Friday, November 30, 2018

बाज

आपके वास्ते छकड़ी हमरी

ऐसी क्या  बात हुई  कि आप हमसे नाराज हो गये।
संग मधुर गीत गाते रहे  पर डरावनी आवाज हो गये।।
पगड़ी ही तो थी पर कैसे तुम्हारे सर पर ताज हो गये।
मिलकर गढें सुराज कहें पर तुमतो राजाधिराज हो गये।।
पीकर सत्ता की मद नुक्कड़ पर बेसुध दारुबाज हो गये ।
चिड़ियों के संग चहकते अब उनके लिए बाज हो गये।।
     -डा. अनिल भतपहरी

चारिकाएं

चौथा चरण संधम है ...पर बौद्ध संस्कृति में प्रायः तीन का ही उल्लेख है।
इस तरह
सत्यम शरणम गच्छामि
बुद्धम शरणम गच्छामि
धम्मम शरणम गच्छामि
संघम शरणम गच्छामि
सत्य के शरण में  ग्यान( प्रग्या )के शरण में  धम्म धारणीय सद्गुण के शरण में और अंत ऐसे सद्गुणियों वाली संध में शरण में जाता हू .... जहां लोक कल्याण होगा और पथिक को निर्वाण मिलेगा ।
    ।।सच्चनाम - सतनाम ।।

Wednesday, November 28, 2018

मीठ छत्तीसगढ़ी

संस्कृति

आपके वास्ते छकड़ी हमरी ....
         
अपनी संस्कृति पर नाज़ सबको और है बेहद प्यार ।
पर जरुरत है दुसरों की संस्कृति से भी करना प्यार ।।
कब तक मैं-मैं करते रहें हम‌ पर भी हो तनिक विचार ।
तब सुदृढ़ होंगे लोकतंत्र हमारी और आपसी व्यवहार ।।
विविधताओं की मजबूत नींव पर टिका है राष्ट्र रुपी मीनार
ध्वज तिरंगा लहरे स्वच्छंद गगन पर और मान दे  संसार।।

     -डा. अनिल भतपहरी,9617777514

चित्र -बालसमुन्द द्वीप  पलारी का खूबसूरत गार्डन

छत्तीसगढ़ी

छकड़ी हमरी

मंदरस मिंझरे मीठ हवे हमर भाखा छत्तीसगढ़ी ।
सिरतोन कहत हंव नोहय हांसी मजाक दिल्लगी ।।
कोनो कहिस जिमीकांदा मही के जस अमसुरहा कढ़ी ।
जुच्छा साग के सेती महु मिझांर देव चिटिक बोरे बासी।
कोनो कथे बाप खेत -खार त महतारी हे गांव-गली ।
कथा कहानी गीत भजन चोहल  हवे आनी-बानी ।।
रंगे छत्तीसों रंग म गीता कुरान बाइबिल गुरुबानी  ।
इकरे भरोसा तीन परोसा चलथे इंहा के जिनगानी ।।
     डा. अनिल भतपहरी

