Sunday, November 25, 2018

क्या सतनामी हिन्दू है ?

सतनामियों से सवर्ण हिन्दू सांस्कृतिक व धार्मिक प्रतिस्पर्धी के नाम पर द्वेषपूर्ण भाव से अस्पृश्यता का व्यवहार करते हैं। जबकि शेष अन्य जातियों से उनके निम्नतर व अस्वच्छ पेशा यथा चर्म शिल्प , सफाई कार्य कपडे धुलाई बाल कटाई आदि के चलते अस्पृश्यता का व्यवहार करते हैं।
   इस तरह जिन जातियों से अस्पृश्यता का व्यवहार किये जाने लगे उसे  डिस्प्रेस्ड क्लास या अनुसुचितजाति वर्ग कहे गये मराठी भाषा में उसे  दलित कहे गये जिनका शोषण व दमन हुआ।
ये लोग आज भी हिन्दू के अभिन्न  जाति है और उनके सारे देवी देवता उपसाना मेले पर्व यथावत मानते हैं और उनके विशिष्ट कुल देवता है। समय समय पर चमार महार मेहतर नाई धोबी आदि जिसे "पवनी जातिया " होने का दर्जा प्राप्त है का महत्व होते है उसे दान दछिणा देते वे सभी परस्पर जुडे हुए हैं।
   परन्तु सतनामी इससे भिन्न है। वे जाति विहिन पंथ है और तमाम हिन्दू रीति नीति संस्कृति के इतर उनके अपने विशिष्ट जीवन पद्धति व दर्शन है।
    उनके पारा मोहल्ला से लेकर तालाब के धाट और शमसान भूमि तक अलग है।
    मतलब किसी भी दृष्टिकोण से सतनामी हिन्दू नहीं हैं। बल्कि आजकल कुछ लोग राजनैतिक महत्वाकांक्षा और संध शाखा से जुडे होने के कारण सतनामियों में हिन्दूत्व भाव तेजी से भर रहे हैं। उनकी महिलाए संतोषी वैभव लछ्मी करवा चौथ वट सावित्री आदि मनाने लगी है। और लोग गणेश दुर्गा पूजा भी करने व स्थापित करने लगे हैं। सरकारी दस्तावेज़ मे धर्म  हिन्दू और जाति सतनामी लिखने बाध्य भी है।
(तो दूसरी ओर आर पी आई  बसपा से जुडे होने कारण बौद्ध बनने की ओर अग्रसर है।और गरीबी व शिछा स्वास्थ्य गत कारणो से ईसाइयों के सेवा भाव से प्रभावित ईसाई तक  बनने लगे हैं। (
क्योकि सतनाम धर्म नहीं है। यदि धर्म / पंथ कालम होते तो रिलिजन कालम मे सतनाम लिखते और जाति में सतनामी ।
     बाहरहाल अनु जाति वर्ग मे प्राप्त  सुविधाएं हेतु तत्कालीन नेतृत्व सतनामी को अनु जाति वर्ग में रखा और आरछण के हकदार हुए।इनके लाभ तो मिला पर सामाजिक रुप से हेय दृष्टि और हिकारत ही मिला। सुविधाएँ मिलने अकर्मण्यता बढी और निरंतर तिरस्कार से उन्माद प्रमाद से सतनामियों की प्रखरता और स्वाभिमान गिरते गया।वे नशे जुए  और अन्य छेत्र में प्रविष्ट होते गये।लाभ तो चंद लोगो बमुश्किल २-५ लाख लोगों को मिला।पर ३०-३५ सतनामियों की आज भी बद से बदतर है।वे लोगो की स्थिति शेष  दलितों जैसे ही नीरिह है। उन्हे वे तमाम सुविधाएं चाहिए।इनके बिना ऊपर उठ पाना या मुख्यधारा मे आ पाना मुस्किल है।

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