ब्रिटिश कालीन भारतीय समाज में सर्व शिछा हेतु १८३५-३६ में लार्ड मैकेले ने प्रस्ताव लाया ।फलस्वरुप अनेक जगहों पर स्कूल खुलना आरंभ हुआ। और अछर ग्यान से अपरिचित जनों के प्रथम पीढी साछर होने लगे ।इस तरह शिछा का द्वार अंग्रेजों के खोलकर सर्व सुलभ कराए ।
वैसे कतिपय भारतीय विचारक लार्ड मैकाले को दोषी बताते है कि वे गुलाम और काले अंग्रेज बनाए क्योकि वे भारतीय को चपरासी क्लर्क बनाने ही साछर कर गुलाम बनाए रखने की सडयंत्र किए।ऐसी बाते कर उनकी आलोचना करते हैं।
परन्तु उनके कारण ही गुलाम व निरछर लोग साछर होकर अपने अंदर स्वाभिमान भरे और आजादी का मतलब समझा।
इस तरह इन्ही चपरासी क्लर्क चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी लोग भारत में क्रांति की बिगुल फूके और जनमानस को आजादी का मतलब समझाए। अधिकतर बडे सामंत, पंडे -पुजारी या सुविधाभोगियों ने अंग्रेजों के रहकर प्राय: उनकी चाटुकारिता और गुलामी ही की।
क्रांति तो इन चपरासी क्लर्कों व सैनिकों ने की। उनमें मतादीन व मंगल पांडे खुदीराम बोस जैसे लोग थे। उन्हे नमन ...
लार्ड मैकाले के नीतियों के चलते ही ज्योतिबा फूले ,नारायणा गुरु , डा अम्बेकर, पेरियार, महंत नन्दू नारायण , महंत नयनदास महिलांग रतिराम मालगुजार नकूल ढीढी जैसे लोग साछर हुए ।जबकि गुरु अगम दास निरछर थे ।(मिनीमाता सातवी उत्तीर्ण साछर थी )
इन्हीं साछरों ने समाज में बौद्धिक क्रांति की ।फलस्वरूप कलान्तर में राजनैतिक चेतना आई और इस तरह समग्र विकास के मार्ग प्रशस्त हुए।
इन सबमें मैकाले की शिछा नीति का ही प्रभाव रहा। विचार कीजिए यदि वे भारत में शिछा द्वार नहीं खोलते तब क्या होता ?
और क्या इतनी जल्दी स्वतंत्रता आन्दोलन होते व अग्रेज देश छोडते सामंत व उनके मातहत पंडे- पुजारी, व्यापारी क्या आम प्रजा जनों के कल्याण के सोचते।समाज मे जो अभुतपूर्व बदलाव व नवजागरण आया क्या वह आ पाते ? कि आज भी धर्म कर्म और अंध विश्वास के मकड़जाल में फंसे किसी लाल बुझक्कड़ो के मार्ग दर्शन में नारकीय जीवन जीने विवश होते।
इसलिए अंग्रेज़ी सत्ता और उनका शोषण चक्र भले निन्दनीय हो ।पर इन सामंतों और उनके करिन्दों का शोषण नारकीय स्तर से कतई कम नहीं था। ऐसी मनोवृत्ति तो आज भी है कि लोग हमारे गुलाम रहे । और वे लोग अब भी देश की संप्रभुता पर एकाधिकार चाहते है तथा संविधान प्रदत्त समानता के अधिकार के प्रतिरोधी हैं। इनसे तो भला वह मैकाले है जो शिछा व अछर ग्यान के चलते लोगो में चेतना व स्वाभिमान जगाए ।तथा दोनो जगने से देश व समाज में नवक्रांति लाए ।
वर्तमान साछर व सछम होते पीढ़ीयों को लार्ड मैकाले के प्रति आभारी होना चाहिए।