Tuesday, November 27, 2018

गिरौदपुरी सत्धाम

सतनामियों सहित अनेक मुख्यधारा से वंचित समाज का अपना कोई सामूहिक आस्था प्रकट करने हेतु न तीर्थ था न संत महात्मा ।शुक्र है कि आज गिरौदपुरी चटुआ खडुआ भंडार तेलासी और उनके नव रावटी स्थल हैं। जहां लोग अपनत्व भाव लेकर जाते आते हैं। और सामूहिक रुप से एकत्र होकर केवल आस्था ही नहीं बल्कि  अपनी संगठनिक शक्ति और लाखो लोग स्व नियंत्रित सद्भाव का प्रदर्शन करते हैं।
           तो इस तरह जैसे अन्य वैश्विक धर्म इसाई मुस्लिम बौद्ध हिन्दूओ का जुडाव येरुशलम वेटिकन सिटी मक्का मदिना बोधगया सारनाथ  या लामाओ के बुद्ध मैनेस्ट्री में होते हैं। सिखो का अमृतसर  और हि‌न्दुओ का चारो कुंभ मे जमवाडा होते है वर्तमान में उसी तरह गिरौदपुरी सतनाम धर्म के महान तीर्थ धाम के रुप में आकार ले चूका है देश  भर से श्रद्धालु आते हैं। यहा तक विदेश से भी आने लगे हैं। यह सतनामियों की बहुत बडी उपलब्धि है।  और यह स्व स्फूर्त हुआ हैं। लाखो लोगो की करोड़ो रुपये जो अन्य मेले मड ई  खेल तमाशे में नष्ट होते थे आज गिरौदपुरी में वह सात्विक मंगल भजन सत्संग प्रवचन और स परिवार प्रकृति के सानिध्य में सहभोज करते तीन दिन सधनात्मक जीवन जीते आत्मविभोर होते हैं। यह  अप्रतिम मंजर है।इसे ब्राह्मण वाद या अंधविश्वास आदि के साथ जोड़कर न देखे। ऐसा देखने समझने वाले सांस्कृतिक व आध्यात्मिक रुप से कृपण व आलोचना प्रवृत्ति के लोग है जो भ्रमित व सशंकित है।
   हां आपार भीड़ में कुछ नादां भोला भाले और कुछ अंध श्रद्धालु भी मिलेन्गे पर वे अपवाद और उनके निम्नतर बौद्धिक स्तर है।उन्हे नजर अंदाज करना चाहिए।
      ।।सतनाम ।।

Monday, November 26, 2018

सतनामी साहित्य व साहित्यकार

पहले तो सर्वमान्य शब्द को विलोपित कीजिये ।
लोकप्रिय सतनाम साहित्य और गुरु घासीदास चरित गाथा अनेक रचनाकारों ने बड़ी ही अलंकृत ‌और  कलात्मक गद्य पद्य रचनाएं की है।जिसे अनेक ग्रामों में ३-५-७ दिवसीय आयोजन कर सस्वर गायन व प्रवचन करते हैं। समाज में १० महाकाव्य और अनगिनत खण्ड काव्य गद्य पद्य रचनाएँ व विभिन्न पत्र पत्रिकाएं हैं। गुरुघासीदास पर जितना वृहत्तर लेखन हुआ हैं। संभवतः छत्तीसगढ़ के किसी विभूति के ऊपर नहीं हुआ है।और न ही सतनाम धर्म के शेष ३ शाखाओं में हुआ हैं।
          सर्व स्वीकार्य या कहे बहु स्वीकार्य  निरन्तर पठन पाठन और वृहत्त व्याख्या के साथ समय व्यतीत होने के बाद होते हैं। तत्छण कुछ भी नहीं होता। ४- ५ सौ साल बीत जाने के बाद हर लेखन एक दस्तावेज की तरह प्रमाणिक हो जाएन्गे। गीता बाईबिल कुरान रामायण त्रिपिटक इसलिए स्वीकार्य है क्योकि वे उतने प्राचीन और बहुभाष्य व बहु पठनीय हैं।
   यहां तो लोग सतनाम साहित्य से ही अपरिचित है। और जो लिखे है १९६८ नामायण  प्रथम सर्ग आदि खंड मात्र से लेकर श्री प्रभात सागर२०१२ तक वह भी छिटपुट  प्रचारित है को लोग ठीक से  जानते नहीं न इनके प्रतिबद्ध पाठक हैं। बस मुह उठा के बिना गहराई में गये बिना उनके रुपकार्थ जाने निकृष्ठ या चमत्कारिक और किसी के नकल है कह आलोचना कर बैठते हैं ।न खरीद कर पढते हैं। न लेखक कवियों को प्रोत्साहित करते हैं।  ऐसे में उत्कृष्ट सृजन कैसे होन्गे? तब भी हमारे प्रतिभावान साहित्यकार बेहतरी न सृजन कर्म में रत है।वर्तमान नहीं भविष्य के प्रतिभाशाली समीछक और काव्य रसिक उनका उचित मूल्यांकन करेन्गे।क्योकि धर्मग्रंथों और किसी महान व्यक्तित्व के चित्रण को लेखक या रचयिता के समकालीन लोग समझ नहीं सकते न मुक्त कंठ से प्रसंशा कर सकते हैं। रामचरितमानस ‌को‌ तुलसी के समछ उनके बिरादरी ब्राह्मणों द्वारा ही जलाए गये। आज उस एक ग्रंथ से पुरा ब्राह्मण समुदाय पीढ़ी दर पीढी कमा खा रहे हैं। अकेला मानस करोड़ो लोगो को रोजगार दे रखा हैं। जितनी फैक्टरियां नहीं दे सकती।पुरा उप बिहार म प्र जी खा रहा है।
    दुः ख की बात है कि हमारे साहित्यकारों की अकुत परिश्रम का न उचित मान है न सम्मान बल्कि उनके ऊपर केश मुकदमे भी हो रहे हैं। और वे मानसिक पीड़ा से आक्रान्त हो रहे हैं। उनके कोई संरछक नहीं ।

