"लछ्मी "
सुनेब म आथे कि उन
ऐश्वर्यवान ईश्वर के सुवारी ये
तभोच ले बौपरी हर
शरण मं परे
ओखर चरणदासी ये
जेन पाय तेन धांध- छपक लेथे
बिज्जक मार गांठ म गठिया लेथे
भले नांव अन,धन ,दोगानी, गाय -गरु
फेर चलायमान जुच्छा अउ निच्चट हरु
साल म एकेच पइत
सुरहुत्ती के दिन
किंदरथे घरो-घर
ते पाय के
उन ल रिझाय
आनी -बानी के
पहिने -ओढ़े
सजे -सम्हरे
करत सुवागत
अंगना डेरौठी ल
झाड़े - बहारे
सुघ्घर छूही पोते
चंउक पुराए
दीया जलाए
फटाका फोरे
अगोरा रहिथे
जेवनाके
खाए- खुवाए
खूशी मनाए...
उच्छल - मंगल
छकल- बकल
के सेती पाके ओड़हर
लछ्मी रुसाके
सेठ- साहूकार
घर पहिद जाथे...
धनतेरस पुष्य नछत्र
के रच फांदा
गुप्ती म जतनाय
रुपया लूसाथे
गाय -गरु
खेती बिसार
गोवर्धन के जगा
बैपारी बर
सोनवर्धन करत
सूद म रुपया बाटे-काढ़े
ये जग मढ़ाथे
मंद -मंउहा म मोकाय
गांजा -भांग म भकवाय
कुकरा बोकरा ल पुजवाय
जुआ -चित्ती म रमड़ाय
हार के धन दोगानी
अपन करम ल ठठाय
लछ्मीपूजा के सेती
बारा महिना के उपजाय
लछ्मी ल बेंच करजा चुकाय
देवारी मं लोख्खन के
ये का चलागन हे
सिरतो दिवाला निकल जाथे
ये का तिहार पावन हे ?
-डा. अनिल भतपहरी
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