्तिक ह जोन उकरे जगा ल बिसाके बसे रहिस, तेने हर कहे लगिस-  लाखों रुपये लगाकर यह जमीन खरीदे और उधर देखे गाँव -गाँव मे अतिक्रमण है। और तो और  ये लोग शहरों मे झोपड़ी बनाकर बेजा कब्जा कर रखे है। अतिक्रमण करना क्या इनके जन्मसिद्ध अधिकार है? शासन-प्रशासन नाम की चीज है भला? गाँवो मे इनके पास कितनी जमीने है ये लोग एकड़  मे नापते है । एक हमलोग है जिनके पास फीट मे जमीन है।वह भी जी तोड़ मेहनत कर। बिना सांस टोरे कहिते गिस...
    हुकारु देत समारु कहिस - "संगी‌ पुरखौती जमीन जायदाद आय खेती बारी करके जीयत खात हवन।"
भले ५- १० एकड़ हे फेर बपुरामन न मन के खा सके न पहिन ओढ़ सके।सरग भरोसा जीयत हे।कोनो -कोनो ह भागमानी हे जेकर नहर -नाली हवे। तभो ले  कर्जा म बुड़े पातर -पनियर ,अम्मट -बिच्छल समे नाहकत हे।कत्कोन अइसे हे जोन गाय -गरु बुढ़ात दाई -ददा अउ ये माटी के मोह छाड कहु कमाय- खाय तको नी जा सके।भूमिहीन बनिहार हाथ -गोड़ के भरोसा कतकोन ठउर- ठीहा किन्दर आथे! फेर ये किसान भाईमन त अपन तहसील जिला तक नइ देख सके। बैमारी सैमारी म भले अस्पताल म भरती होय शहर पहर देखे संउक पुरा होथय।
     लधु /सीमान्त ,किसान मन के मरना हे न मरे न मुटाय।उन्खर अनदेखनई झन करो।उकर पुरखौती जिनिस म नजर -ढीठ त झन लगाव।
   दबकावत ओहर कहिस-  अरे ऐसे कैसे चलेगा ? सब नपेन्गे सभी का अट्टे- पट्टे बनेन्गे !और तमाम अतिक्रमण हटेन्गे !जो है उनपर टैक्स लगेन्गे! आखिर नियम- कानून जैसे कोई चीज भी इस देश में ?
   बख खाय सुनत समारु  कहे लगिस-  "बात तो सोरा आना सच हवय  कि  नियम कानून ल त  सब ल समान मानना चाही? ओ सबो बर हे,फेर पुरखौती ...
  अरे  का पुरखौती ? क्या कोई बिना पुरखे के है? सबके अपने पूर्वज है और सबको उन पर नाज है। अब तो समान कानून- व्यवस्था पर नाज होना चाही।
   समारु के बक्का नइ फुटिस का गोठियातिस ।ओकर बोली के का चिबोली देतीस ।कठुवाय परे हे ..भंजावत .हे मनेमन . ..अब का होही?

No comments:

Post a Comment