जंगल नदिया पहाड़

रंगीलो राजस्थान

रंगीलो राजस्थान
बनकर गया मेहमान
मिला बहुत सम्मान
जगा मन में अभिमान
करुं कैसे उनका बयान
जाकर देखें राजस्थान ......

  -डा. अनिल भतपहरी

Sunday, November 25, 2018

लार्ड मैकाले

ब्रिटिश कालीन भारतीय समाज में सर्व शिछा हेतु १८३५-३६ में लार्ड मैकेले ने प्रस्ताव लाया ।फलस्वरुप अनेक जगहों पर स्कूल खुलना आरंभ हुआ। और अछर ग्यान से अपरिचित जनों के प्रथम पीढी साछर होने लगे ।इस तरह शिछा का द्वार अंग्रेजों के खोलकर सर्व सुलभ कराए ।
     
    वैसे कतिपय भारतीय विचारक लार्ड मैकाले को दोषी बताते है कि वे गुलाम और काले अंग्रेज बनाए क्योकि वे  भारतीय को चपरासी  क्लर्क  बनाने ही साछर कर गुलाम बनाए रखने की सडयंत्र किए।ऐसी  बाते कर उनकी आलोचना करते हैं।
    परन्तु  उनके कारण ही गुलाम व निरछर लोग साछर होकर अपने अंदर स्वाभिमान भरे और आजादी का मतलब समझा।
     इस तरह इन्ही चपरासी क्लर्क चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी लोग भारत में क्रांति की बिगुल फूके और जनमानस को आजादी का मतलब समझाए। अधिकतर बडे सामंत, पंडे -पुजारी  या सुविधाभोगियों  ने अंग्रेजों के रहकर प्राय:  उनकी  चाटुकारिता और  गुलामी ही की।
    क्रांति तो इन चपरासी  क्लर्कों व सैनिकों ने की। उनमें मतादीन व मंगल पांडे खुदीराम बोस जैसे लोग थे। उन्हे नमन ...
लार्ड मैकाले के नीतियों के  चलते ही ज्योतिबा फूले ,नारायणा गुरु , डा अम्बेकर, पेरियार, महंत नन्दू नारायण , महंत नयनदास महिलांग रतिराम मालगुजार नकूल ढीढी जैसे लोग साछर हुए ।जबकि गुरु अगम दास निरछर थे ।(मिनीमाता सातवी उत्तीर्ण  साछर थी )
    इन्हीं साछरों ने समाज में बौद्धिक  क्रांति की ।फलस्वरूप कलान्तर  में राजनैतिक चेतना  आई  और इस तरह समग्र विकास के मार्ग प्रशस्त हुए।
      इन सबमें मैकाले की शिछा नीति का ही प्रभाव रहा। विचार कीजिए यदि वे भारत में शिछा द्वार नहीं खोलते तब क्या होता ?
      और क्या इतनी जल्दी स्वतंत्रता आन्दोलन होते व अग्रेज देश छोडते सामंत व उनके मातहत पंडे- पुजारी, व्यापारी क्या आम प्रजा जनों के कल्याण के सोचते।समाज मे जो अभुतपूर्व  बदलाव  व नवजागरण आया क्या वह आ पाते ? कि आज भी धर्म कर्म और अंध विश्वास के मकड़जाल में फंसे किसी लाल बुझक्कड़ो के मार्ग दर्शन में नारकीय जीवन जीने विवश होते।
      इसलिए अंग्रेज़ी सत्ता और उनका शोषण चक्र भले निन्दनीय हो ।पर इन सामंतों और उनके करिन्दों का शोषण नारकीय स्तर से कतई कम नहीं था। ऐसी मनोवृत्ति तो आज भी है कि लोग हमारे गुलाम रहे । और वे लोग अब भी देश की  संप्रभुता पर एकाधिकार चाहते है तथा संविधान प्रदत्त समानता के अधिकार के प्रतिरोधी हैं। इनसे तो भला वह मैकाले है जो शिछा व अछर ग्यान के चलते लोगो में चेतना व स्वाभिमान जगाए ।तथा दोनो जगने से देश व समाज  में नवक्रांति लाए ।
     वर्तमान साछर व सछम होते पीढ़ीयों को लार्ड मैकाले के प्रति आभारी होना चाहिए।
  

क्या सतनामी हिन्दू है ?

सतनामियों से सवर्ण हिन्दू सांस्कृतिक व धार्मिक प्रतिस्पर्धी के नाम पर द्वेषपूर्ण भाव से अस्पृश्यता का व्यवहार करते हैं। जबकि शेष अन्य जातियों से उनके निम्नतर व अस्वच्छ पेशा यथा चर्म शिल्प , सफाई कार्य कपडे धुलाई बाल कटाई आदि के चलते अस्पृश्यता का व्यवहार करते हैं।
   इस तरह जिन जातियों से अस्पृश्यता का व्यवहार किये जाने लगे उसे  डिस्प्रेस्ड क्लास या अनुसुचितजाति वर्ग कहे गये मराठी भाषा में उसे  दलित कहे गये जिनका शोषण व दमन हुआ।
ये लोग आज भी हिन्दू के अभिन्न  जाति है और उनके सारे देवी देवता उपसाना मेले पर्व यथावत मानते हैं और उनके विशिष्ट कुल देवता है। समय समय पर चमार महार मेहतर नाई धोबी आदि जिसे "पवनी जातिया " होने का दर्जा प्राप्त है का महत्व होते है उसे दान दछिणा देते वे सभी परस्पर जुडे हुए हैं।
   परन्तु सतनामी इससे भिन्न है। वे जाति विहिन पंथ है और तमाम हिन्दू रीति नीति संस्कृति के इतर उनके अपने विशिष्ट जीवन पद्धति व दर्शन है।
    उनके पारा मोहल्ला से लेकर तालाब के धाट और शमसान भूमि तक अलग है।
    मतलब किसी भी दृष्टिकोण से सतनामी हिन्दू नहीं हैं। बल्कि आजकल कुछ लोग राजनैतिक महत्वाकांक्षा और संध शाखा से जुडे होने के कारण सतनामियों में हिन्दूत्व भाव तेजी से भर रहे हैं। उनकी महिलाए संतोषी वैभव लछ्मी करवा चौथ वट सावित्री आदि मनाने लगी है। और लोग गणेश दुर्गा पूजा भी करने व स्थापित करने लगे हैं। सरकारी दस्तावेज़ मे धर्म  हिन्दू और जाति सतनामी लिखने बाध्य भी है।
(तो दूसरी ओर आर पी आई  बसपा से जुडे होने कारण बौद्ध बनने की ओर अग्रसर है।और गरीबी व शिछा स्वास्थ्य गत कारणो से ईसाइयों के सेवा भाव से प्रभावित ईसाई तक  बनने लगे हैं। (
क्योकि सतनाम धर्म नहीं है। यदि धर्म / पंथ कालम होते तो रिलिजन कालम मे सतनाम लिखते और जाति में सतनामी ।
     बाहरहाल अनु जाति वर्ग मे प्राप्त  सुविधाएं हेतु तत्कालीन नेतृत्व सतनामी को अनु जाति वर्ग में रखा और आरछण के हकदार हुए।इनके लाभ तो मिला पर सामाजिक रुप से हेय दृष्टि और हिकारत ही मिला। सुविधाएँ मिलने अकर्मण्यता बढी और निरंतर तिरस्कार से उन्माद प्रमाद से सतनामियों की प्रखरता और स्वाभिमान गिरते गया।वे नशे जुए  और अन्य छेत्र में प्रविष्ट होते गये।लाभ तो चंद लोगो बमुश्किल २-५ लाख लोगों को मिला।पर ३०-३५ सतनामियों की आज भी बद से बदतर है।वे लोगो की स्थिति शेष  दलितों जैसे ही नीरिह है। उन्हे वे तमाम सुविधाएं चाहिए।इनके बिना ऊपर उठ पाना या मुख्यधारा मे आ पाना मुस्किल है।

होड़

"संसो "

"संसो "

अभीच ले मोला  अबड़ संसो होत हवे भाई
अवइय्या दस बीस बछर मं  अलकर होही
काबर कि बड़े-बड़े मूर्ति बन जाही
त "हवई जहाज" कइसे उड़ियाही ?
परदेशिया मन इहा आए बर  डराही
काबर कि उकर जिहाद ओमा टकराके
भंग -भंग ले लेसा  के जर- बर जाही .
बिचारा मन के हाड़ा गोड़ा के पता नई चलही

-संसो करैय्या डां.अनिल भतपहरी

Thursday, November 22, 2018

स्वतंत्रता क्या है

स्वतंत्रता

नासमझ आने वाली बातें करना ही
बौद्धिकता है
जहां बोलने की जरुरत पर चुप रहना ही
नैतिकता है
पुरातन परंपराओं का उत्सव मनाना ही
धार्मिकता है
उन आदिम प्रथाओं को मानना ही
प्राथमिकता है
किसी का हस्तक्षेप न करना ही
सज्जनता है
मित्रों क्या ऐसे ही जीवन यापन करना ही
स्वतंत्रता है ?

      -डा. अनिल भतपहरी

Wednesday, November 21, 2018

साहिल भी करता है इशारा

Hamri chhakadi

सुधि पाठको हेतु  "छकड़ी हमरी" -४

किए जाते है हर काम सोच-समझकर ।
पर कुछ लोग रह जाते अक्सर उलझकर।।
होते है सफल जो चलते है जरा सम्हलकर ।
सुख-दु:ख,जीत-हार में रहते है वे निर्विकार ।।
मंजिल‌ उनकी होती सदा जो जीते हर विकार ।
बनते  हैं प्रेरक  उनके हर  कर्म और  सद्विचार।।

               - डां . अनिल भतपहरी,९६१७७७७५१४

हमरी छकड़ी -४

सुधि पाठको हेतु  "छकड़ी हमरी" -४

किए जाते है हर काम सोच-समझकर ।
फिर भी लोग रह जाते अक्सर उलझकर।।
होते है सफल जो चलते है सम्हलकर ।
सुख-दु:ख, जीत-हार में रहते है निर्विकार ।।
मंजिल‌ उनकी जो जीत ले हर विकार ।
प्रेरक बनते उनके हर कर्म और सद्विचार।।
  - डां . अनिल भतपहरी

Monday, November 19, 2018

छकड़ी हमरी - २

"छकड़ी हमरी "

कटते जंगल और  ढ़हते पहाड़
सुखती नदिया हो रहे खेत ख्वाह
परणीति मानव की अदम्य है चाह
स्वार्थ के पुतले हैं घोर लापरवाह 
ऐसा नही कि सभी है बेपरवाह
कितने ऐसे है जो करते है परवाह

-डा.अनिलभतपहरी९६१७७७७५१४
   जुनवानी -अमलीडीह , रायपुर छ.ग.

Friday, November 16, 2018

तीन महापुरुष की अन्तेष्ठी

बुद्ध का मृत देह  था उसे जला दिए गये और अस्थियाँ केश आदि संरछित कर लिए गये ताकि ऐसा विलक्षण व्यक्ति होने का साछ्य रहे।शायद यह उनके इच्छानुसार ही हुआ। वे निब्बान पाए  ... अनगिनत  स्तुप बने अवशेष रखे और उनकी पूजा अर्चना शुरु हो गये यानि  कि शव साधना मृतक पूजा.....
      कबीर मगहर में प्राण त्यागे पर देह फूल में बदल गये हिन्दू मुस्लिम उन्हे बाट लिए ....  और अनगिनत मठ बने यहां भी समाधि व मठ में चादर पोशी होने लगे शव व मृतक पूजा जारी ही हैं ...
      गुरुघासीदास १८५० के बाद नहीं दिखे वे कहा गये कि मृत्यु हुए कि किसी जानवर या सडयंत्र  आदि का शिकार अब भी अग्येय हैं। केवल जनश्रुति है कि वे बंगोली में एक और सहिनाव घासीदास के साथ समाधि लिए ...
लोग इसे सच नहीं मानते
  कुछ लोग कहते हैं कि बलौदाबाजार लवन के बीच वे दिखे .... उसे तलाशने / मनाने महानदी तट   तक परिजन गये ..पर नहीं मिला ... क्या वह नदी में प्रवाहित हो गये या किसी तरह वहां से निकल अपने प्रिय  जन्म स्थल गिरौदपुरी गये कि साधना स्थल छाता पहाड़ जनश्रुति है कि वे वहां जाकर ही ध्यान करते शरीर त्यागे जिसे कोई न देख पाए इसे ही अछप या अन्तर्ध्यान जैसे अलंकृत शब्द से जनमानस व्यवहृत किए। छाता पहाड की उस कंदरा को सतलोकी गुफा कहते हैं। और संयोगवश वह तीन भागो में विभक्त हैं। बीच में जैतखाम स्थापित हैं। लाखो सर वहां श्रद्धा से झुकते हैं।
     पर उनके देह  न मिलने पर कोई अन्तेष्टी क्रिया नहीं हुए ।अन्यथा एक  समर्थ राजा बालकदास अपने पिता के कुछ न कुछ अन्तेष्टी करते ...  और लाखो श्रद्धालु जरुर उनमे जुटते पर ऐसा नही हुआ।
    उनकी प्रयुक्त सामाग्री खडाउ सोटा कंठी जरुर उनकी पुत्री  सहोद्रामाता ने  संरछित  किए हैं( आज वही उनके अप्रतिम साछ्य है जो भंडारपुरी के समीप‌ ग्राम  डुम्हा के दीवान परिवार  /गुरु पुत्री सहोद्रामाता  के पास  सुरछित है।) वह पुरानी होन्गे और जो धारण किए रहे हो वह न मिला या हो सकता हैं। वह वही हो( भले  देह न मिला  )और उनकी ही प्रतिकार्थ श्रद्धा वश  पूजा होते हैं। क्योकि गुरुघासीदास असधारण थे उन्हे साधारण करने कोई अशोभनीय बाते नहीं की जा सकती ।न करना चाहिए ...
      यानि की तीन महापुरुषो की अंत और उनके अवशेष से यह समझा जाय कि जो विलछण व असाधारण होते हैं। उनके संदर्भ में विशिष्ट क्रिया या  अलंकृत वृतान्त बनते ही हैं।
    ।।सतनाम ।।

Thursday, November 15, 2018

साइत

" साइत "
सामंत देखें
पंडे-पुजारी देखें
छोटे बडे व्यापारी देखे
कभी यदा-कदा
कर्मचारी अधिकारी देखें
नामदार और कामदार भी देखें
पर वे कभी दिखे नही
जिन्हे होना चाहिए
पर इस बार साइत है
कुछ ऐसी तैय्यारी हो
जिसके लिए जो है 
उनकी ही बारी हो

मंजा अउ सजा

"मजा अउ सजा"

    जेन हड़िया रांधही
      केरवछ तो लगही
       जेन रद्दा रेंगही
        वहीच तो हपटही
         बिन गिरे कोनो
           तो उठय नही
            सुते बिन कोनो
             तो जगय नही
              फेर जतके सजा
                दगहा रहे अउ
                  हपटे सुते मं हे
                    ओतके मंजा
          ‌           सफा रहे अउ
                      जागे उठे मं हे
        
                 -डा.अनिल भतपहरी, ९६१७७७७५१४
सी- ११ ऊंजियार- सदन सेंट जोसेफ टाऊन अमलीडीह

Wednesday, November 14, 2018

मजा अउ सजा

"मजा अउ सजा"

    जेन हड़िया रांधही
      केरवछ तो लागही
       जेन रद्दा रेंगही
        वहीच तो हपटही
         बिन गिरे कोनो
           तो उठय नही
            सुते बिन कोनो
             तो जगय नही
              फेर जतके सजा
                दगहा रहे अउ
                  हपटे सुते म हे
                    ओतके मजा
          ‌           सफा रहे अउ
                      जागे उठे मं हे
        
                 -डा.अनिल भतपहरी
चित्र - मैसुर विश्वविद्यालय कर्नाटक
(हिमाचली टोपी और मैसुर सिल्क सर्ट में उत्तर - दछिण अखिल भारतीय छवि )

Sunday, November 11, 2018

बातें है बातों में क्या

बातें है बातों में क्या ?

इसके बावजूद भी लोग बातों से ही परस्पर जुड़े  है और बात है तभी सब साथ है।बातें किसी से बंद कर देखे ... वह तो खार खाए बैठे है आपसे अनबोलना होने।
    लोग बात -बात पर ही बनते बिगड़ते है। और बातें ही है जो जोडते और तोड़ते है। इसलिए बातों को युं ही नजर अंदाज न करे  यह कहकर कि "बातों में क्या है?
     बातों में ही सबकूछ है ।वर्तमान  सरकार बातें न होने और मौन रहने के प्रतिरोध में बम्फर जीत से सत्तासीन हुई। इसलिए बातें करते रहने की अखिल भारतीय व्यवस्था किए है ।और हर हफ्ते मन की बातें "राष्ट्रीय प्रवचन " बन चूके है। राष्ट्रीय गान की जमाने लद गये अब हर तरफ राष्ट्रीय प्रवचन की धूम मची है।और जनता उसमें निमग्न है।
    कहते है पहले रामायण आते देश भर की सड़के कर्फ्यु लगने सा  वीरान हो जाते ,जहां से चोरी डकैती व स्मगलिंग की समाने आते- जाते । आजकल स्कूल पंचायत व सरकारी दफ्तरों में राष्ट्रीय प्रवचन श्रवण कराने रेडियों टी वी की व्यवस्था कराने और उन पर करोडो धपला करने का  प्रसार भारती का नायाब खेल हुआ।और इस तरह वे मरणासन्न अवस्था से उबरे ।फिर भी दूरदर्शन और आकाशवाणी जैसे सफेद हाथी सैकडो चैनल व एफ एम के बीच कैसे जिन्दा है या जिन्दा रखे गये अन्वेषण का विषय हो सकते है।
     बाहरहाल बातों ही बातों मे बात चली तो बातें कहां से कहां पहुंच गई ।लोग कितने बातुनी होते है कि बातों की बतड़ग करने या फिर अपनी बातें मनवाकर ही दम लेते है।या फिर दम तोड़ देते है। दम तोड़ने वाले तो बहुधा कम ही होते है अक्सर  बतक्कड़  लोग हार नही मानते और मान भी लिए तो स्वीकारते नही। फिर भी लोग क्योकर यह कहते फिरते है कि सोनार की सौ और लोहार एक ।
कुछ अल्पभाषी बतक्कड़ो को अपनी एक बात  से लोहार जैसे बड़ा धन चलाकर सोनार की सौ टकटकी हथौड़ी की चोट से अधिक संधातक प्रहार कर लेते है।
    आजकल यही होने लगा है जो पछ में वह हजार जुबान चलाते सबको अपनी मनवाने बड़बड़ा रहे है और जो विपछ में है वह एक ही बाते कह रहा है हटाओं और बदलों ।
     सुनने में आया है कि अमेरिका में एक ही बात से परिवर्तन आया "वी केन चेंज "  यही सूत्र वाक्य की आजकल सबसे अधिक प्रभावशाली युवा वर्गों में है " हमें बदलाव चाहिए " यह वे चाहते है जो अपेछाकृत उपकृत नही है या एक सा रुटीन लाईफ से बोरिंग होने लगते है ।वही हवा पानी बदलने सैर सपाटे कर बदलाव चाहते है। जब आदमी हर दीपावली में घर की रंग रोगन बदलते है तब सरकारे कैसे नही बदलती यह जरुर विचारणीय है।हमारे लोग आस्थावान व रुढ़ीवादी होते है। किसी के त्याग बलिदान को किसी वैभव ऐश्वर्य को परंपरागत ढंग से ढ़ोते रहते है वे भला क्या बदलाव चाहेन्गे ये लोग यथास्थिति वादी होते है और कल्पित सुख की आस मे "जो रचि राखा राम जी" की धून में बिधुन दास मलूक की पंछी व  अजगर की तरह  मुफत की दार-भात खाते पड़े रहते है । वे सबके दाता राम कह मंजीरें बजाते संकीर्तन में मगन है ।ऐसे लोग
और ऐसी प्रवृत्तियां हर शासक वर्ग पैदा करते है। यही उनकी सत्ता में बने रहने का रामबाण अचुक औषधि है।
     अजकल  जनता  को सब्जबाग और सपने दिखाने की कवायद दोनो - तीनो तरफ है । आश्वासनों का दस्तावेजीकरण करने  संकल्प पत्र ,धोषणा पत्र दृष्टिपत्र ,शपथपत्रों की बाढ़ सी आई हुई है।आखिरकर ऐसा करके ही तो उनसे मत व समर्थन लिए जाते है ।
    बाहरहाल यह अमेरिका नही जहां द्विदलीय  प्रणाली हो यहां तो बहुदलीय और निर्दलीय है ऐसे बतक्कड़ो की बन आई है।फिर यह विशिष्ट अनुभव देशवासियों का है कि मौनीबाबा की तपस्या वही भंग कर सकता है जो जबर गोठकार हो ।जहां चुप-चुपाई हो वहां  चुटुर -पुटुर मनोरंजन का साधन हो जाते है।मौन से उबे जनता मन की प्रवचन से मगन हुए ।पर जल्द ही अब  प्रवचन की अतिरंजन  और उनके शासकीय प्रसारण ही जन के अवचेतन मन में परिवर्तन की पवन बहाने लगे है।  इस बात को बतक्कड़ लोग जगह -जगह बताने लगे है अब देखते है कि उनकी बातों का असर कितना असरदार होते है।
       वैसे एक पुरानी फिल्मी गीत ही सबके सपने चुर चुर करने में काफी है पता नही इसको लोग आजकल क्यो नही बजाते या सुनते ।मेरा तो मन करता है कि मै भी एक बड़ा सा डी. जे. सांउड सिस्टम लगाऊ और रफी साहब की दिलकश आवाज को लाऊड में बजाऊ .... कस्मे वादे प्यार वफा सब बातें है बातों में क्या ?
         पर भाई अनबोलना रहने और गूंगा होने से अच्छा है कि अच्छे दिन आने वाले वाले की सब्जबाग में ही टहले घूमें या खाली -पीली  टहल टुहुल करने और अतिरंजना पूर्ण कानफोडू प्रवचन से ऊबे लोगों को परिवर्तन के लिए प्रेरित करने वालों की सुने या फिर उन्हे चुने जो अबतक अपनी बारी के इंतजार में ऐसे सपने दिखाते रहे है जो कथित दोनो राष्ट्रीय दल न देख - दिखा सकते न कर सकते!
      तो बतक्कड़ों की बातों में फंसने  तैय्यार तो रहों कि क्या पता कौन सी बातें आपकी बातों से मेल खाते बातों ही बातों में बात बन जाए !!
    डा अनिल भतपहरी